अच्छा लगता है
जब कोई यूँ सोचता है
बहुत गौर से देखो
तो परिवर्तन भी नज़र आता है
पर देखते देखते पढ़ी लिखी महिला भी
खुद के चक्रव्यूह में घिरी नज़र आती है ...


रश्मि प्रभा



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आओ कुछ और करें ..

क्रांति कर दिया हमने तो
अरे महिलाओं की बात कर रहा हूँ.....
एकदम बराबरी का दर्ज़ा दे दिया जी
कई कानून बना दिए इसके लिए
अब औरत को दहेज़ के लिए नहीं जलाया जा सकता
कार्यालयों में उसके साथ छेड़खानी नहीं की जा सकती
उसके कहीं आने जाने पर पाबन्दी नहीं है
और तो और ...
हमने सेनाओं में भी उसके लिए द्वार खोल दिया हैं
वगैरह वगैरह!
वो जरा सी अड़चन है नहीं तो
उसे ३० प्रतिशत आरक्षण भी देने वाले हैं 'हम '
दोस्तों!
न जाने क्यूँ मुझे लगता है
कि नाटक कर रहे हैं हम
बढती हुई नारी शक्ति से हतप्रभ हम
उसे किसी न किसी तरीके से
बहलाए रखना चाहते हैं...
उसे उसकी स्वाभाविक स्थिति से
आखिर कब तक रोकेंगे हम ...?
वो जाग गयी है अब
और हमने पुरुष होने का टप्पा बांधा हुआ है आँखों पर,
गुजारिश है कि अब हम
उसे कुछ और न ही दें तो अच्छा है.
वो वैसे ही बहुत कृतज्ञ है हमारी
हर जगह हमारी भूखी निगाहों से बचते हुए
बगल से निकल जाने पर बे वजह धक्का खाते हुए
बसों में ट्रेनों में ,
स्कूल जाते हुए, आफिस जाते हुए
बाज़ार जाते हुए,
"उधर से नहीं उधर सड़क सुनसान है "
जरा सा अँधेरा हो जाये तो ...
ऊपर से सामान्य पर अन्दर से कांपते हुए ...
वो हर समय
हमारी कृतज्ञता महसूस करती है...


अगर सच में हमें कुछ करना है
तो क्यूँ न हम यह करें ...कि
दाता होने का ढोंग छोड़ कर
उनसे कुछ लेने कि कोशिश करें
मन से उनको नेतृत्त्व सौप दें
कर लेने दें उन्हें अपने हिसाब से
अपनी दुनिया का निर्माण
तय कर लेने दें उन्हें अपने कायदे
छू लेने दें उन्हें आसमान
और हम उनके सहयात्री भर रहें ...
दोस्तों !
आइये ईमानदारी से इस विषय में सोंचें !!
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आनंद द्विवेदी

21 comments:

  1. अगर ऐसा सोचने लगे तो पुरुष वर्चस्व का क्या होगा? आपने सुन्दर आह्वान किया है मगर ऐसा सम्भव नही है ………कोई नही चाहता अपना स्थान छोडना।

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  2. उनसे कुछ लेने कि कोशिश करें
    मन से उनको नेतृत्त्व सौप दें
    कर लेने दें उन्हें अपने हिसाब से
    अपनी दुनिया का निर्माण

    बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. बहुत सुंदर सोच है आपकी ....
    आप आमत्रित भी कर रहे हैं इसी सोच पर विचार -मैं कहूँगी कि अगर नारी को अपने हाल पर छोड़ा जाए तो वो बंधन ही चाहती है ...बांधना चाहती है ....अपने परिवार को...अपने समाज को ....अपने देश को ..शायद समस्त विश्व को ....एक सूत्र में ...!!लेकिन कुंठा नहीं चाहती ....पर ये थोड़ी काल्पनिक सी बात हो जाती है ....असल ज़िन्दगी में तो दुर्गा शक्ति का रूप माँ कलि में परिवर्तित कर राक्षसों का संहार करती हुई ज़िन्दगी आगे बढ़ती है ...!!
    सुंदर सोच से भरी सुंदर कविता है आपकी .

    Rashmi ji aapka bhi abhar is kavita ke chayan keliye-hum tak pahuchane ke liye ...!!

