पंख तो हैं , क्षमताएं भी
विस्तृत आकाश भी
पर नीड़ का निर्माण भी मैंने ही किया है
ये जो अबोध बच्चे हैं
............
यहाँ बाज घात लगाए है
बाहर की चिड़िया आक्रमण को तैयार
क्या करूँ ?????????????? - ये है मंथन का भंवर !!!
रश्मि प्रभा
डॉ . संध्या तिवारी
विस्तृत आकाश भी
पर नीड़ का निर्माण भी मैंने ही किया है
ये जो अबोध बच्चे हैं
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यहाँ बाज घात लगाए है
बाहर की चिड़िया आक्रमण को तैयार
क्या करूँ ?????????????? - ये है मंथन का भंवर !!!
रश्मि प्रभा
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वह औरत है
भोर की पहली किरण
खोल देता है
रात का आवरण,
पर छुपे हुए रहस्य
दफन हैं अभी भी
उसके हृदय में ,
कि रात में वह बेचैन थी ,
सपनो की दुनिया में कैद थी ,
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए .
उसकी यही दुनिया होती,
पर सुबह होने से पहले ही
वह पुन: लौट आती है ,
पूर्ववत स्थिति में,
वह जानती है ,
कि पहली किरण के
दस्तक देने के पूर्व
उसे समर्पित हो जाना है,
स्वनियोजित कार्यक्रम में
औरों के सुख के लिए,
खोना है अपनों में,
भले ही ये अपने
उसके दर्द को न समझे,
पर वो दर्द सहती है,
इन्ही अपनों के लिए
और खोयी रहती है ,
चूल्हे-चौके में .
सबकी इच्छाओं कि पूर्ति के बीच
कबकी भूल जाती है वह,
अपनी इच्छाएं ,आकांक्षाएं
प्यार और झिड़कियों के बीच
एक सामंजस्यता,
यही उसकी दिनचर्या है ,
क्योंकि वह औरत है
कई रिश्तों में बंधी .
डॉ . संध्या तिवारी
पर नीड़ का निर्माण भी मैंने ही किया है.....
ReplyDeletelazabab.....aur uspar itni achchi kavita bhi.....wah.
शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteबढ़िया भाव ।
यह एक सच है। सबकी खुशियों पर अपनी खुशियां कुर्बान कर देने का नाम औरत है और हम कितनी भी आधुनिकता और नारीवादिता का दम भर लें, अपनी अंतर्निहित संवेदनशीलता नहीं छोड़ सकते.. क्योंकि वह कुदरती है, बनावटी नहीं..
ReplyDeletekyunki wah aurat hai...
ReplyDeletewah!!!khoobsurat rachna...
औरत की ज़िन्दगी का सच
ReplyDeleteऔरत नि:स्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य निभाती है....उसे कौन क्या कहता है...सन्मान से बुलाता है या अवहेलना करता है..इसकी परवा वह नहीं करती...यह उसका जन्मजात स्वभाव है!...बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबढिया,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध तो नहीं पर पढ़ते हुए जाने क्यूँ जयशंकर प्रसाद याद आये...
ReplyDeleteनारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास....
सुदर रचना...
सादर.
बहुत सुंदर...
ReplyDeleteरिश्ता अपना अपने से
ReplyDeleteपिता से बना जब रिश्ता बेटी तुम कहलाई
भाई से बना जब रिश्ता भगिनी तुम कहलाई
पति से बना जब रिश्ता पत्नी तुम कहलाई
बेटे से बना जब रिश्ता माँ तुम कहलाई
अपने से बना जब रिश्ता सम्पूर्ण नारी तुम कहलाई
http://indianwomanhasarrived2.blogspot.in/2008/07/blog-post_8386.html
क्यूंकि वो औरत है ... कई रिश्तों में बंधी ...
ReplyDeleteवाह !! .. बेहतरीन रचना ...
बहुत सुंदर भाव..
ReplyDeleteसबकी इच्छाओं कि पूर्ति के बीच
ReplyDeleteकबकी भूल जाती है वह,
अपनी इच्छाएं ,आकांक्षाएं
....क्योंकि उसने केवल निस्वार्थ भाव से देना सीखा है ....वही एक सुख जाना है ...यह और बात है ....कि किसीने इसे पहचाना नहीं ....न ही मान्यता दी !!!!!
एक ही सूत्र
ReplyDeleteक्योंकि वह औरत है
अपनी इच्छाएं ,आकांक्षाएं
ReplyDeleteप्यार और झिड़कियों के बीच
एक सामंजस्यता, yhi gun to use aurat bnati hai.....bahut achchi prastuti.
@ वैसे तो हर प्राणी एकाधिक भूमिकाएँ निभाता है.
ReplyDeleteफिर भी औरत पक्ष पर पड़ते प्रकाश से उसका ही दर्द ... 'बड़ा' नज़र आता है.
जिसका वास्ता जितने अधिक लोगों से पड़ता है वह केंद्र में रहता है.
जिसके पास जितने अधिक विभाग होते हैं उससे उतनी ही अधिक अपेक्षाएँ रहती हैं.
जो जितना अधिक भावों से जुड़ा होता है वह उतना परेशान रहता है औरों के लिये, दिमाग वाले निष्ठुर माने जाते हैं, स्वार्थी होते हैं.
कौन है जो 'अपने लिये जीने वाले' खुदगर्ज को सही ठहराएगा? जो क्षमतावान होते हैं वही एकाधिक संबंधों को वहन कर पाते हैं.