धूप
चाँद
रंग
खुशबू .... सबकुछ है ज़िन्दगी में
तुम नहीं पास ... तो जाने कहाँ हैं वे सारे !
धूप तुम्हारे स्पर्श को ढूंढता है
चाँद गुम हो जाता है
रंग मटमैला
खुशबू - कहीं नहीं
तुम आ जाओ इनके लिए .............


रश्मि प्रभा


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धूप
....
उस दिन जब तुम
खड़ी थी मेज के पास,
खिडकी से आकर
धूप का एक कतरा,
छुं लिया था
तुम्हारे चेहरे को ।
आज भी हर रोज़
ठीक उसी समय,
वो आता है खिडकी से,
और ढूंढते रहता है
वो छुवन !

चाँद
....

देखो कितना शैतान है
ये चाँद !
जब तुम थी तो
फैलाकर चांदनी,
मुस्कुराता था ।
आज कितनी देर से
खड़ा हूँ खिडकी के सामने,
और वो छुपकर बैठा है
बादलों के पीछे !

रंग – खुशबू
..........

वो जो ख्वाबों के पौधे
लगाये थे हमने
साथ मिलकर;
उनपर आज खिले हैं
सुख के फूल ।
रंगीन, दिलकश !
पर न जाने क्यूँ,
नहीं है
उनमें खुशबू ।
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इन्द्रनील भट्टाचार्जी
Exploration Geologist

16 comments:

  1. हर क्षणिका लाजवाब ...बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  2. अच्छी है, पर कुछ दिन पहले ही मैंने किसी के ब्लॉग पर पढ़ी थी, कहाँ पढ़ी थी याद नहीं आ रहा|

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  3. इन्द्रनील जी को उनके Blog पर ही पढ लिया था,सुन्दर बिम्ब उंकेरे है रचनाओ में!
    रश्मिप्रभा जी,आप का प्रस्तुतिकरण रचनाओं को एक नया आयाम दे देता है!बधाई कमाल के रचनाकारो को मंच देने के लिये!

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  4. पहले भी पढी थी और आज भी मगर कविता की खूबसूरती हमेशा उतनी ही ताज़गी लिये है।

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  5. तीनो ही रचनाएँ अच्छी लगी पर खासकर 'धूप' और 'चाँद' ज्यादा अच्छी लगी. आभार !

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  6. ये क्षणिकाएं पहले भी पढ़ें थी... पर आज कुछ और पंकियों के साथ... खूबसूरती बढ़ गयी इनकी...

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  7. बहुत सुंदर कोमल एहसास -
    खूबसूरत अभिव्यक्ति -
    शुभकामनायें

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  8. बहुत शुक्रिया दीदी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए ... और साथ में आपकी भूमिका उन्हें नए आयाम दे रही है ...

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  9. तीनों रचनाएॅ दमदार है। आभार।

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  10. तीनो ही रचनाएँ अच्छी लगी पर खासकर 'धूप' और 'चाँद' ज्यादा अच्छी लगी. आभार

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  11. कोमल अहसासों को समेटे बेहद खूबसूरत क्षणिकाएं. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  12. एक सुन्दर सा अहशास हैं आपकी छोटी सी कविता में.

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  13. तीनो एहसास दिल को छू गये। सुन्दर रचना के लिये नील जी को बधाई।

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  14. रचना को सराहने के लिए सभी सुधीजनो का आभार !

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  15. तीनो ही रचनाएँ अच्छी लगी पर खासकर 'धूप' और 'चाँद'

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