
ॐ आदि है, अनंत है,
तुम्हारे साथ है
आओ उसकी आंच को आपस मे बांटें..........
ॐ की प्रत्यंचा खींचो,
लक्ष्य का निशाना साधो,
निष्ठा के बाण चलाओ-
विजयी हो.......
देवता द्वार पर आ गए हैं......
उठो स्वागत करो,
तुम सुरक्षित हो-विश्वास रखो।
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तुलसी वाला राम, सूरदास का श्याम
जितनी बार भी राम का चरित्र पढ़ा है जीवन में, आँखें नम हुयी हैं। कल मेरे राम को घर दे दिया मेरे देशवासियों ने, कृतज्ञतावश पुनः अश्रु बह चले। धार्मिक उन्माद के इस कालखण्ड में भी सदैव ही मेरे राम मुझे दिखते रहे हैं, त्याग में, मर्यादा में, शालीनता में, चारित्रिक मूल्यों में। पृथु(पुत्र जी) के बाल्यकाल में मुझे तुलसी वाले राम और सूरदास के श्याम अभिभूत कर गये थे और लेखनी मुखरित हो चली थी। मन्त्र-मुग्ध मन, कंपित यौवन, सुख, कौतूहल मिश्रित जीवन,
ठुमक ठुमक जब पृथु तुम भागे, पीछे लख फिर ज्यों मुस्काते,
हृद धड़के, ज्यों ज्यों बढ़ते पग, बाँह विहग-पख, उड़ जाते नभ,
विस्मृत जगत, हृदय अह्लादित, छन्द उमड़ते, रस आच्छादित।
तेरे मृदुल कलापों से मैं, यदि कविता का हार बनाऊँ,
मन भाये पर, तुलसी वाला राम कहाँ से लाऊँ?
सुन्दर गीतों में बसता जो, बाजत पैजनियों वाला वो,
छन्दों का सौन्दर्य स्रोत बन, तुलसी का जीवन-आश्वासन,
अति अनन्द वह दशरथ-नन्दन, ब्रम्हविदों का मन जिसमें रम,
कोमल सा मुखारविन्दु जो, कौशल्या-सुत आकर्षक वो,
कविता का श्रृंगार-पूर्ण-अभिराम कहाँ से लाऊँ?
मन भाये पर, तुलसी वाला राम कहाँ से लाऊँ?
चुपके चुपके मिट्टी खाना, पकड़ गये तो आँख चुराना,
हर भोजन में अर्ध्य तुम्हारा, चोट लगी तो धा कर मारा,
भो भो पीछे दौड़ लगाते, आँख झपा तुम आँख बताते,
कुछ भी यदि मन को भा जाये, दे दो कह उत्पात मचाये,
तेरे प्यारे प्यारे सारे कृत्यों से यदि छन्द बनाऊँ,
मन भाये पर, सूरदास का श्याम कहाँ से लाऊँ?
घुटनहिं फिरे सकल घर आँगन, ब्रजनन्दन को डोरी बाँधन,
दौड़ यशोदा पीछे पीछे, कान्हा सूरदास मन रीझे,
दधि, माखन और दूध चुराये, खात स्वयं, संग गोप खिलाये,
फोड़ गगारी, दौड़त कानन, चढ़त कदम्ब, मचे धम-ऊधम,
ब्रज के ग्वाल-ग्वालिनों का सुखधाम कहाँ से लाऊँ?
मन भाये पर, सूरदास का श्याम कहाँ से लाऊँ?



बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...भाषा का सौंदर्य देखते ही बनता है .
ReplyDeleteतेरे मृदुल कलापों से मैं, यदि कविता का हार बनाऊँ,
ReplyDeleteमन भाये पर, तुलसी वाला राम कहाँ से लाऊँ?
अद्भुत ..................................
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै......................
बहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeletesundar manmohak prastuti,
ReplyDeleteram/shyam ka gungaan
badhai
sundar prastuti!
ReplyDeleteसूरदास का श्याम कहाँ से लाऊं ...
ReplyDeleteसुन्दर !
अतिसुन्दर ,उत्कृष्ट रचना.
ReplyDeleteवाह! गज़ब का भाव संयोजन्…………उत्तम रचना।
ReplyDeleteवाह!! कितनी सुंदर प्रस्तुति है ... इतना सुंदर भाव रचना का ... आभार ....
ReplyDeleteप्रवीण जी की रचना पर निशब्द हूँ उनकी भाषा इतनी समृद्ध है कि मुझे इस रचना के समतुल शब्द भी नही मिल रहे। बस मेरी वधाई स्वीकार करें। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद कविता को वटवृक्ष में लगाने का।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....मन भावन...आपका आभार ,एक बार फ़िर याद दिलाने का...प्रवीण जी की भी आभारी हूँ पॉडकास्ट के रूप मे उनके ब्लॉग पर जगह देने के लिए....
ReplyDeletebahut sunder kavita likhi hai praveen ji
ReplyDeletebahut sunder bhav aur shabd sanyojan....
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