कर्म , उपदेश , परिणाम चीख चीख कर सत्य बताते हैं
सुनते सभी हैं , पर करते वही हैं - जिसमें उनकी दिलचस्पी होती है !



रश्मि प्रभा

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अवैध

हर जगह हर गली हर मोड
बिना अपवाद
पसरी हुई अवैधता....
क़ानून की किताबों या फिर पावन किताबों के
किसी भी मानदंड के मुताबिक़ ....
अवैधता ही अवैधता...
फिर भी......
भाव भंगिमाओं की चुगली करते
'सब चलता है ' का इज़हार ..
न कोई पाप बोध न कोई कृतज्ञता ....

कुटिल निष्क्रियता...
मिथ्याबोध
नित प्रति बढ़ती जाती
अवैधता की अंतहीन सी लकीर
ऐसे में दर किनार होते रहते
मानवीय सत्कर्म ....

ऐसे परिदृश्य में
राजनीति के विदूषकों के हथकंडे
और घटिया कारनामें ...
नहीं छटेगा यह गहराता कुहासा
सब कुछ चलता है की मनोवृत्ति से
और खुद की भी अवैध संलिप्तताओं से ...

हर रोज कोई न कोई नया बखेड़ा
स्थितियों को और बिगाड़ता
फिजां को बर्बाद करता ....
और भी भ्रमित करता जाता है
फिर भी ,लोगों में संतुष्टि की अनुभूति
आखिर किस प्रकार और कैसे ?

अरे भद्रजनों ,आँखे खोलिए ..
कुछ तो महसूस कीजिये ...
परिवेश के बिगड़ते हालात पर
तनिक तो गंभीरता से सोचिये
हमारा दिमाग अब भी साथ है हमारे
नहीं हुआ है पूरी तरह से बर्बाद ...
हम अब भी छेड़ सकते हैं जिहाद
काबू कर सकते हैं हालात को
और हो सकते हैं फिर से आबाद |



~ ज्योति मिश्रा

14 comments:

  1. अतिउत्तम विवेचन युक्त और जाग्रति प्रेरक रचना।
    गागर में सागर सम भाव संयोजन!!
    बधाई ज्योति जी!! बेहद भाव प्रवण!!

    उत्तम कृति की प्रस्तुति के लिए अनेकों आभार रश्मि जी!!

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  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति.....

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  4. मेरी घरेलु भाषा भोजपुरी है.. इच्छा हुई की भोजपुरी में प्रतिक्रिया दूँ...

    बहुत बढ़िया लिखले बनी.. आभार.. राउर प्रतिक्रिया के हमरो बा इंतिजार.. एक बेर जरूर आइब.. राउर स्वागत बा...

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  5. बहुत सुन्दर भावो को सहेजा है।

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  6. अवैध आज के परिवेश में वैधता पाता जा रहा है...अवैध खनन हो या निर्माण धडल्ले से चल रहा है, शिकायत भी किससे करें..फिरभी सजग तो रहना होगा हम सबको...

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  7. बहुत अच्छी रचना ,चेताती हुई..

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  8. भावों को सहेजती भावमयी सुंदर अभिवक्ती...

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  9. एक दमदार बात कहने के लिये चुने हुये शब्द, वाह! बहुत शानदार और दमदार बात! वाह!

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  10. nice stork for benevolence by beautiful poem .... thanks .

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  11. खुबसूरत प्रस्तुती....

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  12. सुन्दर अभिव्यक्ति है...

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