पतझड़ में गिरे शब्द फिर से उग आए हैं
पूरे दरख़्त भर जायेंगे फिर मैं लिखूंगी
पूरे दरख़्त भर जायेंगे फिर मैं लिखूंगी
रश्मि प्रभा
=============================================================================
अडवांसड टेक्नॉलजी... परेशाँ सा ख़ुदा !!
हैरां परेशाँ सा ख़ुदा एक दिन, बैठा-बैठा सोच रहा था
इन्सान की खाल चढ़ाए ये मशीन आख़िर किसने बनायी ?
मैंने जो बनाया था "इन्सां", उसमें तो एक दिल भी था !
बेचारा ख़ुदा!! कहाँ सोचा होगा उसने कि उसकी बनायी सबसे अनुपम कृति एक दिन इस क़दर बदल जायेगी कि उसे पहचानना तक मुश्किल हो जाएगा... मनु से उत्पन्न हुआ मनुष्य, मनुष्य ने बनायी मशीन और मशीन ने इस मशीनी युग का मशीनी इन्सान... जिसमें इंसानियत के सिवा बाक़ी सब कुछ है... समय के साथ इन्सान एकदम हाई-टेक हो गया है... रहन-सहन... खान-पान... आचार-विचार... यहाँ तक की बोल-चाल की भाषा भी... हर चीज़ बदल गयी है... और तो और इमोशंस तक प्लास्टिक हो चले हैं...
कम्प्यूटर के इस युग ने ख़ासा प्रभाव डाला है आज की पीढ़ी पर... कुछ चीज़ें तो जैसे आत्मसात सी हो गयी हैं आज हमारी ज़िन्दगी में... आज ये हाल हो गया है की कंप्यूटर ही क्या आम ज़िन्दगी में भी कुछ ढूँढना हो तो मुँह से बरबस ये ही निकलता है की "गूगल" कर लो :) ... पढ़ते हुए अगर किताब में कुछ नहीं मिलता है तो लगता है काश इस किताब में भी Ctrl+F (Find Key) काम करता या फिर कहीं से कुछ देख कर लिखना पड़े तो लगता है "क्या यारCtrl+C (Copy Key), Ctrl+V (Paste Key) होता तो कैसे चुटकियों में काम हो जाता..." कभी कुछ गलती होती तो झट से Ctrl+Z कर के Undo कर देते... ये कुछ ऐसी आदतें और ऐसे जुमले हैं जो बड़ी तेज़ी से प्रचलित हो रहे हैं आज की युवा पीढ़ी के बीच...
इस बदलती दुनिया की बदलती भाषा से प्रेरित हो कुछ बे-ख़याल से ख़याल आये थे कभी और यूँ ही कुछ अब्स्ट्रैक्ट सा लिख गया था... "इमोशंस" और "टेक्नॉलजी" की एक कॉकटेल सी बन गयी है... जाने कैसा स्वाद आया हो... ज़रा चख के बताइये तो :)
"Advanced Technology"
सुनते हैं टेक्नॉलजी बहुत अडवांसड हो गयी है
इन्टरनेट ने इन्सान की दुनिया बदल दी है
दुनिया भर की जानकारी पलों में ढूढ़ देते हैं
ये सर्च इंजन...
मैं बहुत टेक्नॉलजी सैवी नहीं हूँ
मेरी हेल्प करोगे क्या प्लीज़ ?
थोड़ा सा सुकून ढूंढ़ दो इस पर
और थोड़ा सा प्यार और विश्वास
हाँ थोड़े से फ़ुर्सत भरे पल भी...
"Oxygen"
तुम्हारे साथ के पल
अब बहुत छोटे हो चले हैं
इतने, की अब ठीक से
साँस भी नहीं आती
बीती यादों का ऑक्सीजन
कब तक ज़िन्दा रखेगा इन्हें
देखना, एक दिन इन पलों का भी
दम घुट जाएगा...
"Shift+Del"
कोई ई-मेल हो तो डिलीट कर दूँ
चैट हो तो चैट हिस्टरी से इरेज़ कर दूँ
कोई पुराना डॉक्युमेंट हो तो
शिफ्ट+डिलीट कर के
रिसाइकल बिन से भी हटा दूँ
पर क्या करूँ इन यादों का,
कि दिल की हार्ड डिस्क पर
कोई कमांड नहीं चलता...
