नारी विमर्श 


पितृसत्तात्मक समाज में नारी पुरुष की गुलाम और सामाजिक प्रताड़नाओं का शिकार रही है l नारी ही एक मात्र ऐसी जाति है जो कई हजारों वर्षों से पराधीन है l नारी-विमर्श स्त्री उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं की दिशा को उजागर करने में एक साकारात्मक प्रयास है , जो शोषण से लेकर सशक्तीकरण तक के सफर पर प्रकाश ड़ालता है l प्राचीन काल से लेकर आज तक नारी का प्रत्येक कदम घर से लेकर बाहर तक शोषित होता रहा है l उसे कभी देवी तो कभी दासी बना दिया गया,परन्तु उसे मानवी नहीं समझा गया l समाज में व्याप्त पर्दा -प्रथा,सती-प्रथा,विधवा-विवाह निषेध,बहुपत्नी विवाह,कन्या जन्म दुर्भाग्यपूर्ण माना जाना,शिक्षा एवं स्वावलंबन के आधारों से वंचित रखना,आजीवन दूसरों के नियंत्रण में रखना आदि मान्यताओं के द्वारा नारी को शोषित किया जाता रहा हैl शोषण के अन्तर्गत उसका दैहिक शोषण,आर्थिक ,शैक्षणिक व मानसिक शोषण तक किया जाता है , जैसे  'महादेवी वर्मा ' ने नारी की आर्थिक स्थिति को उजागर करते हुए कहा है,"समाज ने स्त्री के सम्बन्ध में अर्थ का ऐसा विषम विभाजन किया है कि साधारण श्रमजीवी वर्ग से लेकर सम्पन्न वर्ग की स्त्रियों तक की स्थिति दयनीय ही कही जाने योग्य है l वह केवल उत्तराधिकार से ही वंचित नहीं है वरन् अर्थ के सम्बन्ध में सभी क्षेत्रों में एक प्रकार की विवशता के बन्धन में बंधी हुई है " आर्थिक शोषण के अन्तर्गत दहेज के लिए नारी को सताना,अशिक्षा,परनिर्भरता,घर में पुरुषों के शासन में उसकी अधीनता पारिवारिक व कार्यक्षेत्र में पीड़ित करना आदि कई ऐसे स्तर हैं जिनसे नारी का आर्थिक शोषण किया जाता है l”

                   शोषण के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए नारी अथक प्रयास भी करती है ,जिसके लिए वह उन परम्परागत रूढ़ियों व बन्धनों से मुक्ति लेने के लिए प्रयास करती है जिसमें उसे जकड़कर उसके अधिकारों का हनन किया जाता है l पुरातन नारी के मुकाबले में आज की नारी आमूलचूल परिवर्तित हो गई है l अब नारी जीवन में ऐसी लहर आ गई है कि उस पर से सामन्ती बन्धन हट गए हैं और आज वह घूँघट निकालने,घर से बाहर न निकलने,नौकरी न करने,शिक्षा न ग्रहण करने,प्रेम-विवाह न करने,अविवाहित न रहने आदि किसी भी मान्यताओं के दायरे में बाधित नहीं की जाती है l इस परिवर्तन का कारण यही है कि नारी उस पुरातन मूल्यों को नकारने एवं सामाजिक आग्रहों को तोड़ने की चेष्टा में संघर्षरत हुई है जिन्होंने उसे मानवीय क्रूरता में जकड़ा है l निश्चित रूप से इन सब रूढ़िग्रस्त बन्धनों व परम्पराओं से मुक्ति लेने के लिए वह निरन्तर संघर्ष करती है ,कहने को तो नारी को पुरुषों के समान अधिकार दिए जाते हैं ,किन्तु नारी द्वारा उन अधिकारों को सिर्फ जानना और प्रयोग करने में बहुत अंतर होता है चूंकि वह सिर्फ अधिकारों से परिचित हो पर उनका प्रयोग न कर पाएं तो ऐसे अधिकारों का उसके जीवन में क्या फायदा l

