मरासिम....

"दर्द आँखों में छलक जाए, तो छुपायें कैसे,
'वो जो अपने थे, उन्हें अपना बनाएं कैसे...'

'दर्द' मिलता है कभी 'हवाओं' से, तो कभी 'बारिश' से,
'साथ बीता हुआ वो 'सावन', हम भुलाएँ कैसे....'

'कभी गुज़री थी 'ज़िन्दगी', तेरे 'पहलु' में 'जन्नत' की तरह,
'अब फिर से ये 'ज़िन्दगी', 'जन्नत' बनाएं कैसे....'

'तुम तो चले गए, मुझसे 'बेसबब' 'रूठ' कर,
'अब वापिस तुम्हे अपनी 'ज़िन्दगी' में, बुलाएं कैसे....

'कहते थे तुम कभी जो 'आइना' मुझको,
'अब इस 'आईने' में तुम्हे, तुम्हारी 'शकल' दिखाए कैसे...'


'दे रही हैं 'सदाएँ' आज भी इस 'दिल' की 'धड़कन' तुमको,
'पर सोचते हैं तुम्हे ये 'आवाज', सुनाएँ कैसे...'

'इक 'भरम' पाला है मैंने, मेरे 'जहन' के कोने में,
'बरसों के ये 'मरासिम', इक पल में हम मिटायें कैसे...."




मानव मेहता
http://saaransh-ek-ant.blogspot.com/
http://meri-shayeri.blogspot.com/

14 comments:

  1. क्या कहने, बहुत सुंदर

    'कहते थे तुम कभी जो 'आइना' मुझको,
    'अब इस 'आईने' में तुम्हे, तुम्हारी 'शकल' दिखाए कैसे...'

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  2. वो जो अपने थे , फिर से उन्हें अपना बनायें कैसे ...
    सुन्दर !

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  3. बहुत सुन्दर गज़ल...

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  4. वाह ...बहुत खूब ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  5. गज़ब के भावो को समेटे एक बहुत ही सुन्दर गज़ल्।

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  6. 'दे रही हैं 'सदाएँ' आज भी इस 'दिल' की 'धड़कन' तुमको,
    'पर सोचते हैं तुम्हे ये 'आवाज', सुनाएँ कैसे...'

    'इक 'भरम' पाला है मैंने, मेरे 'जहन' के कोने में,
    'बरसों के ये 'मरासिम', इक पल में हम मिटायें कैसे...."
    अति सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

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  7. बढ़िया रचना...
    सादर बधाई...

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  8. आप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।

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  9. विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं.

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  10. बधाई के पात्र हैं, दर्द को कहने की अनोखी शैली

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  11. आज आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१२) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /कृपया आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कमना है /आपका ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /

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