अपने जब गैर बन जाते हैं ,तो पहले होता है गम ,फिर मिलता है एक आधार ,जीवन को समझने का,जाने कितनी गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं ,एक नज़रिया मिलता है जानने का ,अपनों की पहचान क्या है !फिर मिलता है एक विस्तार , अनगिनत अनजाने चेहरे अपनेबहुत अपने बन जाते हैं........और यही होता है सत्य !!!
रश्मि प्रभा





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नाम: नरेन्द्र व्यास नरेन
जन्म दिनांक: ४ अक्टूबर
शिक्षा: एम-ए. (हिंदी)
अध्ययनरत: पी. जी. डी. सी . ए.
लेखन विधा: गध्य - पद्य
प्रकाशित रचनाएँ: कृत्या , सृजनगाथा {अंतर जाल पत्रिकाए} एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में .
संपादक: आखर कलश {अंतर जाल हिंदी साहित्य पत्रिकाए}, आखर अलख [राजस्थानी}
सम्प्रति: सरकारी अभियांत्रिकी महाविद्यालय बीकानेर { राजस्थान }
सम्पर्क सूत्र: 09636208300


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(१)
पल
पल
कुछ बीते पल
कुछ भीगे
कुछ सूखे
मौसम से
बीतकर भी
कहा बीत पाते हैं
ज़ख्म
जो दिखाई नहीं देते
वो ही रेखांकन है
उन पलों का
रीतता है
जमा पानी
पोखर से
नहीं रीतता तो
अस्तित्व
उन पलों का
ऋतु चक्र सा
अंकित रहता हैं
तटों के किनारे तो
कभी बुढाए
दरख़्त के तनो पे
***

(२)

तृष्णा...!

दूर तक बियाबानना दरख़्त
ना परिंदे
पोखर भी अब
रीत चुके हैं
रीता अबतो
आँखों का पानी भी

अब नहीं निकलते आँसू

बूँदें बन जो
घिर-घिर
सिंचित कर दे
बंजर मन को

गोधन विचरे
मृत, हड्डियां बन
उगाये भी तो क्या?

मयूर अब भी रोता है
तप्त धोरों पर
जलते पांवो की
तपिश से
पावस जान नहीं

सुनो !
तुमने सुना?
टिटहरी का स्वर!
देखो !
नज़र आया है एक
श्यामल मेघखंड
अस्तांचल की ओर
अभी-अभी !
बिजली कौंधी है उधर !

नहीं ! नहीं !
क्रंदन है ।
दिन ढल चुका है
आकाश तारों से
भर चुका है
दूर गगन में
आज फिर;
एक तारा टूटा है....
आज फिर मांगी है
एक बूंद;
जीवन की
टूटने तक
एक और सितारा !
() नरेन्द्र व्यास नरेन

25 comments:

  1. sundar shabd sanyojan

    if i say in one line , its too high thought to comment on for me...

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  2. रीता अबतो
    आँखों का पानी भी

    अब नहीं निकलते आँसू


    बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

    दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं

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  3. कुछ पल बीत कर भी नहीं बीत पाते ...
    जिन पलों में ही लिखी जाती हैं ये कवितायेँ ...

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  4. बहुत अच्छी भावमय रचनायें है। नरेन्द्र जी को बधाई।

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  5. दोनो ही रचनायें गज़ब की सोच को जन्म देती है……………।सुन्दर प्रस्तुति।

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  6. नरेन् जी की कविताएं अलग दृष्टि लिए होती हैं.. भाव और मर्म उनमे प्रधान होता है.. सुंदर कविता.. वटवृक्ष के समान अपनी पहचान लिए .

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  7. बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

    दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं

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  8. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  9. रीता अबतो
    आँखों का पानी भी

    अब नहीं निकलते आँसू...........

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  10. गहरी संवेदनाएँ लिए है दोनो रचनाएँ .... जीवन के खोखले पन को उकेरा है अपनी रचना में नरेंद्र जी ने ... बहुत खूब ....

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  11. बेहतरीन प्रस्‍तुति।
    आपकी कवितायें पढ़कर मैं तो यही कहूँगा कि:
    वक्‍त क्‍या होता है इसपर क्‍या कहूँ
    हर बरस इक चक्र पाता हूँ नया।
    और
    मैनें सागर की बात कब सोची
    एक कतरा भी प्‍यास होती है

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  12. श्री नरेन्द्र व्यास जी की बहुत ही गहराई और संवेदन से भरी हुई रचनाएँ "वटवृक्ष" पर पढ़कर खुशी हुई | रश्मिजी ने काफी मेहनत से सींचा है इस "वटवृक्ष" को... पूरी टीम को अभिनन्दन

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  13. बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  14. बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

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  15. दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं...!

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  16. बहुत अच्छी प्रस्तुति ...

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  17. गज़ब की सोच,नरेन्द्र जी को बधाई।

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  18. बहुत भावपूर्ण और उम्दा रचनाएँ.

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  19. क्या सुनना पसंद करोगे नरेंद्र जी
    आपकी कविताएं अच्छी है। इतने भर से काम नहीं चलने वाला
    सच बताउं अगर आत्म खुषी का ख्याल न हो तो

    बहुत पीछे की कविताएं हैं।
    कविता भावों के साथ कला भी है
    ते मित्र अभी और संवारने की आवष्यकता है

    तारीपफों के चक्कर भंवर में मत पड़ो
    अपनी कविताओं को किसी बड़ी कसौटी पर कस कर देखो

    नहीं तो ऐसे ही लिखो और तारीफ पाते रहो .
    कया करूं ऐसा ही लिख पा रहा हूं जय हो ..

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  20. नरेन्द्र व्यास जी से कवि के रूप में पहली बार साक्षात् हो रहा है , … और यह कोई बुरा अनुभव भी नहीं है ।

    आपकी यहां प्रस्तुत दोनों कविताएं निराश नहीं करती । शिल्प , कथ्य , भाव चुस्त - दुरुस्त हैं ।
    'तृष्णा...!' अधिक प्रभावित करती है , शब्द और भाव बहुत सुंदर अवगुंठित किए हैं नरेन्द्र भाई ने ।
    नज़र आया है एक
    श्यामल मेघखंड
    अस्तांचल की ओर
    अभी-अभी !
    बिजली कौंधी है उधर !

    सीखनी पड़ेगी सुंदर शब्दावली नरेन्द्र भाई से …

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  21. nice poem and thanks to poet Mr. Narendra .
    good wish for your poetry journey..
    yours
    yogendra kumar purohit
    M.F.A.
    BIKANER,INDIA

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  22. नरेंद्र व्यास जी की कविता का शिल्प लयबद्ध व एक एक शब्दों के मोतियों को बेहतरीन तरीके से उपयुक्त स्थान में गड़ा गया है.. दोनों रचनाये बहुत सुन्दर ..

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  23. नरेन्द्र की कविताओं में जीवन से जूझने का साहस और संकल्प दिखायी पड़्ता है. यह ऊर्जा उन्हें आगे ले जायेगी.

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  24. acchi soch, bhavpurna prastuti....

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  25. सुनो !
    तुमने सुना?
    टिटहरी का स्वर!
    देखो !
    नज़र आया है एक
    श्यामल मेघखंड
    अस्तांचल की ओर
    अभी-अभी !
    बिजली कौंधी है उधर !

    नरेन्द्र जी, कमाल का लेखन है आपका...
    दिल की गहराईयों में उतरने वाली प्रस्तुति...
    बधाई स्वीकार करें.

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