कविता 

रहेगें हम रहेगें
रहेगीं हमारी संवेदनाएँ
आस्थाएँ अगली सदी में भी

रहेगें हमारे प्रेम
हमारी शांति
हमारे सारे प्रतिरुप पर छाया और
उनके प्रश्न

हमें छोड़ देने होगें
इस सदी में
इस सदी से उस सदी में
हम एकदम से छलांग नहीं लगाएगें
परखे जाएगें
इस सदी के धरोहरों को कि
इसे रखे जाएं उस सदी में या
फेंक दिये जाएं
किसी कूड़ेदान में

असल में हम जहाँ नहीं होगें
वहीं होगीं हमारी आस्थाएँ और
असंख्य दीप के मध्य
नहीं देख पाएंगें
उन चेहरों को
जिसे पिरोना जरुरी है
प्रणय के सूत्र में आवर्त और परावर्त में बंधे
हमारे सारे सूत्र
बस एक धागे से लटके हैँ
बंधें हैं हमारे पाँव
हमारी संस्कृति
रोग की अंतिम अवस्था में
 उन दरवाजों को खटखटाने से नहीं खुलेगी
आँसुओं की लंबी कतारें

उस सदी में यदि हम
बचाए रखें अपनी संवेदनाएँ
यही धरोहर होगी
अगले सभी सदियों में ।

 * मोतीलाल/राउरकेला

9 comments:

  1. उस सदी में यदि हम
    बचाए रखें अपनी संवेदनाएँ
    यही धरोहर होगी
    अगले सभी सदियों में ।
    बहुत खूब

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  2. सच है ...संवेदनाएँ ही
    हमारी धरोहर होगी..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  3. संवेदनाओ पर एक संवेनशील रचना हेतु सदियों तक के लिए शुभकामनाएं प्रेषित .......

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति..
    बहुत सुन्दर!!!

    सादर
    अनु

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  5. भावमय करते शब्‍दों का संगम ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति
    आभार

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति,,,,

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  8. उस सदी में यदि हम
    बचाए रखें अपनी संवेदनाएँ
    यही धरोहर होगी
    अगले सभी सदियों में ।

    भावपूर्ण सार्थक पंक्तियाँ,,,,,,,,
    RECENT POST - मेरे सपनो का भारत

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  9. उस सदी में यदि हम
    बचाए रखें अपनी संवेदनाएँ
    यही धरोहर होगी
    अगले सभी सदियों में ।सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ सार्थक सन्देश

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