आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकता
अग्नि नहीं जला सकती
पानी नहीं गला सकता
हवा नहीं सुखा सकती
आत्मा अमर है ... आत्मा एक कलम है , जिसकी नोक भावनाओं की धार पर होती है , कलम ,जो ---शस्त्र को काट सकता है
अग्नि को शांत कर सकता है
निर्मल पानी का स्रोत हो सकता है
वा
हवा
को संगीतमय कर सकता है
रश्मि प्रभा




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वो कलम...

काश ऐसी कलम ईज़ाद हुई होती
जो बस यूँही
चलती रहती बिना रुके
और मन की हर बात
लिख जाती
बिना चुप हुए बीच में...

जिसे सोचना पड़ता
कि, किस बात को लिखना है किस तरह???

वो तो बस
चलती मदमस्त पवन की तरह
और उड़ा ले जाती
इस गम और ख़ामोशी के बादलों को कहीं दूर...
या बहती उस चंचल नदिया की तरह
जो सारे कलरव खुद में समेटती
अग्रसर होती है अपनी मंज़िल की ओर...
और एक दिन,
शांत हो जाती है मिलकर
उस अथाह समुद्र से
जो जाने
कितनों का दुःख,
कितना शोर समेटे हुए है
अपने-आप में...
परन्तु तब भी शांत है...

पर कभी-कभी वो भी उछाल मारता है
लांघ कर अपनी सीमा
जताता है शायद,
कि,
अब उसका भण्डार भर गया है
या
उसकी कलम भी कहीं खो गयी है...
--

POOJA...
http://poojashandilya.blogspot.com/
http://poojanblogs.com/


18 comments:

  1. काश ऐसी कलम ईज़ाद हुई होती
    जो बस यूँही
    चलती रहती बिना रुके
    और मन की हर बात
    लिख जाती ....


    बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां ...बधाई इस बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये ।

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  2. बहुत सुन्दर कविता ...
    मानव मन में भी अक्सर ऐसे ही शांत भावनाओं के समंदर में तरंगें हिलोल मारते हैं ...

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  3. kash aisi kalam mujhe bhi mili hoti jo likhti jati mere saare bhaavo ko bina kahe hi chup-chaap aur lagaataar... har baar kee tarah hi is baar bhi ek behtareen rachna... kuchh vyastataaon k kaaran idhar kuchh dino se aapko smay nhi de paa raha hun iska khed hai mujhe...

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  4. आत्मा अमर है ... आत्मा एक कलम है , जिसकी नोक भावनाओं की धार पर होती है , कलम ,जो ---शस्त्र को काट सकता है
    अग्नि को शांत कर सकता है
    निर्मल पानी का स्रोत हो सकता है
    हवा
    को संगीतमय कर सकता है
    बहुत सुंदर रश्मि जी ,मैं ने तो कभी इस अंदाज़ में सोचा ही नहीं था,
    *********************

    जिसे सोचना न पड़ता
    कि, किस बात को लिखना है किस तरह???

    क्या बात लिख दी आप ने पूजा जी ,बहुत ख़ूब!
    दोनों ही रचनाकारों को बधाई

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  5. आत्मा एक कलम है ..बहुत खूबसूरत बात ...

    पूजा जी ,

    बहुत अच्छी रचना है ..कलम तो निर्बाध गति से ही चलती है ..मन की भावनाओं को उकेरती हुई ....यदि ऐसी कलम इजाद हुई होती तो सच सबकी कलम अलग अलग इजाद करनी पड़ती ...क्यों की हर एक के मन में अलग अलग तूफ़ान होते हैं :):)
    ऐसी सोच तभी आती है जब हम लिखना तो बहुत चाहते हैं पर लिख नहीं पाते ....

    अच्छी प्रस्तुति

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  6. मानव ह्रदय की भावनाओं को कलम के माध्यम से सुन्दर अभिव्यक्ति दी है।

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  7. बहुत सुन्दर कविता ...!

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  8. या बहती उस चंचल नदिया की तरह
    जो सारे कलरव खुद में समेटती
    अग्रसर होती है अपनी मंज़िल की ओर
    और एक दिन
    शांत हो जाती है मिलकर
    उस अथाह समुद्र से
    जो न जाने
    कितनों का दुःख
    कितना शोर समेटे हुए है
    अपने-आप में

    वाह, बहुत खूब...
    बिल्कुल अनछुए कथ्य को लेकर लिखी गई रचना..अनूठा शिल्प।

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  10. gr8.....new hights of thought...thanx for such a wonderful poem....

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  11. आपकी इस सुन्दर रचना की चर्चा
    बुधवार के चर्चामंच पर भी लगाई है!

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  12. इस बार लगा जैसे पहली कविता और दूसरी कविता आपस में जुड़ी हुई हैं|

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  13. रश्मि जी और पूजा जी..दोनों की ही रचनाएं भावप्रवण मनमोहक है और लग रहा है एक ही रचना का विस्तार है...

    बहुत बहुत सुन्दर !!!

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  14. सुन्दर प्रस्तुति!!!

    कलम के माध्यम से कही गयी भावनाएं स्पर्शी हैं!

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  15. सुंदर रचना के लिए साधुवाद!

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  16. bahut sundar soch hai aur usako dhaalane ke liye badhai.

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