              परिणामस्वरूप चिरकाल से दबती -पिसती आ रही अधिकारों से वंचित नारी द्वारा संघर्ष तभी शुरू होता है l जब उसे पुरुष की मात्र आश्रिता मानकर उसके मन-बहलाव एवं विविध विधि सेवा प्रयोजन को पूरा करने का साधन भर माना जाता है और जहाँ उसका कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व व अस्तित्व नहीं माना जाता l आधुनिक परिस्थितियों ने नारी को बहुत सचेत बना दिया है l आज नारी दो मोर्चों पर मुख्य रूप से संघर्ष करती है l एक मोर्चा तो परम्परागत व्यवस्था में अपनी भूमिका निभाते हुए स्वाधीनता तथा अधिकारों की माँग के लिए योजनाबद्ध प्रयास करने से सम्बन्धित है जबकि दूसरे मोर्चें द्वारा उस मानसिकता को बदलना है जो उसे आज भी भोग्या मानकर उसका शोषण करता है l

            आज विश्व भर में नारी-पुरुषों के बीच कड़ी प्रतियोगिता होती है l चाहें प्राचीनकाल से ही संसार पर पुरुषों का आधिपत्य रहा है लेकिन आज नारी जाति ने करवट बदलकर अपनी कमर कस ली है और वह अपने अधिकारों के लिए गुहार भी लगाती है l मुख्य रूप से आज नारी का संघर्ष उसकी अस्मिता एवं अस्तित्व की पहचान से है जोकि पितृसत्तात्मक समाज के विरुद्ध शुरू होता है l इसलिए आधुनिक नारी संघषर्रत होकर अपने स्वतंत्र अस्तित्व व व्यक्तित्व को आकारित करने वाली शक्ति के रूप में स्थापित हुई है l सच्चाई यह है कि नारी को परवश बनाने में पितृसत्तात्मक धर्म का आदर्श एक अमोघ अस्त्र है जिसका बार-बार पारायण करवाकर पुरुष-समाज ने नारी को तन-मन से ऐसा पराधीन बनाया कि वह कभी अपने स्वतंत्र अस्तित्व को महसूस ही नहीं कर पायी चूँकि ,“ हमारा समाज हमेशा से ही पुरुष प्रधान रहा है.उसकी हर व्यवस्था पुरुष का ही समर्थन करती रही है l

                      पितृसत्तात्मक समाज स्त्री के अधिकारों पर विविध वर्जनाओं व निषेधों का पैहरा बैठाता रहा है l परम्परा जहाँ नारी को पितृसत्ता की प्रभुता में रहने को बाध्य करती है,वहाँ आधुनिक नारी की चेतना उसे पितृसत्ता के सभी बन्धनों को तोड़ ड़ालने को प्रेरित करती है चाहे पुरुष समाज ने नारी-जीवन,उसकी कार्यशैली व उसकी सत्ता को निधार्रित की चेष्टा की है लेकिन अब नारी भी पुरुष की तरह एक अलग संवर्ग है lअब उसकी भी एक अलग कोटि व सामाजिक स्थिति है l आज वह उन मिथकों को तोड़ रही है जो उसके विरुद्ध रचे गए l आज नारी अपनी मुक्ति के लिए,पुरुष के समान अधिकार प्राप्ति के लिए और स्वयं को मनुष्य (पुरुष के समान ही ) के रूप में मान्यता दिए जाने के लिए व्यापक स्तर पर संघर्ष कर रही है l इससे यही ध्वनित होता है कि नारी स्वयं को पराधीन और पुरुष सत्ता के अधीन पा रही है,उसके व्यक्तित्व को पुरुष के समान स्वाभाविक रूप से विकसित होने का अवसर नहीं दिया गया और आज वह इतनी जागृत हो चुकी है कि वह अपने को किसी भी प्रकार के बन्धन में रखने के विरुद्ध ही नहीं अपितु पुरुष वर्चस्ववादी व्यवस्था के हर फंदे को काटने का प्रयास कर रही है l स्त्री-चेतना पितृसत्ता के द्वारा गढ़ी गई और प्रचलित की गई उन धारणाओं या मान्यताओं पर प्रश्नचिन्ह लगाती है जो स्त्रियों को स्वाभाविक रूप से पुरुष से हीन सिद्ध करने के लिए गढ़ी गई है l

