दो रोटी ... बड़ी महँगी होती है
कीमत चुकाते चुकाते उम्र बीत जाती है
सपने तार तार हो जाते हैं
कहाँ लौटता है बीता पल ...
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उतरते पानी के साथ
बूढ़ी नीम की फुनगियाँ
पाठशाले की छत
उनचका टीला
सब
धीरे-धीरे लौट रहे हैं,
उतरते पानी के साथ...
रमिया परेशान हाल
सुबकती है
बंधे पर,
क्या लौट पायेगा
वो कमजोर क्षण
वो
नियति चक्र
जब
इसी बंधे पर
छोटे भाई के लिए
दो रोटियों की तलाश मे
वो गवां आई थी
"सब कुछ"
क्या वो भी लौटेगा
उतरते पानी के साथ??
दो रोटी ... बड़ी महँगी होती है
ReplyDeleteकीमत चुकाते चुकाते उम्र बीत जाती है
सपने तार तार हो जाते हैं
कहाँ लौटता है बीता पल ...
........mai bhi kai baar sochta hoon ..past to kabhi aata hi nahi chaahe aap duniya ki saari dhan doulat jhonk do.......
हर किसी को किसी न किसी पल के लौटने का इंतजार होता ही है. बेहद मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteकविता में व्यक्त पीड़ा मन को नम कर गई।
ReplyDeleteजन्म दिन की बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteकुछ चीजें लौट नहीं सकतीं
ReplyDeleteदो रोटी ... बड़ी महँगी होती है
ReplyDeleteकीमत चुकाते चुकाते उम्र बीत जाती है
wah.ekdam sajeev chitr khinch dee hai.sath hi 'happy birthday'.doosri kavita bhi bahut achchi lagi.
क्या वो भी लौटेगा उतारते पानी के साथ ...
ReplyDeleteशब्दों का दर्द भेद गया कलेजे को ..!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteनियति चक्र
ReplyDeleteजब
इसी बंधे पर
छोटे भाई के लिए
दो रोटियों की तलाश मे
वो गवां आई थी
"सब कुछ"
..behad marmsparshi rachna..
उफ़ और आह या काश के सिवा कुछ भी कहा नहीं जा सकता ।
ReplyDeleteधन्यवाद !
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteजन्म दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बेचारी मछुआरन!
ReplyDeleteदो रोटी ... बड़ी महँगी होती है
ReplyDeleteकीमत चुकाते चुकाते उम्र बीत जाती है
सपने तार तार हो जाते हैं
कहाँ लौटता है बीता पल ...
कटु लेकिन सत्य..मर्मस्पर्शी
क्या लौट पायेगा
वो कमजोर क्षण
वो
नियति चक्र
जब
इसी बंधे पर
छोटे भाई के लिए
दो रोटियों की तलाश मे
वो गवां आई थी
"सब कुछ"
बहुत मार्मिक प्रस्तुति..काश जीवन में दो रोटियों की ज़रूरत न होती ..
जीवन का एक कड़वा सच ...इस अभिव्यक्ति में ।
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