तुम ने क्या चाहा, नहीं जाना
मेरी तलाश रात से दिन तक
आज भी जारी है
ढूंढती हूँ कुछ शायराना शब्द
जो सबसे अलग
सबसे जुदा
सिर्फ तुम्हारे लिए हो
जिनको लेकर तुम जानो
उन सारे लम्हों की अंतहीन यात्रा को
जहाँ हर पेड़ , हर शाख, हर कलरव में
ओस की थिरकती बूंदों में
बारिश की बूंदों में
खाली गुनगुनाती सड़कों में
...........
मैंने सिर्फ तुमको पुकारा है

रश्मि प्रभा



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तलाश

तुम मुझे अच्छे लगे थे
और,
इस अभिव्यक्ति को
मैं
कुछ हटकर
नए शब्दों के साथ
प्रस्तुत करना चाहता था
इधर,
मैं उलझा रहा शब्दमाला में
उधर
तुमने परम्पराओं के सांचे
बहुत तलाशे थे
हम दोनों में कोई तो भटका था
अपनी अपनी खोज में
लेकिन कौन?


शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
http://shahidmirza.blogspot.com/
http://shama-e-adab.blogspot.com/

13 comments:

  1. वाह ... बहुत खूबसूरत भाव रचना का ....

    मैं उलझा रहा शब्दमाला में
    उधर
    तुमने परम्पराओं के सांचे
    बहुत तलाशे थे

    बहुत खूब ...

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  2. kammal ka shabd sanyojan
    utkrisht bhav rachna me

    badhai kabule

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  3. हम दोनों में कोई तो भटका था
    अपनी अपनी खोज में
    लेकिन कौन?

    एक अनुत्तरित प्रश्न...
    कोमल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति।

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  4. तुमने परम्पराओं के सांचे
    बहुत तलाशे थे
    हम दोनों में कोई तो भटका था

    बहुत खूबसूरती से बात कह दी है ...

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  5. तलाश में अटकते भटकते मन के कोमल अहसासों की, दिल को गहराई से छूने वाली खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  6. हम दोनों में कोई तो भटका था
    अपनी अपनी खोज में
    लेकिन कौन?

    बस यही प्रश्न अनुत्तरित है…………बेहद उम्दा रचना।

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  7. दीदी,
    अब कौन सा उन्नीस है और कौन सा बीस ....
    शाहिद जी और आपकी रचना दोनों एक से कमाल के हैं ...
    इतने सुन्दर भाव कि प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं ...

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  8. वाह ! कितना सुन्दर संयोजन .....
    रश्मि जी आपकी और शाहिद जी आपकी ....आप दोनों की कविता एक दुसरे को कितनी खूबसूरती से कोम्लिमेंट कर रही है ....दोनों में गज़ब के भाव और भावों गज़ब की गहराई है .
    इसी प्रस्तुति पाठक के लिए नायब तोहफे से कम नहीं :)
    आप दोनों को बहुत बहुत बधाई

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  9. मेरी तलाश रात से दिन तक
    आज भी जारी है
    ढूंढती हूँ कुछ शायराना शब्द
    जो सबसे अलग
    सबसे जुदा
    सिर्फ तुम्हारे लिए हो

    और


    इस अभिव्यक्ति को
    मैं
    कुछ हटकर
    नए शब्दों के साथ
    प्रस्तुत करना चाहता था
    इधर,
    मैं उलझा रहा शब्दमाला में

    क्या बात है !
    कवि मन एक ही तलाश में है ,सच है कि
    भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिये शायद सही और सच्चे शब्दों की खोज हमेशा ही जारी रहेगी
    बहुत सुंदर कविताएं हैं दोनों ही
    दोनों रचनाकारों को बधाई!

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  10. मैंने सिर्फ तुमको पुकारा है
    सुन्दर है रश्मि जी.
    @
    हम दोनों में कोई तो भटका था
    अपनी अपनी खोज में
    लेकिन कौन?
    कमाल है शाहिद जी, आप हिन्दी कविता भी इतनी अच्छी लिखते हैं? हम तो आपको बस शायर ही मानते थे, आपका तो कविता पर भी पूरा अधिकार है.

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  11. कविता के इस प्रयास के प्रकाशन और पाठकों द्वारा स्वीकार करने के लिए आभार.

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  12. शायद लीक से हटने के कारण आप ही रास्ता भटक गए .

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