                        आज नारी अस्मिता एवं अस्तित्व का प्रश्न अनेक आयामी है l एक लम्बी पुरानी स्थापित व्यवस्था को तोड़कर जन-संघर्ष से जुड़ना और कदम-कदम पर यथार्थ से मुठभेड़ करना ही अस्तित्व की पहचान का तकाज़ा है l यह नारी समाज की सच्चाई रही है कि परिवार में उसकी आवाज को दबाकर उसकी आकांक्षा को कुचल दिया जाता है l उसकी आवश्यकताओं की भी उपेक्षा की जाती रही है.उसे किसी भी अवस्था में मानवोचित स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त करने की सुविधा नहीं होती है l परन्तु अब आधुनिक नारी ने अपने वर्चस्व के लिए अपना समूचा कौशल दाँव पर लगा दिया है.नारी द्वारा अस्मिता व अस्तित्व की लड़ाई पितृसत्तात्मक समाज,शोषण,परम्पराओं,मान्यताओं,अधिकारों व आर्थिक,राजनैतिक,सामाजिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों की भागीदारी से है l वर्तमान समाज में नारी पुरुष-वर्ग से प्रतिस्पर्धा न कर केवल उसके समकक्ष एक मनुष्य होने के नाते प्राप्त होने वाले अधिकारों की माँग करती है l

                निश्चित रुप से जब नारी पितृसत्तात्मक समाज में शोषित होकर विद्रोहात्मक स्वर को प्रस्फुटित करते हैं तो समाज को उसके सशक्त व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं l आज नारी ने जीवन की सभी परिभाषाएँ ही बदल दी हैं l चूंकि सशक्तीकरण की प्रक्रिया अधिकार प्राप्त करने ,आत्मविकास करने तथा स्वयं निर्णय लेने की है,और यह चेतना का वह मार्ग है जो बृहत्तर भूमिका निभाने की क्षमता प्रदान करता है l इसलिए नारी जीवन में निरर्थक से सार्थक बनकर परीक्षाओं व प्रतियोगिताओं में स्वयं को सशक्त सिद्ध कर रही है l आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत सशक्त नारियों का यही कहना है ,“आधा आसमान हमारा,आधी धरती हमारी,आधा इतिहास हमारा है l”आधुनिक नारी यह जान चुकी है कि पुरुष निर्मित पितृसत्तात्मक नैतिक प्रतिमान,नियम,कानून,सिद्धांत,अनुशासन स्त्री को पराधीन उपेक्षिता,अन्य बनाने के लिए ही सुनियोजित ढ़ंग से गढ़े गये हैं l 


                    आज सशक्त नारी अपने पाँवों पर खड़ी होकर स्वाभिमानी जीवन व्यतीत कर रही है l वह अपने ज्ञान से गृहव्यवस्था को भी अच्छी तरह सम्भाल रही है तथा अपने बच्चों को भी सुसंस्कृत बना रही है l इसी कारण वर्ष 2001 को  नारी सशक्तीकरण के नाम से भी घोषित किया गया है l आज सशक्त नारी वर्षा की बूँदों की तरह विकासोन्मुख होकर बसंत के फूलों की महक को चारों ओर बिखेर रही है ,और मर्यादाशील नारी अपनी वरिष्ठता,पवित्रता व अदम्य जिजीविषा के बल पर आसमान में धूमकेतु नक्षत्र की भान्ति टिमटिमा रही है l

  • ड़ॉ प्रीत अरोड़ा
लेखिका परिचय : 