"Dialysis"
तुम कहते हो
गुज़रे लम्हों को याद ना करूँ
"वो लम्हें" जो हर इक रग में
बह रहे हैं ज़िन्दगी बन कर...
तो फिर आओ
कुछ नये ताज़ा लम्हें
डोनेट कर दें इस रिश्ते को
डायलिसिस कर के
इसे फिर नयी ज़िन्दगी दे दें...
-- ऋचा
अपने बारे में क्या बताऊँ आपको , नवाबों के शहर लखनऊ में पली बढ़ी एक आम लड़की हूँ , a software engineer by profession. लेखिका नहीं हूँ सो शब्दों से खेलना नहीं आता पर सराहना ज़रूर आता है और ज़िन्दगी की छोटी छोटी चीज़ों में खुशियाँ तलाशना आता है ... बच्चों की मासूम किलकारी , फूलों की खुशबु , प्रकृति की शांति , रंग बिरंगी तितलियाँ , हवा में उड़ते गुब्बारे , बारिश की बूँदें , मिट्टी की सौंधी सी महक ... बरबस ही हमें अपनी ओर खींच लेते हैं ... i believe, with all its complications and uncertainties, life is still beautiful and worth living... u just have to face it with a positive attitude and take everything in ur stride !!
सभी एक से बढ़कर एक हैं यह पंक्तियां बहुत सुन्दर बन पड़ी हैं .....
ReplyDeleteपर क्या करूँ इन यादों का,
कि दिल की हार्ड डिस्क पर
कोई कमांड नहीं चलता... लाजवाब ।
रश्मि दी आपको इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई ।
गज़ब गज़ब गज़ब कर दिया…………ये किया है टैक्नोलोजी का सही इस्तेमाल्……………बहुत ही मोहक अन्दाज़ मे प्रस्तुत कर दिया…………बहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteइतनी सुन्दर कविता बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली ... भले ही अंग्रेजी और हिंदी मिली हुई हो पर बहुत सुन्दर ढंग से लिखी गई है ... और बदलती जिंदगी के बारे में इससे बेहतर ढंग से और कोई क्या कह सकता है ... ऋचा जी तो कमाल कर दी है ... हर क्षणिका पढ़ कर मुंह से बस वाह निकलता रहा !
ReplyDeleteएक बात और ... जो लोग सोचते हैं कि कठिन शब्द और शुद्ध हिंदी के प्रयोग से ही केवल अच्छी कविता लिखी जा सकती है उन्हें इन क्षणिकाओं को पढ़ना चाहिए ...
ReplyDeleteदिल की हार्डडिस्क है ही ऐसी कुछ नहीं कह सकते कब कौनसा सेक्टर bad होने के बाद भी जिंदा हो जाए
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
बहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteसारी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक है , वेहतरीन !
ReplyDeleteइन्द्रनील जी,
ReplyDeleteआपने विल्कुल सही कहा कि "जो लोग सोचते हैं कि कठिन शब्द और शुद्ध हिंदी के प्रयोग से ही केवल अच्छी कविता लिखी जा सकती है उन्हें इन क्षणिकाओं को पढ़ना चाहिए ..."
सहमत हूँ इस बात से !
कम्पुटर से आम आदमी को जोड़ती हुई सुन्दर रचना बधाई
ReplyDeleteबहुत कमाल की प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteलगता है बहुत विचार करने के बाद इस रचना का जन्म हुआ है |बहुत अच्छी लगी |
ReplyDeleteबधाई
आशा
दिल की हार्ड डिस्क पर कोई कमांड नहीं चलता ...
ReplyDeleteजब तकनीक जीवन में इस कदर घुसपैठ कर चूका है तो रचनाओं में भी इसकी उपस्थिति लाज़िमी है ..
अनूठी प्रस्तुति !
अद्भुत ...आज की सच्चाई से रु-ब-रु करती क्षणिकाएं ....
ReplyDeleteहिन्दी में ऐसी रचनाओं की अत्यधिक आवश्यकता है। पाठकों का एक ऐसा भी वर्ग है जहॉ प्रौद्योगिकी की शब्दावली दिल तक सहजतापूर्वक पहुंच जाती है।
ReplyDeleteखूबसूरत।
अच्छी लगीं different सी रचनात्मक कवितायें!
ReplyDeleterashmi prabha jee ki do linen aur chanikaen sabki sab lazabab.
ReplyDelete