तिनका भी मृग सा हो जाता है
मृग अपने भीतर की कस्तूरी भूल जाता है
तिनका भूल जाता है
एक तिनके के सहारे
टूटे पंख लगते हैं किनारे ...




रश्मि प्रभा


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तिनके का दर्द

एक तिनका
न जाने क्यूँ
बाकी रह गया
घोंसले में
सजने से

जी रहा है..
आजकल डर–डर के
गिन रहा है
सांसे.. इस चिंता में
हवा उड़ा न ले जाए
पानी बहा न दे
धुप जला न दे
मिट्टी दफ़न न कर दे
उसके अस्तित्व को..

सोंचता रहता है..

अब कैसे निहारेगा ?
नजदीक से
प्यारी चिड़िया को ,
कैसे देखेगा ?
चिड़िया के बच्चों को,
चहकते हुए,
पंख फैलाते हुए,
जीने का अंदाज..
सीखते हुए .
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संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’

13 comments:

  1. toching.... dard to dard hota hai chahe kisi ka bhi ho....

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  2. क्षमा सहित दीदी !!

    नहीं घोंसले में लगा, मन को होता क्षोभ ।
    तूफानों से डर रहा, या सजने का लोभ ।

    या सजने का लोभ, नीड़ की भीड़ गुमाए ।
    जीवन का अस्तित्व, व्यर्थ ऐसे भी जाए ।

    तिनके तनिक उबार, डूबते जहाँ हौसले ।
    तिनके तिनके साथ, जरूरत नहीं घोंसले ।।

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  3. वाह!!!!!!!!!!!!

    बहुत सुन्दर भाव...

    सादर

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  4. भूमिका और कविता दोनों ही सुन्दर!

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  5. dard to dard hota hai, har jeev aur nirjeev men ek anubhuti hoti hai bas use samajhane kee der hoti hain.

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  6. एक छोटेसे तिनके की भी अलग अहमियत है....सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  7. नया दृष्टिकोण... भावपूर्ण रचना...
    सादर बधाई...

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  8. उस तिनके का ...नीड़ में ना जुडना ...उसे कितना दर्द दे गया ...ये आपके शब्द अच्छे से समझा गए हैं .

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  9. तिनके का दर्द समझ में आया ...सुंदर प्रस्तुति

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  10. आपकी पोस्ट कल 29/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा - 833:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
    --

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  11. tinke ke masumiyat bhara dard dil mein utar gaya..
    bahut badiya bimb..

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  12. मेरी रचना को चुनने के लिए आपका आभार..

    आपके इस अभिनव प्रयोग और संयोजन की शुभकामनाये.

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