कर विच जूता रखो सभी
अर्ज करे कवि पद्म
जित देखा तित पीटिया
भ्रष्टाचारी और छद्म ...


रश्मि प्रभा


==============================================================
कबिरा कर जूता गह्यो ...


सविनय अर्ज़ है -

रहिमन जूता राखिए, बिन जूता सब सून
बिन जूता होने लगे, भ्रष्टाचारी दून

जूता मारा तान के, लेगई पवन उड़ाय
जूते की इज्ज़त बची, प्रभु जी सदा सहाय

साईं इतना दीजिये, दो जूते ले आँय
मारूँ भ्रष्टाचारियन, जी की जलन मिटाँय

जूता लेके फिर रही, जनता चारिहुं ओर
जित देखा तित पीटिया, भ्रष्टाचारी चोर

कबिरा कर जूता गह्यो, छोड़ कमण्डल आज
मर्ज हुआ नासूर अब, करना पड़े इलाज

रहिमन जूता राखिए, कांखन बगल दबाय
ना जाने किस भेस मे, भ्रष्टाचारी मिल जाय


निर्मल हास्य ..... पद्म सिंह

7 comments:

  1. हा हा हा...

    मज़ा आ गया पढ़ कर दी...
    आप भी कभी रुलाने में तो कभी हंसाने में कोई कसर नहीं रखतीं..

    बहुत बढ़िया दोहे..

    शुक्रिया

    ReplyDelete
  2. वाह...जूता आज इतना प्रसिद्ध हो गया है कि कविता में भी छा गया...बहुत खूब !

    ReplyDelete
  3. जित देखा तित पीटिया
    भ्रष्टाचारी और छद्म ..
    वाह रश्मि जी... क्या खूब भूमिका दी है प्रस्तुति को:)

    ReplyDelete
  4. दोहो के माध्यम से खूब पिटाई की है।

    ReplyDelete
  5. वाह: जूते क महत्व तो काफी बढ़ गया...

    ReplyDelete
  6. वाह पद्म जी ! अब आपने कहा है तो जूता लेना ही पडेगा ....
    अच्छा यह बताइये, क्या सेंडिल और खडाऊं से काम चल सकेगा....चल सके तो महिलाओं और साधुओं को भी आमंत्रित कर लिया जाय ....:)

    ReplyDelete
  7. वाह जूता महिमा !!! बहुत खूब

    ReplyDelete

 
Top