वक्त हो तो बैठो
दिल की बात करूँ....
कुछ नमी हो आंखों में
तो दिल की बात करूँ...
तुम क्या जानो,
अरसा बीता,
दिल की कोई बात नहीं की,
कहाँ से टूटा
कितना टूटा-
किसी को ना बतला पाई,
रिश्तों के संकुचित जाल में
दिल की धड़कनें गुम हो गईं !
पैसों की लम्बी रेस में
सारे चेहरे बदल गए हैं
दिल की कोई जगह नहीं है
एक बेमानी चीज है ये !
पर मैंने हार नहीं मानी है
दिल की खोज अब भी जारी है....
वक्त है गर तो बैठो पास
सुनो धड़कनें दिल की
इसमें धुन है बचपन की
जो थामता है -रिश्तों का दामन
फिर.............
वक्त हो तो बैठो,
दिल की कोई बात करूँ............

रश्मि प्रभा



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'कोयला ' भये ना 'राख'


सालों से
बक्से में
बंद
पीले पड़ चुके
कागजों पर
कभी
उकेरे गए
तुम्हारे एहसास
आज
वक़्त की
धूल झाड़
बिखर गए
क्वार की
नर्म धूप से
मेरे आँगन में....
कांपती उँगलियों से
छुआ
तो
नमी
कुछ
अनबुझे
लफ़्ज़ों की
उतर आई
पलकों पर
मेरी ...
सुलगते अरमान
अधबुने सपने
सुनहरे दिन
रुपहली रातें
सब इतरा रहे हैं
आज
मन के
विस्मृत
कोने में
सांस लेते हुए....
फूँक दो
अपनी साँसों की
आंच से
इन अधबुझे
नम शोलों को
वरना
ये भी
शिकायत कर बैठेंगे
कि
ना ये
'कोयला'
हुए ना
'राख '


()मुदिता गर्ग
http://roohshine-lovenlight.blogspot.com/

मैं साहित्य की विधाओं के बारे में नहीं जानती...बस सीखने की कोशिश में हूँ..और मन के भावों को यथावत लिखने की कोशिश करती हूँ.. साहित्य का तकनीकी ज्ञान नहीं किन्तु कोई त्रुटियाँ बताता है तो उसे सुधारने की कोशिश करती हूँ..लेखन के क्षेत्र में अभी १.५ साल से हूँ...पढ़ने का शौक हमेशा से रहा है..
शिक्षा -स्नातकोत्तर-(गणित),बी.एड
व्यवसाय- शिक्षक
निवास स्थान -बरेली

18 comments:

  1. सुन्दर कविता.. मन के झंझावातो को कहती हुई..

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  2. qvar ki narm sa dhoop sa failna aur aakhir me ki gayi shikayat ..dono baaten bahut hi badhiya lageen... mummasi ko bahut din baad padha achha laga... :)

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  3. शायद पहली बार पढ़ा है मुदिता जी को...

    बहुत अच्छी प्रभाव छोड़ने वाली रचना.

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  4. वक्त है गर तो बैठो पास
    सुनो धड़कनें दिल की
    इसमें धुन है बचपन की
    जो थामता है -रिश्तों का दामन
    फिर......

    बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां

    वरना
    ये भी
    शिकायत कर बैठेंगे
    कि
    ना ये
    'कोयला'
    हुए ना
    'राख '

    मुदिता जी की यह पंक्तियां सुन्‍दर लगीं


    बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  5. बहुत सुन्दर कविता है पहली बार पढा है मुदिता जी को । मेरी बेटी का नाम भी मुदिता है आज ही उसके पास से आयी हूँ दिल्ली से। धन्यवाद रश्मिजी । मुदिता को बधाई।

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  6. बहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति..........

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  7. पहली बार मे ही गहरा प्रभाव छोडा है……………एक बेहद सशक्त रचना।

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  8. मन के बंद तलघरों में कैद अहसासों की नि:शब्द आहटों को उकेरती गहन और मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  9. मुदिता जी सरल शब्दों में सुन्दर तरीके से अपनी बात कह गई है ...
    इतना गरीब हुआ इंसान कि आज सबकुछ है पर दो पल का समय नहीं है किसीके पास ...

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  10. गज़ब कोम्बीनाशन...
    मुदिता जी को पहली बार पढ़ रही हूँ और मैम को पढ़ना तो आदत होती जा रही है... न पढो तो अधूरा सा लगता है...

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  11. रश्मि जी मुश्किल यही है जब दो चाहने वाले मिलते हैं तो वक्‍त होने पर भी वे दिल की बात नहीं करते
    । बिछड़ते ही उन्‍हें फिर से मिलने की और दिल की बात करने चाह सताने लगती है। तभी यह दिल से निकलता है वक्‍त हो तो बैठो पास....।
    *
    मुदिता जी की कविता में भी कुछ ऐसी ही बात है।

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  12. वक्त हो तो बैठो
    दिल की बात करूँ....
    कुछ नमी हो आंखों में
    तो दिल की बात करूँ...

    sunder panktiyan, ati sunder ehsaas!

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  13. रश्मि जी,
    आपका बहुत आभार ..आपकी रचना बेहद खूबसूरत है...समय की कमी ही तो कभी हवा नहीं लगने देती उन पीले पड़े कागजों को जो सालों से बक्से में बंद पड़े होते हैं...



    @ अरुण चन्द्र जी,स्वप्निल ,शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' जी ,सदा जी ,निर्मला जी ,सुमन मीत जी ,वंदना जी ,आलोक जी ,डोरोथी जी .इन्द्रनील जी ,पूजा जी ,राजेश जी एवं गुड़िया जी

    आप सबने स्नेह दिया रचना को मैं बहुत आभारी हूँ..
    शुक्रिया

    मुदिता

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  14. फूंक दो
    अपनी साँसों की
    आंच से
    इन अधबुझे
    नम शोलों को....
    वरना ना रह पाएंगे ...
    कोयला और ना ही राख ...
    कल्पना में गीली लकड़ी जलती हुई साकार हो रही है
    पीड़ा की सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  15. दोनों ही कविता बहुत अछ्छी है.

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  16. सुलगते अरमान
    अधबुने सपने
    सुनहरे दिन
    रुपहली रातें
    सब इतरा रहे हैं
    आज
    मन के
    विस्मृत
    कोने में
    सांस लेते हुए..
    मुदिता जी बेहद सुंदर रचना, पढ़कर दिल खुश होगया.

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  17. बहुत सुन्दर......गहरी अभिव्यक्ति

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