महँगी रोटी-सस्ती कार
खिसक गया जीवन आधार।।
भीख माँग कर द्वारे-द्वारे,
जा बैठे ऊँचे आसन पर।
भोली जनता को भरमाया,
इठलाते सत्ता-शासन पर।
बापू की केंचुली पहनकर,
पाकर वोट कर दिया वार।
खिसक गया जीवन आधार।।
बना दिया कुछ मक्कारों ने
घोटालों वाला यह देश।
उज्जवल लोकतन्त्र के तन पर
लिख डाला काला सन्देश।
चना-चबेना तक मँहगा है,
निर्धन पर भारी सरकार।
खिसक गया जीवन आधार।।
धूप और बारिश-सर्दी में,
कृषक अन्न को उपजाते हैं।
श्रमिक बहा कर खून-पसीना,
रैन-दिवस खटते जाते हैं।
मौज उड़ाते इनके बल पर,
अधिकारी, बाबू-मक्कार।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
http://uchcharan.blogspot.in/
Tathyon ko batata ek kadwa sach.BADHAIE
ReplyDeleteबना दिया कुछ मक्कारों ने
ReplyDeleteघोटालों वाला यह देश।
उज्जवल लोकतन्त्र के तन पर
लिख डाला काला सन्देश।
चना-चबेना तक मँहगा है,
निर्धन पर भारी सरकार।
खिसक गया जीवन आधार।।
...आज की सच्चाई को दर्शाती बहुत सटीक और प्रभावी रचना...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।।
ReplyDeleteतीखा व्यंग्य।
ReplyDeleteमहँगी रोटी-सस्ती कार।
ReplyDeleteप्रस्तुत करने का आभार।।
धूप और बारिश-सर्दी में,
ReplyDeleteकृषक अन्न को उपजाते हैं।
श्रमिक बहा कर खून-पसीना,
रैन-दिवस खटते जाते हैं।
मौज उड़ाते इनके बल पर,
अधिकारी, बाबू-मक्कार। सटीक है
बहुत ही सुन्दरता से सच्चाई बयान की गयी है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसादर
बना दिया कुछ मक्कारों ने
ReplyDeleteघोटालों वाला यह देश।
उज्जवल लोकतन्त्र के तन पर
लिख डाला काला सन्देश।
चना-चबेना तक मँहगा है,
निर्धन पर भारी सरकार।
खिसक गया जीवन आधार।।
सामयिक परिस्थतियों पर अच्छा व्यंग्य।
waah bahut achcha .
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