जन्म २७ जनवरी १९८५ को मोहाली पंजाब में। शिक्षा- एम.ए. हिंदी पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी में दोनो वर्षों में प्रथम स्थान के साथ। कार्यक्षेत्र- अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन व अनुवाद। अनेक प्रतियोगिताओं में सफलता, आकाशवाणी व दूरदर्शन के कार्यक्रमों तथा साहित्य उत्सवों में भागीदारी, हिंदी से पंजाबी तथा पंजाबी से हिंदी अनुवाद। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन जिनमें प्रमुख हैं- हरिगंधा, पंचशील शोध समीक्षा, अनुसन्धान, अनुभूति, गर्भनाल,हिन्दी-चेतना(कैनेडा),पुरवाई (ब्रिटेन),आलोचना, वटवृक्ष,सृजनगाथा,सुखनवर, वागर्थ,साक्षात्कार,नया ज्ञानोदय, पाखी,प्रवासी-दुनिया, आदि मे लेख,कविताएँ,लघुकथाएं,कहानियाँ, संस्मरण,साक्षात्कार शोध-पत्र आदि।वेब पर मुखरित तस्वीरें नाम से चिट्ठे का सम्पादन. E-mail-arorapreet366@gmail.com

13 comments:

  1. '' निश्चित रुप से जब नारी पितृसत्तात्मक समाज में शोषित होकर विद्रोहात्मक स्वर को प्रस्फुटित करते हैं तो समाज को उसके सशक्त व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं ''

    बिचारानीय,सारगर्भित लेख

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  2. बहुत बढ़िया |
    सच्चे भाव ||

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  3. शोषण के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए नारी अथक प्रयास भी करती है ,जिसके लिए वह उन परम्परागत रूढ़ियों व बन्धनों से मुक्ति लेने के लिए प्रयास करती है जिसमें उसे जकड़कर उसके अधिकारों का हनन किया जाता है .... !!!!!!

    आखिर .... लेकिन .... कब तक .... ?????

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  4. naari ka puratan aur naveen dono hi vaqt sthiti ka bahut achcha vishleshan kiya hai.

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  5. सुन्दर व सारगर्भित आलेख्।

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  6. बहुत रचनात्मक और सुन्दर आलेख!...धन्यवाद!

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  7. Shabash preeti bhut hi sarthak aevam sargarbhit lekh hae .yadi mahilayen apna aham aek or rakh kar mahilaon ka sath den to sabse sashakt mahilayen hi hongi bdhai.

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  8. नारी पुरुष के बिना अधूरी है और पुरुष नारी के बिना ...प्रकृति का यही विधान है.

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  9. @anita
    naari aur purush ek dusrae kae purak nahin hotae haen kewal pati patni kae sambandh me yae baat aatii haen

    naari purush kae bina adhuri haen ityadi kament hi sabsey badaa karan haen stri shoshan kaa

    maansiktaa sahi rahey sabki ki naari aur purush barabar haen purak nahin tabhie badlaav sambhav haen

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  10. शोषण के इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए नारी अथक प्रयास भी करती है ,जिसके लिए वह उन परम्परागत रूढ़ियों व बन्धनों से मुक्ति लेने के लिए प्रयास करती है जिसमें उसे जकड़कर उसके अधिकारों का हनन किया जाता है .... !!!!!!
    लेकिन हमें यह याद रखना जरूरी है कि इस चक्रव्यूह से मुक्ति इसे कुछ पुरुषों के प्रयास से ही मिलना शुरू हुई ।
    महात्मा ज्योतिबा फुले, महर्षी धोंडो केशव कर्वे के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं ।

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  11. नारी उत्‍थान पुरूषवादी समाज को अखरता है। ऐसे में समाज में आ रहे, सकारात्‍मक बदलाव कुछ उम्‍मीद बांधते हैं।

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  12. बहुत से सवालों को हल करते हुए ख़ुद सवाल खड़ा करती हुई बेहतरीन तख़लीक़.

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