बन्द हैं चौखट के उस पार
अतीत की कोठरी में
पलों के रत्न जड़ित
आभूषण
एक दबी सी आहट
सुनाती
एक दीर्घ गूंज
समय चलता
अपनी उलटी चाल
घिरता कल्पनाओं का लोक
लम्हों को परिचालित करता
अपने अक्ष पर
प्रतिध्वनित हो उठती
अनछुई छुअन
सरिता बन जाता
समुद्र का ठहराव
हरित हो उठती
पतझड़ की डालियाँ
लघु चिंतन में
सिमट जाता
पूरा स्वरूप
बन जाता
फिर......
एक रेत का महल
खुशियों का लबादा ओढ़े
दस्तक देता प्रलय
ढेर बन गए महल में
दब जाती
वो गूंज
रत्नों पर फन फैलाए
समय का नाग
डस लेता
देता एक सुलगता ज़ख्म
रिसता है जो
शाम ढले
उस चौखट को देखकर..........
My Photo

सुमन 'मीत'
http://www.sumanmeet.blogspot.com/
http://www.arpitsuman.blogspot.com/

16 comments:

  1. रिसता है जो
    शाम ढले
    उस चौखट को देखकर....
    बहुत ही बढि़या ...।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर ..समय की उलटी चाल पर सब कुछ वैसा ही सुनहरा और बाद में समय का नाग...उम्दा ..बहुत सुन्दर कविता

    ReplyDelete
  3. बेहद गहन भावो का समावेश्।

    ReplyDelete
  4. कुछ ज़ख्मो को कहीं पनाह नहीं मिलती।

    ReplyDelete
  5. एक रेत का महल
    खुशियों का लबादा ओढ़े
    दस्तक देता प्रलय
    ढेर बन गए महल में
    दब जाती
    वो गूंज

    बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं।

    सादर

    ReplyDelete
  6. भावपूर्ण व उत्कृष्ट रचना,बधाई !

    ReplyDelete
  7. भावपूर्ण व सुन्दर रचना,.... दीपावली की शुभकामनाएं..

    ReplyDelete
  8. समय का नाग
    डस लेता
    देता एक सुलगता ज़ख्म
    सुन्दर बिम्ब .. भावपूर्ण रचना

    ReplyDelete
  9. बहुत ही बेहतरीन पंक्तियां

    ReplyDelete
  10. prabhat ji bahut bahut aabhar..meri rachna ko prakashit karne ke liye..aur sabhi doston ka bahut bahut shukriya pasand karne ke liye...

    ReplyDelete
  11. अच्छी कविता..........
    शूल की तरह चुभते भाव.......
    लेकिन आप की ज्यादातर कवितायेँ नकारात्मक और विछोभ की क्यूँ.....?

    ReplyDelete
  12. शब्दों का खूबसूरत मायाजाल !
    बहुत बढ़िया !

    ReplyDelete

 
Top