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एक सिहरती उम्मीद
सर्द मौसम की हवाओं सी
हर रात मेरे दरवाज़े
एक दस्तक रख जाती है
एक एक करके
न जाने कितनी दस्तकें
इकट्ठी हो चली हैं
बस अब बसंत आनेवाला है !


रश्मि प्रभा







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एक सिहरती उम्मीद
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तेरे साथ की एक उम्मीद है,
दिल से जुड़ी हुई,
एक सिहरती उम्मीद.
जब जब दिल धड़कता है,
धड़कन की आवाज़ पर,
उम्मीद और भी सिहर उठती है.
सहेज कर रखती हूँ मैं,
उस उम्मीद को सबसे छुपाकर.
एक दिन दुनिया से लड़ते हुए,
बड़ी बोझल हो चली मैं.
सागर किनारे जाकर,
धकेल आई बेदर्दी से,
उस उम्मीद को लहरों के क्रीडांगन में.
और चल पड़ी खुद किनारे से दूर,
दिल दर्द से भारी हो चला था.
मुझे क्या पता था वो चाँद है,
कि वो 'मेरा' चाँद ही तो है,
जो समंदर में ज्वार भाटा लाना जानता है.
जो लहरों को खींच,
दूर ज़मीन तक ले जाना जानता है.
सिहरती हुई उस उम्मीद ने लहरों के साथ,
हौले से मेरे पैरों में दस्तक दी.
ऐसी दस्तक जिससे खुद मैं,
ज़ोर से सिहर उठी.
कस के फिर दिल से लगा लिया,
उस उम्मीद को मैंने.
आखिर वो एक सिहरती उम्मीद ही तो है,
जो इस अधूरे प्यार में भी,
जीने की वजह दे रही है ....

कुहू गुप्ता
http://www.facebook.com/kuhoo.gupta.





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सिहरती उम्मीद
ये जो हर पल
देखते हो तुम
दीवारों पे नाचते काले साये -
नाउम्मीदी के,
धोखा और चोट के ।
ये जो जोखिम है,
मुहब्बत के दिए जलाने में ।
ये जो थकन है,
और निराशा ।
ये जो सब
तुम्हे दिखाई देते हैं,
वो इसलिए,
क्यूंकि तुमने
की हुई है अपनी पीठ,
उस दिए की तरफ,
जो तुम्हारे पीछे हैं ।
ज़रा मुड़ो और देखो,
एक सिहरती उम्मीद की लौ
आज भी है जिंदा,
भर लो फिर से आँखों में
सपने !

इन्द्रनील Bhattacharjee ........."सैल"
http://indranil-sail.blogspot.com/




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एक सिहरन उम्मीद की

ज़िंदगी की राहें
और उम्मीद का दामन
चलते रहते हैं
साथ - साथ,
तार - तार
होने लगती हैं
जब उम्मीदें
तब भी
नहीं छोडते
उनका साथ ,
निराशा भरे कदम
ठिठकते तो हैं
पर रुकते नहीं ,
घिसटते हुए ही सही
पर चलते रहते हैं
अनवरत अपनी
मंजिल की ओर .
ज़िंदगी के
न जाने कितने
ताल- तलैया
खेत - खलिहान
नदी - झील
पार करते हुए
कदम आज
पहुँच गए हैं
तपते रेगिस्तान में ,
संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,
बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ..

संगीता स्वरुप
http://geet7553.blogspot.com/





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लरजती उम्मीद (सिहरती हुई )

जल्दी उठो ...रामपतिया आई नहीं अभी तक , साला भी पिसा नहीं , आटा भी नही गूंधा हुआ ...अब खाना कैसे बनेगा ...मुझे देर हो रही है ...ुम जाकर देख आओ, क्यों नहीं ही है ...3 दिन हो गए हैं ...

तेजी से घर में घुसते हुए नीरा के कदम रुक गए ...

मतलब महारानी अभी भी सो ही रही है ...

.पड़ोस में ही रहने वाली अपनी सहेली सीमा से मिलने आई नीरा ने जा कर उसे झिंझोड़ द दिया ....

तुम्हे कोई शर्म है या नहीं ...इतने दिनों बाद लम्बी छुट्टियों में आई हो और पसरी रहती हो इतनी देर तक , ये नहीं कि आंटी की थोड़ी हेल्प ही कर दे ...

कभी -कभी ही तो आती हूँ...तो आराम से नींद तो पूरी कर लूं ...अपना वॉल्यूम कम करो तो ..कुशन से अपने कान ढकती सीमा महटियाने लगी ...

अब तुम ही संभालो इसे , मैं तो भाग रही हूँ ...पहले ही लेट हो गयी हूँ ...

आप जाईये आंटी ...इसको तो मैं देखती हूँ ...
सीमा रसोई में घुस गयी ...

