पतझड़ में गिरे शब्द
फिर से उग आए हैं
पूरे दरख़्त भर जायेंगे
फिर मैं लिखूंगी

पतझड़ और बसंत
शब्दों के
तो आते-जाते ही रहते हैं

जब सबकुछ वीरान होता है
तो सोच भी वीरान हो जाती है
सिसकियों के बीच बहते आंसुओं से
कोंपले कब फूट पड़ती हैं
पता भी नहीं चलता

मन की दरख्तों से
फिर कोई कहता है
कुछ लिखो
कुछ बुनो
ताकि गए पंछी लौट आएँ
घोंसला फिर बना लें
शब्दों के आदान-प्रदान के कलरव से
खाली वक़्त सुवासित हो जाये

रश्मि प्रभा






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मेघना महेश मरोलिया
शिक्षा : BMS+M.COM+MBA(USA)
रूचि : फोक डांस , सूफी , ग़ज़ल्स , पुराने हिंदी गाने , पंजाबी गाने सुनना , कुकिंग , लिखना , पढ़ना
Meghna मरोलिया
~कशिश ~
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~ फर्श से अर्श तक तन्हाई ~

कितनी बेहिस-ओ-बेजान गुज़र रही है ज़िन्दगी
कोई आकर कैफियत इसमें दाल दे

ये बढ़ती, थमती हुई सांसों की रफ़्तार
काबू में लेकर कोई हसींन सी चाल दे

उल्जे बिखरे हुए गेसुओं के मानिंद
सीने में शोर करते सवालों को उछाल दे

बर्फ में तनहा जुलस्ता हुआ दरख़्त हु मैं
कोई रौशनी की किरण आये इस सर्द को पिघाल दे

चेहरे को भूल गया है मुस्कुराने का फन
जो एक अरसे से हुआ नहीं, वोह मौजेज़ा कर कमाल दे

जिस कूचे की धुल में सफ़र-इ-तन्हाई काटी
इलाही उस दर-ओ-दीवार में अब न कोई माह-ओ-साल दे


बेहिस-ओ-बेजान - बिना ज़िन्दगी / मुर्दा
कैफियत- रंग/जान
गेसू- बाल
मानिंद - जैसे
दरख़्त -पेड़
सर्द- ठण्ड
फन- अंदाज़/ हुनर
मौजेज़ा - जादू / चमत्कार
कूचे- गलियां
इलाही- अल्लाह
दर-ओ-दीवार -जगह
माह-ओ-साल - महीने और साल
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~ पतझर ~

ज़िन्दगी रातों का नाम है
ज़िन्दगी की वादियों में काली घटाओं की शाम है
ज़िन्दगी यूँ तो तू मुजमे जिंदा है
फिर क्यों जाने मौत का ये संग्राम है

साहिलों पर मचलते हुए ये सैलाब
मेरी आँखों के अश्कों का दूसरा नाम है
सफाइयों में गुज़ार दी ज़िन्दगी मैंने
जाने किन गुनाहों से ज़िन्दगी बदनाम है

पतझर तू ई थी किसी रोज़ एक मौसम बनकर
बेजान ज़र्द लम्हे क्यों इतने मेहरबान है
फुर्सत नहीं दीवार-इ-दिल को सफेद लम्हों से
और जहानभर में रंगों के महल आलिशान है

ए गम तू छोड़ दे अब घर ये मेरा
और कितनी बर्बादी तुने लिखी मेरे नाम है
अब सोना चाहती हूँ मैं सकून से कुछ इस कदर
जहाँ कब्र-इ-घर के दरवाजे पर दस्तक ना सलाम

अश्क - आंसू
ज़र्द - बेजान
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~लफ़्ज़ों का समंदर~


मेरे ज़ेहनों में पलता हुआ लफ़्ज़ों का समंदर
कभी खामोश रहता है...कभी शोर करता है

करने को कर दूँ बयान बातें हज़ारों
पर माजी के रिश्तों के उतरे चेहरों का गुमान होता है

ना कोई अपना था, ना होगा कोई
कहने को साथ रिश्तों का कारवां होता है

जिंदगानी की सख्त पेशकश से गुज़रकर देखा
आगे जाने किन लम्हातों का फरमान होता है


जेहेन-ख़याल / दिमाग
बयान- जताना
माजी - गुज़रा कल
फरमान-हुकम

() मेघना उर्फ़ कशिश

11 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचनायें दिल को छूती हैं।

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  2. दिल को छूती रचनायें !बेहद खूबसूरत!!

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  3. सफाइयों में गुज़ार दी ज़िन्दगी मैंने
    जाने किन गुनाहों से ज़िन्दगी बदनाम है
    अंतस तक भेद गयी ये पंक्तियाँ ...

    लफ़्ज़ों का समंदर कभी खामोश रहता है ..
    कभी शोर करता है ...
    मिजाज़ के साथ लफ़्ज़ों की आवाजाही भी बदलती रहती है ...!

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  4. लफ़्ज़ों का समंदर कभी खामोश रहता है ..
    sunder rachana hai keep it up

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  5. sabhi rachnaye dil ko chhuti hui

    badhai

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  6. शब्दों के आदान-प्रदान के कलरव से
    खाली वक़्त सुवासित हो जाये

    बहुत ही सुन्‍दर, सभी रचनायें बेहतरीन ।

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  7. बहुत भाव पूर्ण रचना हें |एक एक शब्द चुन चुन कर कविता में पिरोया है |

    आशा

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  8. Aap sabhi ko mera Salam aur pranaam.....

    Nawazish!! ..aur Haunsla afzai ka behudd shukria...
    Lafz apne aap nikal aatey hai jab bheetar dil ke mausam zard honey lagtey hai ...

    Mere alfaazon ka maan badhaa diya aap sabne...aur haunsla buland kar diya...

    Khush rahein...

    ~Kashish

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  9. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, हार्दिक शुभकामनाएं.

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  10. जब सबकुछ वीरान होता है
    तो सोच भी वीरान हो जाती है
    सिसकियों के बीच बहते आंसुओं से
    कोंपले कब फूट पड़ती हैं
    पता भी नहीं चलता
    very nice.

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