कल रात मुझे पता चला
सपनों में भी कविताएं बनती है
सपनों की धुंधली आकृतियाँ
स्मृतियों के कोहरे से बनती है
कल रात उसने मुझे सपनों में घुसकर जगाया
मैं बुदबुदाई और ज़ोर से चिल्लाई
" माँ, मैं झूठ नहीं बोल रही
...... मेरा घर मत तोड़ो"
पास में सोये मोनू ने कहा मम्मी
तभी मेरी जीभ उलट गई
और आवाज धीमी होते होते मैं फिर सो गई

कल ही मुझे पता चला सपनों की
एक दुनिया होती है
जिसमे नायक
खलनायक और साधारण पात्र होते है
लड़ते है ,झगड़ते है
रोते है ,हँसते है
मगर किसी का कुछ नहीं बिगड़ता
सभी अक्षुण्ण

पर असली दुनिया में हाहाकार
शोरगुल आपाधापी
सारी अवस्थाएँ बदलती है
मनोरोग से प्रेमरोग
प्रेमरोग से मृत्युयोग
नेपथ्य बदल जाता है
सारे पात्र झूठे
सारे संवाद खोखले

काश ! सपनों की दुनिया लंबी होती !
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अलका सैनी 
http://alkasainipoems-stories.blogspot.com/ 

13 comments:

  1. कल रात मुझे पता चला......
    bahut achcha likhi hain......

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  2. गज़ब ……………काश! उफ़ क्या कहूँ अब

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  3. सुन्दर कल्पना से रूबरू कराया आपने!

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  4. कविता कवि की कल्पना, बे-शक सपने पास ।
    शब्दों की ठक-ठक सुने, किन्तु भाव का दास ।।


    छले हकीकत आज की, सपने आते रास ।
    खड़ी मुसीबत न करें, घटे नहीं कुछ ख़ास ।।

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  5. वाह....

    काश सपनो में ही जिया जा सकता...
    या फिर जीवन होता सपनो सा!!!

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  6. यह मात्र कविता ही नहीं, जीवन का एक मनोवैज्ञानिक सत्य भी है। स्वप्न कई बार हमें चमत्कृत कर देते हैं।

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  7. यह मात्र कविता ही नहीं, जीवन का एक मनोवैज्ञानिक सत्य भी है। स्वप्न कई बार हमें चमत्कृत कर देते हैं।

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  8. सपनो की दुनिया का अपना ही मजा है...

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  9. सपनों और हकीक़त का अद्भुत कंट्रास्ट, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  10. काश सपनों की दुनिया लम्बी होती ...
    बहुत खूब !

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  11. aap ki kavita sundar hai ,aur ye sach bhi hai ,banti hai sapno me bhi kavitayen

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  12. कविता तो कविता दिनेश भाई की टिपण्णी भी लाज़वाब .सपने kisi kaa kuchh nahin lete , bhaav kaa abhaav kaa विरेचन करते हैं सपने .सपने n hon तो aadmi paglaa jaaye .

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