यादों के गाँव से चिठ्ठी आई है
याद किया है अमरुद के पेड़ ने नन्हे पैरों की चहलकदमी को
जो उसकी पतली शाखाओं पर भी मचलते थे
याद किया है गोलम्बर ने
याद किया है गोलम्बर ने
जिसके किनारे रजनीगन्धा की खुशबू हुआ करती थी
अब उसके किनारे दरक चले हैं कहीं कोई खुशबू नहीं
याद किया है आँगन ने जहाँ रात की ठंडी चादरों पर अन्ताक्षरी का दौर चलता
याद किया हैगन्ने से भरी बैलगाड़ी ने जिससे गन्ना खींच हमारी हँसी हवाओं में लहराती
याद किया हैस्कूल के पायों ने जो छुप्पा छुप्पी का आधार बनते थे
याद किया है हर यादों ने जहाँ हम बच्चे थे और हमारी आँखों मेंख्वाब ही ख्वाब थे ..........
इन यादों की चिठ्ठियों का क्या जवाब दूँ?
अब उसके किनारे दरक चले हैं कहीं कोई खुशबू नहीं
याद किया है आँगन ने जहाँ रात की ठंडी चादरों पर अन्ताक्षरी का दौर चलता
याद किया हैगन्ने से भरी बैलगाड़ी ने जिससे गन्ना खींच हमारी हँसी हवाओं में लहराती
याद किया हैस्कूल के पायों ने जो छुप्पा छुप्पी का आधार बनते थे
याद किया है हर यादों ने जहाँ हम बच्चे थे और हमारी आँखों मेंख्वाब ही ख्वाब थे ..........
इन यादों की चिठ्ठियों का क्या जवाब दूँ?
रश्मि प्रभा
==============================================================
दबंग यादें*********
मुई यादें हमेशा
पीठ पीछे करती हैं वार....
कई-कई तीर बिंध जाते हैं
छाती में और
उसके अन्दर का यन्त्र
कुछ पल के लिए
टीस के मारे
अपना काम भूल जाता है...
अतीत के चाक पर
समय बेतरतीब नाचने लगता है
घटनाएँ दर्शक बन
अगली पंक्ति में बैठने को
करने लगती हैं मारामारी
कुछ दबंग यादें
अपना रौब दिखाकर
चाक के बीचो-बीच
बैठ जाती हैं
जहाँ से कोई भी
माई का लाल उठा न पाए...
उसकी खुशामद में
दासानुदास बन जाते हैं
सोच के यन्त्र
अब चढावा चढ़ाओ
सारी सोच का
तब तक चढाते रहो
जब तक वे खुश न हों ...
आत्म शोषण का
एक रोमांचक खेल
भावनाएं एक अति से
दूसरे अति पर कूदती हुई
हम निरीह होकर
सिर्फ देखते रहते हैं....
दबंग यादें -इतनी बाहुबली कि
अतीत को भी
वर्तमान बनाने का
दम- ख़म रखती हैं....
और हम
उसी यंत्रणा-काल जनित
सुख-दुःख के भंवर में
उलझते चले जाते हैं .
() मैं.... अमृता तन्मय ...पटना से ...शब्द मेरी जो पहचान बना दे .... या शब्द ही पहचानी जाने लगे ....ख़ुशी होगी .
सच मे यादों पर किसी का बस नही चलता। सुन्दर रचना के लिये अमृता जी को बधाई।
ReplyDeleteअमरुद के पेड़ पर चढ़ जाना , गन्ने की बैलगाड़ी से गन्ने चुराना ..आपकी यादों में हमारी भी ऐसी ही कितनी यादें शामिल हैं ..
ReplyDeleteऔर इनकी दबंग यादें कैसे कुंडली मारे बैठी हैं!
yade hoti hi hai jo hamesa yaad aati hai
ReplyDeletebehtareen rachna
..
yeh bachpan ki dabangai bahut yaad aati hai-----
ReplyDeletejai baba banaras-----
यादों की दबंगई से निकलना शायद किसी के बस में नहीं है लाजवाब प्रस्तुति.
ReplyDeletebahut sundar dabang prastuti... sach mein laajawab.. aapka aabhar
ReplyDeletebehtareen kavita....bahut badhiya
ReplyDeleteदोनों ही बेहतरीन!
ReplyDeleteयाद किया है अमरुद के पेड़ ने
नन्हे पैरों की चहलकदमी को
जो उसकी पतली शाखाओं पर भी मचलते थे!
उफ़ ! क्या कहें, आपकी कलम को मेरा सलाम!
दोनों ही प्रस्तुतियाँ बेहतरीन...यादों का सफर कहाँ खतम होता है..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteदोनों रचनायें लाजवाब ...यादें सच ही दबंग होती हैं बरबस आती हैं ...
ReplyDeleteआप तो अच्छी लिखती ही हो दीदी ... इस बार अमृता जी की सुन्दर कविता भी पढ़ पाया ... बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बेहतरीन हैं !
aap to achchha likhati hi hain ..yah nirvivad satya hai ..meri rachana ko sthan dekar ..mujhe bhi sambal diya hai .. aapka hardik aabhar.
ReplyDeleteयादें सचमुच बाहुबली सा व्यवहार करती हैं।
ReplyDeleteकविता में भावप्रवणता शिखर पर है।
सुन्दर भाव और प्रस्तुति लाजबाब |
ReplyDeleteआशा
bahut sundar
ReplyDeleteइन यादों की चिठ्ठियों का क्या जवाब दूँ? ...
ReplyDeleteयह पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ...इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
दोनों रचनाएँ लाजवाब...सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDelete*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
यादें ही ऊर्जा देती हैं तन-मन को। यादों की गुल्लक जब भर जाती है तो उसमें से निकलते रहते हैं भावनाओं के अनमोल मोती, जो चमक से भर देते है हमारी ज़िंदगी में चमक ही चमक। सुंदर और भवभीनी रचनाओं के लिए बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDelete