तालाब में उठी वो छोटी सी लहर
फैल जाती है जिस्म-ओ-जिगर पर
लेकिन,बहुत शांत!!!
देती है गहरी खोह,’अब’तलाशो खुद को।
समंदर की तरह न वो शोर मचाए
बरबस ही ध्यान,न कभी खीँच पाए
फिर भी जीवन से,पहचान करा जाए
वो छोटी सी लहर…
हर हाल में है शांत,न कोई कौतूहल
न इक नज़र मे,किसी को खींच पाए
दृढ़ निश्चय है जीवन,कोमलता से कह जाए
वो छोटी सी लहर…
हो कितना भी विशाल,गहरा समंदर
समेटे है लाखों,तूफान अपने अंदर
हर लहर है थपेड़ा,किसने ये जाना
जीवन है शांत,यूँ ही गुज़र जाना
फिर क्यूँ भला हम,न ये जान पाए
हर बात को कितने,आराम से समझाए
वो छोटी सी लहर…
इन्दू सिंह
http://hridyanubhuti.wordpress.com/
वट वृक्ष में स्थान देने के लिए ह्र्दयाभार .....
ReplyDeleteसादर
इंदु
वाह ...बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर |
ReplyDeleteआभार |
ये लहरें ही हैं असल, अन्तर्घट-हिल्लोल |
नेह-कंकरी करे नित, तन मन में किल्लोल ||
बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित कविता, बधाईयाँ !
ReplyDeleteबढिया हैं।
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteअच्छी है सकरात्मता कि परिचाक है
ReplyDeleteसकारात्मक चिंतन को परिभाषित कराती कविता .
ReplyDeleteगहन अर्थ लिए ...सुंदर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी ...
आभार.
bahut gehre bhav ki rachna............
ReplyDeletevo chhoti si leher… vakayi kuch kehti hai hum sab se… bahut sunder….
ReplyDeleteहो कितना भी विशाल,गहरा समंदर
ReplyDeleteसमेटे है लाखों,तूफान अपने अंदर
हर लहर है थपेड़ा,किसने ये जाना
जीवन है शांत,यूँ ही गुजर जाना
एक संदेश देती हुई सुंदर कविता।
bahut sunder rachna
ReplyDeleteगंभीर अर्थ लिये हुए सुंदर कविता. बधाई.
ReplyDeleteगंभीर अर्थ लिये हुए सुंदर कविता. बधाई.
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