जिन रिश्तों में मिठास नहीं होती
कोई धड़कन नहीं होती
जाने क्यूँ
लोग उसे निभाने की सलाह देते हैं !
शुभचिंतक
और प्यार करनेवाले
कभी भी घुट घुटकर
मरने की बात नहीं करते ...
तो प्रश्न है ---
ऐसा क्यूँ करते हैं वे !
एक ही उत्तर मिलता है
'हम तो डूबे ही
तुमको भी डुबाएंगे '...
आखिर कब तक होगा
यह डुबोने का सिलसिला ?
....
रिश्ते जब अपना अर्थ खो देते हैं
तो उससे जुड़ा हर प्रश्न
ह्रदय को मथता है ...
कौन सा सुकून पाते हैं ये लोग
ह्रदय मंथन से ?
जानबूझकर उठाये सवाल
उनके मस्तिष्क की अपाहिजता ही तो है !
बेनामी बेमानी बोझ को रिश्ता कहना
क्या रिश्ते की आत्मा का अपमान नहीं ?
...
जीवन की नश्वरता ईश्वर के हाथों में है
पर उसे अपने हाथों अंजाम देना
ईश्वर को नकारना
ईश्वर का अपमान नहीं ?
कुछ तो डरो
तिल तिल के मरनेवालों को
थोड़ी तो खुली हवा दे दो
उमस भरे कमरे की जंग लगी खिड़कियों को
खोलो तो सही ...

जाने क्यूँ
तुम निर्विकार बैठे रहते हो
जाने क्यूँ
किसी की बेचैन करवटों पर
तुम कुटिल मुस्कान बिखेरते हो
और कमाल ये
कि ऐसा करके तुम्हीं आंसू भी बहाते हो
अपने को बीमार दिखाते हो
तिल तिलकर मरनेवालो को
कटघरे में खड़ा करते हो !
और पंच परमेश्वर बने
अपने फैसले पर
ज़रा भी नहीं हिचकते ....
जाने क्यूँ !




रश्मि प्रभा

16 comments:

  1. jane kyon aisa hota hai...lekin aisa hota rahega...rishte ko na chahte hue bhi dhona parega....aisa kabhi kabhi karna hi hota hai...

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  2. rashmi ji ,
    ap ki kavitaen man mastishk ko jhakjhorne aur jhinjhodne men saksham hotee hain ,main kuchh panktiyon ka chayan kar pane men asamarth hoon ,
    bahut badhiya !

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  3. ज़िदगी का कटु सत्य दर्शाती रचना ....!!
    बहुत सुंदर लिखा है ...

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  4. इसी सवाल का जवाब सभी ढूँढ रहे है मगर शायद जवाब कहीं खो गया है…………॥सु्न्दर अभिव्यक्ति।

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  5. vanchhit abhvyakti ka sthan leti huyi rachana bhav purn lagi . badhayi ji.

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  6. जाने क्यूँ
    तुम निर्विकार बैठे रहते हो
    जाने क्यूँ
    किसी की बेचैन करवटों पर
    तुम कुटिल मुस्कान बिखेरते हो
    और कमाल ये
    कि ऐसा करके तुम्हीं आंसू भी बहाते हो
    अपने को बीमार दिखाते हो
    तिल तिलकर मरनेवालो को
    कटघरे में खड़ा करते हो !
    और पंच परमेश्वर बने
    अपने फैसले पर
    ज़रा भी नहीं हिचकते ....
    जाने क्यूँ !

    bas ye hi kahugi didi....is kavita ne aankhe bhar di....har kisi ke dil ka sach kahe diya aapne

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  7. Akbar Ehsan to me
    show details 3:54 PM (26 minutes ago)
    यह कविता बहुत अच्छी लगी. ख़ास कर ये पंक्तियाँ:

    तिल तिल के मरनेवालों को
    थोड़ी तो खुली हवा दे दो
    उमस भरे कमरे की जंग लगी खिड़कियों को
    खोलो तो सही ...

    मुझे मेरे favorite कवि, Kahlil Gibran, की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं:

    But let there be spaces in your togetherness,
    And let the winds of the heavens dance between you.

    कभी वक़्त हो तो Kahlil Gibran की The Prophet पढना. शायद तुमने पढ़ी हो.

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  8. jindgi ke katu such ko parstut karti apki rachna...

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  9. रिश्ते जब अपना अर्थ खो देते हैं
    तो उससे जुड़ा हर प्रश्न
    ह्रदय को मथता है ...
    कौन सा सुकून पाते हैं ये लोग
    ह्रदय मंथन से ?
    जानबूझकर उठाये सवाल
    उनके मस्तिष्क की अपाहिजता ही तो है !
    बेनामी बेमानी बोझ को रिश्ता कहना
    क्या रिश्ते की आत्मा का अपमान नहीं ?
    ... arthpurna panktiyan. prbhawi lekhan ....badhai !

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  10. रिश्ते जब अपना अर्थ खो देते हैं
    तो उससे जुड़ा हर प्रश्न
    ह्रदय को मथता है ...
    कौन सा सुकून पाते हैं ये लोग
    ह्रदय मंथन से ?
    जानबूझकर उठाये सवाल
    उनके मस्तिष्क की अपाहिजता ही तो है !
    बेनामी बेमानी बोझ को रिश्ता कहना
    क्या रिश्ते की आत्मा का अपमान नहीं ?
    ... arthpurna panktiyan. prbhawi lekhan ....badhai !

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  11. भावमय प्रस्तुति। आभार।

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  12. रिश्ते जब अपना अर्थ खो देते हैं
    तो उससे जुड़ा हर प्रश्न
    ह्रदय को मथता है ...
    कौन सा सुकून पाते हैं ये लोग
    ह्रदय मंथन से ?

    यह शब्‍द यूं ही नहीं कहे गये होंगे यकीनन ... एक मंथन को उजागर करती प्रस्‍तुति ।

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  13. "कुछ तो डरो
    तिल तिल के मरनेवालों को
    थोड़ी तो खुली हवा दे दो"
    दीदी,प्रणाम.
    आज सोच को यही दिशा चाहिए.लेखकवर्ग में ये संवेदना भरी होती है.अतः आज उन्हें ही समाज का दिशा-सूचक यंत्र बनना पड़ेगा.आपकी रचना काफी प्रेरक है .

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  14. puri bat bahut achchi lagi par khas ye bat...

    तिल तिलकर मरनेवालो को
    कटघरे में खड़ा करते हो !
    और पंच परमेश्वर बने
    अपने फैसले पर
    ज़रा भी नहीं हिचकते ....
    जाने क्यूँ !

    kitna sahi kaha hai ye...sach...

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