आँखों के सपने सिड़ने को हैं
आँखों के सपनों को
दिखा दो सूरज
उनकी जिजीविषा को यूँ मिटने ना दो ....
सपनों को दिखा दो सूरज
स्वप्न
सदियों से
तुम्हारी आँखों में
जो पल रहे हैं
तुम्हारी आँखों में
जो पल रहे हैं
इतिहास होने से पहले
उन्हें एक बार
सूरज दिखा दो
उन्हें एक बार
सूरज दिखा दो
सपनो का
होता है अपना भूगोल
अपनी दिशाएं
अपने मौसम
जो निर्भर होते हैं
मन के भीतर बहने वाली
हवाओं पर
धूप में बिछा दो
मन की चटाई
और उलट पुलट लो
सोते सपनो को
सील गए हैं
दबे दबे
और उलट पुलट लो
सोते सपनो को
सील गए हैं
दबे दबे
ह्रदय की दीवारों के
किसी कोने में
लगने दो वसंती हवा
कि खिल उठेंगे
उनके मुरझाये रंग
और बोल पड़ेंगे
सोये हुए ज़ज्बात
थोड़ी साँसे मिल जाएँगी
सपनों को भी
दे दो
कुछ पंख चुनकर
जो छोड़े थे कबूतरों ने
सपनों को
भरने को उड़ान
उन्मुक्त आकाश में
करने दो
सफ़ेद सेमल के फाहों से तैरते
बादलों से मन की बातें
देर तक
रखने से बंद
अँधेरे कोठरी में
किसी कोने में
लगने दो वसंती हवा
कि खिल उठेंगे
उनके मुरझाये रंग
और बोल पड़ेंगे
सोये हुए ज़ज्बात
थोड़ी साँसे मिल जाएँगी
सपनों को भी
दे दो
कुछ पंख चुनकर
जो छोड़े थे कबूतरों ने
सपनों को
भरने को उड़ान
उन्मुक्त आकाश में
करने दो
सफ़ेद सेमल के फाहों से तैरते
बादलों से मन की बातें
देर तक
रखने से बंद
अँधेरे कोठरी में
या फिर प्राचीर के विस्तार में भी
घुट सकता है दम
फिर ये तो सपने हैं
नाजुक से गौरैया के
नए पंख वाले बच्चों की तरह
छोड़ दो उन्हें स्वछन्द
फिर ये तो सपने हैं
नाजुक से गौरैया के
नए पंख वाले बच्चों की तरह
छोड़ दो उन्हें स्वछन्द
एक बार के लिए
आँखों के सपनों को
दिखा दो सूरज
() अरुण चन्द्र रॉय पेशे से कॉपीरायटर तथा विज्ञापन व ब्रांड सलाहकार. दिल्ली और एन सी आर की कई विज्ञापन एजेंसियों के लिए और कई नामी गिरामी ब्रांडो के साथ काम करने के बाद स्वयं की विज्ञापन एजेंसी तथा डिजाईन स्टूडियो का सञ्चालन. अपने देश, समाज, अपने लोगों से सरोकार को बनाये रखने के लिए कविता को माध्यम बनाया है.
ब्लॉग : http://www.aruncroy.blogspot.com/
ब्लॉग : http://www.aruncroy.blogspot.com/
सपनो का
ReplyDeleteहोता है अपना भूगोल
अपनी दिशाएं
अपने मौसम
जो निर्भर होते हैं
मन के भीतर बहने वाली
हवाओं पर
wah.kitni achchi kavita likhi hai aapne ,man khush ho gaya padhkar.
नाजुक से गौरैया के
ReplyDeleteनए पंख वाले बच्चों की तरह
छोड़ दो उन्हें स्वछन्द
एक बार के लिए
बहुत बढ़िया बात कही है राय जी ने ... स्वप्नों को बंधन में रखना ही नहीं है ...
दे दो
ReplyDeleteकुछ पंख चुनकर
जो छोड़े थे कबूतरों ने
सपनों को
भरने को उड़ान
उन्मुक्त आकाश में
करने दो
सफ़ेद सेमल के फाहों से तैरते
बादलों से मन की बातें
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
swapn jab unmukt hote hai tabhi falibhoot hote hai iske liye unka man ke pinjaron se niakalna jaroori hai...bahut khoobsurat analysis...
ReplyDeleteलगने दो वसंती हवा
ReplyDeleteकि खिल उठेंगे
उनके मुरझाये रंग
और बोल पड़ेंगे
सोये हुए ज़ज्बात
थोड़ी साँसे मिल जाएँगी
सपनों को भी
कि कुछ पल और जी लेगे वे....दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
क्या बात है !! बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteधूप में बिछा दो
ReplyDeleteमन की चटाई
और उलट पुलट लो
सोते सपनो को
सील गए हैं
दबे दबे
ह्रदय की दीवारों के
किसी कोने में
.....सपनों की ओर से धन्यवाद
बहुत अच्छी कविता ..
beautiful sequence of thoughts..
ReplyDeleteसपनों को
ReplyDeleteभरने को उड़ान
उन्मुक्त आकाश में...
Awesome !
.
kya kahne hain...shabdo ki kami ho rahi hai...ek behtareen rachna..!:)
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत शब्द ।
ReplyDeleteअति सुंदर।
ReplyDelete---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्राक़तिक हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति
sakaraatmak aur saarthak rachna keliye arun ji ko badhai.
ReplyDeletesakaraatmak aur saarthak rachna keliye arun ji ko badhai.
ReplyDeletesakaraatmak aur saarthak rachna keliye arun ji ko badhai.
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