हमारे लिए कोई और कैसे कुछ कह सकता है
ना सुनते हुए भी हमने सुना है एक दूजे को
उस आवाज़ की पहचान कोई और कैसे कर सकता है
दो प्यार करनेवालों की एकात्मकता में
किसी तीसरे की गवाही मुनासिब नहीं .....



रश्मि प्रभा
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दूरी कब? दूरी कैसी?दूरी कहाँ?

कोई अगर ये कह दे
कि हमारे मध्य समय ने उत्पन्न की है दूरी ............
तो मैं यह मान सकती नहीं
क्यूंकि
मेरा ख्याल ,तुम्हारे पास
और तुम्हारा ख्याल मेरे पास
जिस पल पहुँच जाता है
समय तो वहीँ रुक जाता है
तो दूरी कब ?दूरी कैसी ? दूरी कहाँ ?
कोई अगर यह कह दे
कि तुम्हारी मेरी दूरी
समय की नहीं वरन स्थानों की है दूरी..................
तुम रहते हो दूर वहाँ
और मैं रहती हूँ दूर यहाँ
पर, मैं और तुम तो आ जाते हैं पास
जिस क्षण कर लें एक दूसरे को याद
तो दूरी कब? दूरी कैसी? दूरी कहाँ?
कोई अगर यह कह दे
कि स्थान की नहीं वरन अलग व्यक्तित्व होने से दूरी है................
पर, यह तो संभव ही नहीं है
क्यूंकि
तुम मेरी अस्मिता का ही रूप हो
और मैं तुम्हारी पहचान हूँ
तो दूरी कब? दूरी कैसी?दूरी कहाँ?
कोई अगर यह कह दे
कि तुम और मैं अलग व्यक्तित्व नहीं वरन भिन्न आत्मा होने से दूर हैं................
पर यह तो संभव ही नहीं है
क्यूंकि
आत्माएं भले भिन्न हों पर परमात्मा तो एक है
और इसीलिए शायद ,
तुम्ही नज़र आते हो मुझे हर ओर
तो दूरी कब? दूरी कैसी? दूरी कहाँ?
ये दूरी: मेरी-तुम्हारी
एक भ्रम है
जो "हमें "
"मैं" और "तुम" में बांटती है
वरना "ऐक्य" है मुझमें -तुममें
"हम" के रूप में
"परम ब्रहम" के स्वरुप में .


मेरा फोटो

डॉ निधि टंडन

15 comments:

  1. वाह..बहुत ही बढि़या प्रस्‍तु‍ति ।

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  2. कि हमारे मध्य समय ने उत्पन्न की है दूरी ...
    to ye kevl bhana hoga.
    good kavita.

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  3. श्रेष्ठ रचना , आभार.

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  4. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तु‍ति ।

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  6. आपका चयन सदैव श्रेष्‍ठ ही होता है ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  7. रश्मिप्रभा जी...आपकी सुन्दर पंक्तियों से मेरी कविता का जो परिचय दिया गया है...उसके लिए आभारी हूँ साथ ही साथ ...रचना को चुनने के लिए आपका धन्यवाद !!

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  8. एकात्मता हो तो दूरी नहीं होती!
    सुन्दर प्रस्तुति!

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  9. बहुत सुन्दर .. भावमय

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  10. अब कहाँ मैं और कहाँ तुम !
    अच्छी कविता!

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  11. तुम और मैं अलग व्यक्तित्व नहीं वरन भिन्न आत्मा होने से दूर हैं................
    पर यह तो संभव ही नहीं है
    क्यूंकि
    आत्माएं भले भिन्न हों पर परमात्मा तो एक है.... प्रशंसा के लिए उचित शब्द नहीं मिल रहे.... :)

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  12. rashmijee ke shabd aur nidhijee ki kavita.....don hi lazabab.

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