हर रात तुम्हे याद करता हूँ
हर रात तुम जवाब नहीं देती हो
हर रात का ये चक्कर होता है
चाँद ज़मी पर आता है
ख्वाब अधूरे दिखाता है
एहसास अधूरे रहते हैं
दर्द कुछ पूरे रहते हैं
कुछ आग सी दिल में लगती है
कुछ बात सी दिल में लगती है
ये रात(खत्म)न जाने कब होगी
ये बात(खत्म)न जाने कब होगी
मुलाकात न जाने कब होगी
रोज कहानी बुनता हूँ
मेरी व्यथा पुरानी होती है
कुछ शब्द अधूरे होते हैं
कुछ बातें यू ही होती हैं
मैं यू ही कहता रहता हूँ
मैं यू ही बहता रहता हूँ
वक्त की घड़ियाँ चलती हैं
रातें यू ही ढलती हैं
आँसू कोरे रहते हैं
आँखें सूखी रहती हैं
चाँद का दर्पण टूटा है
वो कहता सबकुछ झूठा है
उसपे यकी नहीं अब करता हूँ
जो कहता है फकत सुनता हूँ
वो रूठा है मुझे मालूम है
वो झूठा है मुझे मालूम है
दूर बहुत रहा है चाँद
मगरूर बहुत रहा है चंद
हर रात तुम्हे याद करता हूँ
चाँद ज़मी पर आता है
ये रात(खत्म)न जाने कब होगी
मैं यू ही कहता रहता हूँ
चाँद का दर्पण टूटा है
दूर बहुत रहा है चाँद
मानस भारद्वाज
www.manasbharadwaj.blogspot.com/
वाह ...बहुत ही बढिया ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteचांदी का पहरा पड़ा, चाटुकार चंडाल ।
ReplyDeleteपात पात घूमा किया, डाल डाल पड़ताल।
डाल डाल पड़ताल, रात लम्बी हो जाती ।
घडी घडी घड़ियाल, व्यथा यह रात जगाती ।
दर्पण टूटा चाँद, जमीं पर हर दिन आता ।
कैसे जाऊं फांद, दर्द दिल का तड़पाता ।।
सुन्दर!
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना...सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteदूर बहुत रहा है चाँद
ReplyDeleteमगरूर बहुत रहा है चाँद
...................
बहुत बढिया
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteसुखद अनुभूति।
ReplyDeleteरची उत्कृष्ट |
ReplyDeleteचर्चा मंच की दृष्ट --
पलटो पृष्ट ||
बुधवारीय चर्चामंच
charchamanch.blogspot.com