ग़ज़ल

मुझे मुस्कान के, बेबाक मंज़र याद करते हैं.
मुसाफिर बेवतन हूँ, सैकड़ों घर याद करते हैं.

जिन्हें आँगन बहुत प्यारे, उन्हीं के भाग्य में राहें,
जिन्हें राहों से निस्बत है, उन्हें दर याद करते हैं.

तुम्हारी सिम्त से आकर, जिन्होंने जिस्म ये चूमा
अभी तक सिसकियाँ लेकर, वो पत्थर याद करते हैं.

नदी हो तुम, तुम्हारे सामने, औकात क्या मेरी,
मैं कतरा हूँ मगर मुझको समंदर याद करते हैं.

अभी तक हिचकियाँ सी आ रहीं हैं लाश को मेरी,
सुना है, मारने के बाद, खंजर याद करते हैं.

उन्हीं का आसमां, जिनमें, कलेजा है परिंदों का,
वो रह जाते हैं जो टूटे हुए पर याद करते हैं.


सुनोगे तुम ज़माने बाद भी, सबसे यही यारों,
"तरुण" की शायरी के, लोग, तेवर याद करते हैं.




तरुण प्रकाश http://7tarunprakash.blogspot.in

11 comments:

  1. नदी हो तुम, तुम्हारे सामने, औकात क्या मेरी,
    मैं कतरा हूँ मगर मुझको समंदर याद करते हैं!

    सारी पंक्तियाँ श्रेष्ठ है, किस-किस को याद करूँ....
    आभार

    ReplyDelete
  2. उन्हीं का आसमां, जिनमें, कलेजा है परिंदों का,
    वो रह जाते हैं जो टूटे हुए पर याद करते हैं ....
    सही कहा .... !
    तरुण" की शायरी के, लोग, तेवर याद करते हैं ....
    करते रहेगें सदियों तक .... !!

    ReplyDelete
  3. वाकई आपके तेवर याद रहेंगे। हर शेर खूबसूरत था, बस काफिया मिलाने के लिए नहीं, पूरे मन से लिखा गया..

    ReplyDelete
  4. नदी हो तुम, तुम्हारे सामने, औकात क्या मेरी,
    मैं कतरा हूँ मगर मुझको समंदर याद करते हैं...

    बहुत खूब ... गज़ब का शेर है इस लाजवाब गज़ल का ...

    ReplyDelete
  5. बहुत ही बढि़या।

    ReplyDelete
  6. अच्छी ग़ज़ल है। तरूण जी को बधाई

    ReplyDelete
  7. bhaai is vatvrksh ki yeh gazal me chori se tod kar le jaa rhaa hun or sinaa zori se meri fecbook par lga rhaa hun .akhtar khan akela kota rajsthan

    ReplyDelete
  8. उन्हीं का आसमां, जिनमें, कलेजा है परिंदों का,
    वो रह जाते हैं जो टूटे हुए पर याद करते हैं.

    वाह! सारे के सारे शेर खूबसूरती से कहे हुये! वाह!

    ReplyDelete
  9. बेहतरीन गजल .......... मुबारका जी

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन गजल .......... मुबारका जी

    ReplyDelete

 
Top