महारानी , उठो अब ...चाय पी लो ...आंटी स्कूल गयीं ...दुबारा कोई चाय नहीं बनाने वाला है ...

थैंक यू ....चाय का गरमागरम कप हाथ में लटी सीमा उठ गयी ..
इस रामपतिया को क्या हो गया , आ नहीं रही ४ दिन से ...सब काम मुझे ही देखना पड़ रहा है ...

कही गाँव चली गयी हो ..

अरे नहीं , अभी तो ज्यादा समय नहीं हुआ उसे गाँव से आये ...उसका बेटा आने वाला था ...शहर में कोई अच्छी नौकरी मिली है उसे ....दोनों सहेलियां चाय सुड़कते बाहर बरामदे में आ बैठी

...बरामदे से सटे बगीचे में गुडाई करते देख किशन को आवाज़ लगाई ," किसना ...तनी रामपतिया का खबर लेकर आओ तो ...कही नहीं आ रही है ..४ दिन हो गयी ल ...जा दौड़ के देख तो ..."
चाय पीकर दोनों बतियाते हुए बगीचे में टहलती रही ....

दीदी जी , दीदी जी ...हाँफते किसान की आवाज सुनकर दोनों दौड़कर बरामदे में आ गयी ...

का भईल रे ...

उ दीदी जी ...उहाँ ढेर लोंग रहे ....का जाने का बात बा ...पुलिसवा भी रहे ... हम तो भागे आईनी ...

चल , देख कर आते हैं ...क्या बात है ...दोनों सहेलियाँ साथ लपक ली ...
रामपतिया के घर का नजारा देख दोनों स्तब्ध रह गयी ...पुलिस वाले बता रहे थे ...बुखार था इसे दो -तीन दिन से ....पेट में कुछ अन्न नहीं गया ...पहले से हड्डियों का ढांचा भूख बर्दाश्त नहीं कर पाया ..कल से बेहोश पडी थी ...

ओह! धम से बैठ गयी वहीँ ...

३-४ घरों में काम करके कमाने वाली रामपतिया ने अपनी मेहनत की कमाई से बेटे को पढने लिखने शहर भेजा ...इतनी स्वाभिमानी कि काम करके लौटते गृहस्वमिनियाँ खाना खाने को कहती तो साफ़ मना कर देती ...
" ना ...बहुरिया ...भात पका के आईल बानी " ..
.रात दिन कुछ न कुछ मांग कर ले जाने वाली अन्य सेविकाओं के मुकाबले उसे देखना सीमा और नीरा को सुखद आश्चर्य में डालता था ....भीड़ को हटा और पुलिस वाले को विदा कर दोनों उसे रिक्शे में लेकर डॉक्टर के पास भागी ...ग्लूकोज़ की दो बोतलों ने शरीर में कुछ हरकत की ...

नीरा बिगड़ने लगी थी उस पर ... का जी ...बीमार थी तो कहलवा नहीं सकती थी ... जो प्राण निकाल जाता तो पाप किसके मत्थे आता ...उ तो बेटा लौटने वाला हा शहर से ...सोचा है ...का होता उसका ....

बबी ...गुस्सा मत कीजिये ..हम कहाँ बुझे थे कि ऐसन हो जाएगा ...हमसे उठा ही नहीं गया कि कि कुछ बना कर खा लेते ...और प्राण कैसे निकलता ...बिटवा जो आये वाला है ...

उन लरजती पलकों में हलकी सी नमी के बीच ढेर सरी
उम्मीद लहलहा रही थी ....सीमा और नीरा उसके जज्बे के आगे नतमस्तक थी .. हड्डियों का वह ढांचा .अचानक उन्हें फौलादी लगने लगा था ...


वाणी शर्मा






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गुलशन के ताज़ा खिले
फूलों पर मंडराती तितलियों जैसे
खूबसूरत,
नाज़ुक
किसी दिन पूरा होने का
पल पल
इंतज़ार करते
कल्पनाओं की खुशबू से
महके हुए सपने,

दिन रात की भागदौड़ के बीच
थकन के बावजूद
अपनी रफ़्तार
कायम रखने की जुस्तजू में
ज़रूरतों की सड़क पर
ज़िन्दगी की हक़ीक़त

और
इन सबके बीच
सपनों में रंग भरने
आपाधापी भरे जीवन के
हालात बदलने का दिलासा देती
मेरे आग़ोश में बैठी है
एक
सिहरती हुई उम्मीद.
_________________

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

16 comments:

  1. एक एक करके
    न जाने कितनी दस्तकें
    इकट्ठी हो चली हैं ...


