कई बार होता है ऐसा
जब अकेलापन गहराता है
बुखार से सर तपता है
किसी का स्नेहिल स्पर्श
सर पे गीली पट्टी सा काम करता है ...
सच था या झूठ ... जब तक जानूं
बुखार उतर जाता है
और एक एहसास साथ होता है
हम अकेले नहीं . वह साथ है !
  • रश्मि  प्रभा  

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क्या ऐसा भी हो सकता है भला कभी!!!!!!

जानते हो.....
कल रात सर में,
तेज दर्द हुआ था मुझे.
मालुम नहीं कहाँ से-
लेकिन हाँ,
वो आ बैठी थी मेरे सिरहाने!

ज्यादा तो नहीं...
पर इतना याद है मुझे,
वह तमाम रात,
अपने आसुओं से,
भिगो-भिगो सर पे रक्खी पट्टी,
बदलती रही.

शायद...
कुछ नाराज भी थी,
बोली..रोहित अपना ख्याल भी,
कर लिया करो कभी.
पकड़ हाथ उसका तब कहा मैंने उससे,
कैसे...अब तुम साथ भी तो नहीं होती मेरे?

वह...
मुस्कुराई थी तब,
झुका सर अपना मेरे पलकों को चुम,
कहा उसने-
पगले..ऐसा क्यों कहते हो तुम,
क्या ऐसा भी हो सकता है भला कभी!!!!!!



जब आप कल्पना की दुनिया को जीते हो..
और ऐसा कुछ हो जाता हो!
तो यथार्थ व्यर्थ हो जाता है...है न ?

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रोहित
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परिचय के नाम पर मेरे पास बताने को जयादा कुछ नहीं है.प्रारंभिक शिक्षा डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल,औरंगाबाद (बिहार) से हुआ.१०+२ (बारहवी) सेंट्रल हिन्दू ब्वायज स्कूल,वाराणसी से उत्तीर्ण. वर्त्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ग्रेजुएसन (विज्ञानं विषय से ) कर रहा हूँ.साहित्य में रूचि है बस.
मेरा ब्लॉग लिंक है- http://shabdgunjan.blogspot.com/ 
 

17 comments:

  1. किसी का स्नेहिल स्पर्श
    सर पे गीली पट्टी सा काम करता है ...
    सच था या झूठ ... जब तक जानूं
    बुखार उतर जाता है
    और एक एहसास साथ होता है
    हम अकेले नहीं . वह साथ है !

    वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्‍द रचना आपकी भी और रोहित जी की भी ...आभार इस प्रस्‍तुति के लिये ।

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  2. रश्मि जी ,
    बहुत सुंदर रचना

    और एक एहसास साथ होता है
    हम अकेले नहीं . वह साथ है !

    क्या बात है !और यही अनुभूति जीवन दान दे देती है
    *************
    पगले..ऐसा क्यों कहते हो तुम,
    क्या ऐसा भी हो सकता है भला कभी!!!!!
    रोहित जी ,सुंदर अभिव्यक्ति लिखते रहिये हमारी शुभकामनाएं आप के साथ हैं

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  3. वाह! दोनो रचनायें भावुक करने वाली, मेरा कथन-:

    "कौन मसीहा है यहाँ और कौन यहाँ रहबर है,
    हर इंसान को इस राह अकेले ही चलना होगा।

    या खुदा जहाँ से दर्द मिट जाये,हो सकता नहीं,
    उसकी मिक्दार कम हो ये करना होगा।"

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  4. वाह बेहद खूबसूरत शब्द रचना रोहित्…………बहुत गहरी सोच है इसी प्रकार लिखते रहो।

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  5. दोनों रचनाएँ एक ही अनुभूति देनेवाली और मन को छू लेने वाली. नवोदित ब्लोगर बहुत अच्छा लिखा.

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  6. किसी का स्नेहिल स्पर्श
    सर पे गीली पट्टी सा काम करता है ...
    सच था या झूठ ... जब तक जानूं
    बुखार उतर जाता है
    और एक एहसास साथ होता है
    हम अकेले नहीं . वह साथ है !
    बेहतरीन अभिव्यक्ति है रोहित जी को बधाई।

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  7. दोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर....
    आपको और....रोहित जी को बधाई।

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  8. @ रश्मि प्रभा मैम,
    धन्यवाद आपका जो मेरी रचना को वटवृक्ष पर प्रकाशित हुआ ,

    @all :आप सब का शुक्रिया..
    आपके आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन का अभिलाषी-

    रोहित

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  9. किसी का स्नेहिल स्पर्श
    सर पे गीली पट्टी सा काम करता है ...
    सच था या झूठ ... जब तक जानूं
    बुखार उतर जाता है
    और एक एहसास साथ होता है
    हम अकेले नहीं . वह साथ है !

    पंक्तियाँ दिल को छू जाती हैं..रोहित जी की रचना भी बहुत सुन्दर है..

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  10. सुंदर अभिव्यक्ति दिल को छु लेने वाली , रोहित जी की सुंदर रचना लिखते रहिये शुभकामनाएं!

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  11. कल रात जिंदगी से मुलाकात हो गई आपकी।

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  12. बहुत सुंदर जज़्बात

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  13. बुखार में लाल तपने वाले जानते हैं इस प्यार भरे स्पर्श का असर ...कल्पना हो या यथार्थ !
    बहुत खूबसूरत !

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  14. वह तमाम रात,
    अपने आसुओं से,
    भिगो-भिगो सर पे रक्खी पट्टी,
    बदलती रही.

    प्यार का स्पर्श बहुत सुंदर लगा. रोहित आपको ढेर सी शुभकामनाएँ. रश्मि जी आपकी खोज नगीने ढूँढ कर ला रही है.

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