
मौत खड़ी दरवाजे आ के पूछ रही थी मेरा नाम
मैंने नाम बताया बोली लाई हूँ तेरा पैगाम
तेरी ज़िन्दगी मेरी अमानत में लेने को आई हूँ
अब तक मुझसे बचा न कोई ऐसी अदभुद खाई हूँ
सब कुछ यहीं पड़ा रहने दे नेकी साथ चले नादान
जिनपे तुझको नाज अभी है भेद तेरे कल खोलेंगे
तीन तेरहवां दिन कर देंगे आपस में हंस बोलेंगे
चल जल्दी कर मोह माया में फंसा हुआ है क्यूँ इंसान
पांच तत्व की काया तेरी जल अग्नि पृथ्वी आकाश
वायु तत्व निकल जाये जब टूट जाएगी तेरी सांस
ओ आदम के पुतले तेरी चमड़ी बिके ना कोई दाम
भाई भतीजा कुटुंब कबीला साथ नहीं कुछ जायेगा
मालो दौलत महल अटारी यहीं पड़ा रह जायेगा
सच कांधे चढ़ के बोलेगा झूठी दुनियां सच सतनाम !

जगदीश तपिश
email jagdishtapish@yahoo.com

bahot achchi.....
ReplyDeleteयही तो जीवन का सत्य है।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सब कुछ यहीं पड़ा रहने दे नेकी साथ चले नादान
ReplyDeletebahut sunder!
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!
ReplyDeleteबढ़िया कविता
ReplyDeleteसत्याभिव्यक्ति...
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