तालाब में उठी वो छोटी सी लहर
फैल जाती है जिस्म-ओ-जिगर पर
लेकिन,बहुत शांत!!!
देती है गहरी खोह,’अब’तलाशो खुद को।
समंदर की तरह न वो शोर मचाए
बरबस ही ध्यान,न कभी खीँच पाए
फिर भी जीवन से,पहचान करा जाए
वो छोटी सी लहर…
हर हाल में है शांत,न कोई कौतूहल
न इक नज़र मे,किसी को खींच पाए
दृढ़ निश्चय है जीवन,कोमलता से कह जाए
वो छोटी सी लहर…
हो कितना भी विशाल,गहरा समंदर
समेटे है लाखों,तूफान अपने अंदर
हर लहर है थपेड़ा,किसने ये जाना
जीवन है शांत,यूँ ही गुज़र जाना
फिर क्यूँ भला हम,न ये जान पाए
हर बात को कितने,आराम से समझाए
वो छोटी सी लहर…




इन्दू सिंह 

http://hridyanubhuti.wordpress.com/




15 comments:

  1. वट वृक्ष में स्थान देने के लिए ह्र्दयाभार .....

    सादर
    इंदु

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  2. वाह ...बहुत ही बढिया।

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  3. बहुत सुन्दर |
    आभार |

    ये लहरें ही हैं असल, अन्तर्घट-हिल्लोल |
    नेह-कंकरी करे नित, तन मन में किल्लोल ||

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  4. बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित कविता, बधाईयाँ !

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  5. अच्छी है सकरात्मता कि परिचाक है

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  6. सकारात्मक चिंतन को परिभाषित कराती कविता .

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  7. गहन अर्थ लिए ...सुंदर अभिव्यक्ति ...
    बहुत अच्छी लगी ...
    आभार.

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  8. bahut gehre bhav ki rachna............

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  9. vo chhoti si leher… vakayi kuch kehti hai hum sab se… bahut sunder….

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  10. हो कितना भी विशाल,गहरा समंदर
    समेटे है लाखों,तूफान अपने अंदर
    हर लहर है थपेड़ा,किसने ये जाना
    जीवन है शांत,यूँ ही गुजर जाना

    एक संदेश देती हुई सुंदर कविता।

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  11. गंभीर अर्थ लिये हुए सुंदर कविता. बधाई.

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  12. गंभीर अर्थ लिये हुए सुंदर कविता. बधाई.

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