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  4. दाता होने का ढोंग छोड़ कर
    उनसे कुछ लेने कि कोशिश करें
    मन से उनको नेतृत्त्व सौप दें

    यदि ऐसा सच ही होजाए तो स्वयं ही सब मिल जायेगा ..न मांगने की ज़रूरत होगी न देने की

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  5. उनसे कुछ लेने कि कोशिश करें
    मन से उनको नेतृत्त्व सौप दें
    कर लेने दें उन्हें अपने हिसाब से
    अपनी दुनिया का निर्माण
    saसर्थक सन्देश देती रचना के लिये लेखक बधाई के पात्र हैं।

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  6. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  7. संगीता जी ने मार्के की बात कही है ...यदि पुरुष ऐसे सोचने लगे तो नारियों को किसी विशेष आरक्षण की जरुरत नहीं होगी ...
    लाजवाब !

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  8. वो वैसे ही बहुत कृतज्ञ है हमारी
    हर जगह हमारी भूखी निगाहों से बचते हुए
    बगल से निकल जाने पर बे वजह धक्का खाते हुए
    बसों में ट्रेनों में ,
    स्कूल जाते हुए, आफिस जाते हुए
    बाज़ार जाते हुए,
    "उधर से नहीं उधर सड़क सुनसान है "
    जरा सा अँधेरा हो जाये तो ...
    ऊपर से सामान्य पर अन्दर से कांपते हुए ...
    वो हर समय
    हमारी कृतज्ञता महसूस करती है... हकीकत बयां करती हुई सुंदर रचना………मगर भाग्य से मिले इस मानव जीवन रूपी गाड़ी की धुरी को, अपनी बुद्धि व विवेक से मर्यादा के भीतर रहकर "सर्वे भवन्तु सुखिन:" का भाव रखते हुए अपने भीतर समाये हुए सद्गुणों से अलंकृत करते हुए नर-नारी मे संतुलन कायम रख चलाना ही उत्तम होगा। केवल नर अथवा केवल नारी के भरोसे की बात नही है।

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  9. नारी पुरुष और पुरुष नारी का सहचरी /सहचर है! दोनों एक दूसरे से लेते देते और लाभान्वित होते हैं -यह द्वैध क्यों ?

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  10. मैं आनंद, रश्मि दी का छोटा भाई
    जरा भी कवि नही हूँ...साहित्य को कुछ नही दे सकता ...समाज को कुछ नही दे सकता हूँ
    मगर सोंचता बहुत हूँ और कहता हूँ जो बात होती है मन में ..हाँ ये कविता लिखने से बहुत पहले से शायद बरसों पहले मेरे यहाँ भगवान ने एक बेटी भेजी बहुत मंदिरों में प्रार्थना करने के बाद....
    तब से एक ही बात किया है उसे माहौल देने की कोशिश ...इस कविता को घर में जीवन में पहले उतारा है...लिखा है बहुत बाद में ..
    आप सभी अपने क्षेत्र के बहुत प्रसिद्ध लोग हैं...आपको मेरी रचना पसंद आयी मेरे लिए ये किसी पुरस्कार से कम नही है !

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  11. कर लेने दें उन्हें अपने हिसाब से
    अपनी दुनिया का निर्माण ---- kaash .... gar aisa ho jaaye to samaaj kaa roop hi badal jaye.. sunder sandesh deti rachna..

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  12. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (16.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  13. ek dam sahi soch aur ahwan kiya he aapne, aapko dil se badhai!

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  14. अगर सच में हमें कुछ करना है
    तो क्यूँ न हम यह करें ...कि
    दाता होने का ढोंग छोड़ कर
    उनसे कुछ लेने कि कोशिश करें
    मन से उनको नेतृत्त्व सौप दें

    अच्छा विचार...
    बेहद सुन्दर रचना.........
    शुभकामनाओं सहित....
    बधाई.....

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  15. अगर सच में हमें कुछ करना है
    तो क्यूँ न हम यह करें ...कि
    दाता होने का ढोंग छोड़ कर
    उनसे कुछ लेने कि कोशिश करें
    मन से उनको नेतृत्त्व सौप दें

    अच्छा विचार...
    बेहद सुन्दर रचना.........
    शुभकामनाओं सहित....
    बधाई.....

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  16. sab kahene ki bate hai..koi purush kabhi bhi stri ko koi hakk nahi de sakta ...ye salo pahele bhi tha aur aaj bhi hai..agar aisa na hota to aaj ke padhe likhe jamane me bhi nariya jalti nahi kabhi suna hai koi purush jal ke mar gaya.. nahi are purush to apni aarthik taklif ke karan aatmhatya ka sochte hai to bhi apni biwi ko bhi mar dalte hai fir marte hai...kisne hakk diya hai par vo use akela chor ke mar bhi nahi sakta..log nari ko abla kahete hai to purush ko kya kaha jaye pata nahi ?

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