    सभी एक से बढ़कर एक प्रस्‍तुतियां ....आभार ।

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  2. सारी प्रस्तुतियाँ लाजवाब ……………एक ही भाव के रंग अलग होते हुये भी ्जैसे गुलदस्ते मे अलग अलग किस्म के फूल होते है ऐसा आभास दे रही हैं।

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  3. रश्मि जी ,

    एक ही विषय आधारित विभिन्न सोच और सब अलग सी आहट लिए हुए ....आपकी यह प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी ...आभार ...मुझे भी इसमें शामिल करने के लिए ..

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  4. वाह , सिहरती उम्मीदों में जीवन को धनात्मक रूप में देखने की लालसा को पढना अच्छा लगा . मरुभूमि में नखलिस्तान की उम्मीद थामे जिंदगी चली जा रही है .

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  5. कुहू गुप्ता जी, संगीता स्वरुप जी, शाहीद मिर्ज़ा जी, और वाणी शर्मा जी बहुत अच्छे और सुन्दर तरीके से उम्मीद की बात किये हैं ... इन बेहतरीन रचनाओं के बीच मेरी रचना को स्थान मिला इसके लिए आपको अनेक धन्यवाद दीदी !
    और आपने जो बहुत कम शब्दों में उम्मीद के बारे में कह दिया वो अनवद्य है !

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  6. कितनी सारी उम्मीदें, जैसे उमीदों का मेला-सा लगा हो...
    लगता है जैसे हर दिल में एक ही अरमान जगा हो...
    सारी रचनाएँ बहुत अच्छे थीं...
    वाणी जी कि रचना में अपनी भाषा को पढ़कर मज़ा आ गया...

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  7. सभी एक से बढ़ कर एक लगी बहुत बढ़िया है हर रचना की अभिव्यक्ति

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  8. वाह सारे दिग्गज एक साथ एक ही विषय पर....मजा आ गया.बेहतरीन प्रस्तुति रश्मि दि !

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  9. बहुत सुंदर , एक उम्मीद के ऊपर चली कलम ने कितने आयामों से जिन्दगी की तस्वीर दिखा दी. बस सबकी अलग अलग उम्मीद से जुड़े सबके अलग अलग सपने.
    यही तो एक ऐसी भावना है जिसके सहारे इंसान पूरा का पूरा जीवन गुजर देता है और कभी वह पूरी होती है और फिर कभी वह उम्मीद उम्मीद ही रह जाती है.

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  10. वाह रश्मि जी, आपने बताया भी नहीं, कि ये विशेष प्रायोजन किया जाना है...
    बहुत अच्छा रहा ये सरप्राइज...बधाई.

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  11. एक सिहरती उम्मीदों के गुलदस्ते में शामिल सभी की रचनाएँ बेहतरीन लगी ..... . सभी को हार्दिक बधाई .. और दीदी जी को एक ही विषय पर आधारित सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

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  12. सिहरती उम्‍मीदों का वटवृक्ष।

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  13. बढिया प्रस्तुति। बेकन ने कहा था उम्मीद उत्तम जलपान है, यह रात्रि का निकृष्ट भोजन नहीं। इस जलपान के साथ पवित्र वट्वृक्ष के नीचे जो आप सबों ने आराधना की है, वह ज़रूर पूरी होगी।

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  14. एक सिहरती उम्मीद
    सर्द मौसम की हवाओं सी
    हर रात मेरे दरवाज़े
    एक दस्तक रख जाती है
    *****************
    सहेज कर रखती हूँ मैं,
    उस उम्मीद को सबसे छुपाकर
    *****************
    एक सिहरती उम्मीद की लौ
    आज भी है जिंदा,
    भर लो फिर से आँखों में
    सपने
    ******************
    ज़िंदगी की राहें
    और उम्मीद का दामन
    चलते रहते हैं
    साथ - साथ
    *******************
    उन लरजती पलकों में हलकी सी नमी के बीच ढेर सरी
    उम्मीद लहलहा रही थी ....
    *********************
    दिन रात की भागदौड़ के बीच
    थकन के बावजूद
    अपनी रफ़्तार
    कायम रखने की जुस्तजू में
    ज़रूरतों की सड़क पर
    ज़िन्दगी की हक़ीक़त

    और
    इन सबके बीच
    सपनों में रंग भरने
    आपाधापी भरे जीवन के
    हालात बदलने का दिलासा देती
    मेरे आग़ोश में बैठी है
    एक
    सिहरती हुई उम्मीद.
    **********************
    वाह रश्मि जी बहुत सफल आयोजन है
    बहुत बहुत धन्यवाद इतनी सुंदर रचनाओं के लिये
    बस हम अपनी उम्मीदों को सिहरने न दें थाम लें,संभाल लें

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  15. सभी रचनाकार बधाई के पात्र हैं

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  16. सारी ही रचनाए एक से बढ़ कर एक. वाणी जी की कहानी भी बहुत अच्छी लगी.

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