धूप
चाँद
रंग
खुशबू .... सबकुछ है ज़िन्दगी में
तुम नहीं पास ... तो जाने कहाँ हैं वे सारे !
धूप तुम्हारे स्पर्श को ढूंढता है
चाँद गुम हो जाता है
रंग मटमैला
खुशबू - कहीं नहीं
तुम आ जाओ इनके लिए .............
रश्मि प्रभा
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धूप
....
उस दिन जब तुम
खड़ी थी मेज के पास,
खिडकी से आकर
धूप का एक कतरा,
छुं लिया था
तुम्हारे चेहरे को ।
आज भी हर रोज़
ठीक उसी समय,
वो आता है खिडकी से,
और ढूंढते रहता है
वो छुवन !
चाँद
....
देखो कितना शैतान है
ये चाँद !
जब तुम थी तो
फैलाकर चांदनी,
मुस्कुराता था ।
आज कितनी देर से
खड़ा हूँ खिडकी के सामने,
और वो छुपकर बैठा है
बादलों के पीछे !
रंग – खुशबू
..........
वो जो ख्वाबों के पौधे
लगाये थे हमने
साथ मिलकर;
उनपर आज खिले हैं
सुख के फूल ।
रंगीन, दिलकश !
पर न जाने क्यूँ,
नहीं है
उनमें खुशबू ।
इन्द्रनील भट्टाचार्जी
Exploration Geologist
हर क्षणिका लाजवाब ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअच्छी है, पर कुछ दिन पहले ही मैंने किसी के ब्लॉग पर पढ़ी थी, कहाँ पढ़ी थी याद नहीं आ रहा|
ReplyDeleteइन्द्रनील जी को उनके Blog पर ही पढ लिया था,सुन्दर बिम्ब उंकेरे है रचनाओ में!
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी,आप का प्रस्तुतिकरण रचनाओं को एक नया आयाम दे देता है!बधाई कमाल के रचनाकारो को मंच देने के लिये!
पहले भी पढी थी और आज भी मगर कविता की खूबसूरती हमेशा उतनी ही ताज़गी लिये है।
ReplyDeleteतीनो ही रचनाएँ अच्छी लगी पर खासकर 'धूप' और 'चाँद' ज्यादा अच्छी लगी. आभार !
ReplyDeleteये क्षणिकाएं पहले भी पढ़ें थी... पर आज कुछ और पंकियों के साथ... खूबसूरती बढ़ गयी इनकी...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कोमल एहसास -
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति -
शुभकामनायें
बहुत शुक्रिया दीदी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए ... और साथ में आपकी भूमिका उन्हें नए आयाम दे रही है ...
ReplyDeleteतीनों रचनाएॅ दमदार है। आभार।
ReplyDeleteतीनो ही रचनाएँ अच्छी लगी पर खासकर 'धूप' और 'चाँद' ज्यादा अच्छी लगी. आभार
ReplyDeleteकोमल अहसासों को समेटे बेहद खूबसूरत क्षणिकाएं. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
एक सुन्दर सा अहशास हैं आपकी छोटी सी कविता में.
ReplyDeleteतीनो एहसास दिल को छू गये। सुन्दर रचना के लिये नील जी को बधाई।
ReplyDeleteरचना को सराहने के लिए सभी सुधीजनो का आभार !
ReplyDeleteतीनो ही रचनाएँ अच्छी लगी पर खासकर 'धूप' और 'चाँद'
ReplyDeletebehad sunder prastuti .
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