जीवन के विविध रूप,
विविध ख्याल
विविध एहसास ...... कुछ एक सा
कुछ जुदा सा
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(1)
क्रेश
यह जानते हुए भी
कि
उसे मारपीट कर
जबरन सुला दिया जाता है वहाँ
मैं छोड़ जाती हूँ
अपनी सम्वेदनाओं के अबोध शिशु को
तर्कशक्ति के नज़दीकी क्रेश में.
क्या करूँ ?
यथार्थ के ऑफ़िस में ले जाने पर
काम ही नही करने देता
यह नन्हा
यह नादान.
(2)
जीवन के रंगमंच पर
माँ,बहन,बेटी,पत्नी,
देवरानी,जिठानी,बहू,सास,नन्द
जैसे चरित्रों को
संजीदगी से निभाते-निभाते
एक दिन
आँख भर आई मेरी
इन सारे चरित्रों के बीच
अपने "स्व" के कहीं खो जाने पर.
मन की इस व्यथा पर
कुछ बोलना चाहा होठों ने
किंतु शब्द मौन हो गए
लेकिन आँखे वाचाल होकर बोल उठीं
आँसुओं की भाषा...
उसी दिन मेरे कानों ने सुना था
औरत को कोई समझ पाया है आज तक?
सब त्रिया-चरित्र है
ऐक्टिंग मार रही है
नाटकबाज़ कहीं की!
(3)
"मेरे शरीर में रहता है एक वायरस
वैसे ही
जैसे अपने शरीर में रहता हूँ मैं खुद...
वैसे ही
जैसे रहते हैं यहाँ
खून,पानी,ऑक्सीजन,साँसें,
फेफड़े,गुर्दे,
चिंता ,
मुस्कुराहटें,
ह्ताशाएँ,निराशाएँ,आशाएँ..."
लोग बताते हैं
वायरस बहुत खतरनाक है.
लोग खतरों से डरते हैं
इसीलिए लोग वायरस से डरते हैं
इसीलिए लोग मुझसे भी डरते हैं
क्यों की मेरे ही तो शरीर में वायरस रहता है...
मैं वायरस से नही डरता
जो हमेशा साथ रहे उससे क्या डरना?
वो खतरनाक है
पर वो हमेशा मेरे साथ रहेगा,
मेरी अंतिम साँस तक ..
वो मुझे छोड़ कर कभी नही जाएगा
वो मुझे छोड़ कर कभी नही जाएगा
जैसे मेरे सभी दोस्त एक-एक कर चले गए
मुझे छोड़ कर
वायरस के कारण...
मरने से भी ज्यादा
मुझे 'छोड़े जाने' से डर लगता है
इसीलिए मुझे
वायरस से नही
दोस्तों से डर लगता है.
() मीनू खरे
मीनू खरे: एक परिचय
भौतिक विज्ञान विषय से परास्नातक; शिक्षा, संगीत और जन-संचार विषयों से स्नातक; आकाशवाणी में ‘कार्यक्रम अधिशासी’पद पर कार्यरत सुश्री मीनू खरे ‘जन प्रसारण’के क्षेत्र में एक जाना-माना हस्ताक्षर हैं | रेडियो के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दस से अधिक राष्ट्रीय एवँ अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित, जिसमे भारत सरकार द्वारा ‘आउटस्टैंडिंग साइंस रिपोर्टिंग इन कम्युनिकेशन इन इलेक्ट्रानिक मीडिया’का राष्ट्रीय पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय रेडियो फेस्टिवल, ईरान में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित, ‘एशिया पेसेफिक इंस्टीच्यूट फॉर ब्राडकास्टिंग डेवलपमेंट’द्वारा पुरस्कृत, राष्ट्रीय एकता का ‘लासा कौल पुरस्कार’उल्लेखनीय; राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न सम्मानित पत्र-पत्रिकाओं में ‘रेग्युलर कॉलम’लेखन, कविता, कहानियाँ, लेख आदि प्रकाशित | ‘साइंस इज़ इंट्रेस्टिंग’और ‘मीनू खरे का ब्लॉग’में नियमित लेखन |
मैं छोड़ जाती हूँ
ReplyDeleteअपनी सम्वेदनाओं के अबोध शिशु को
तर्कशक्ति के नज़दीकी क्रेश में.
क्या करूँ ?
यथार्थ के ऑफ़िस में ले जाने पर
काम ही नही करने देता
यह नन्हा
यह नादान.
वाह ...नि:शब्द करती यह पंक्तियां ...भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
शब्द-दर-शब्द गहरे उतरने को मजबूर करता हुआ और अभिव्यक्तियाँ भावनाओं को आंदोलित करती हुयी, अच्छी लगी आपकी समस्त क्षणिकाएं !
ReplyDeleteमैं छोड़ जाती हूँ
ReplyDeleteअपनी सम्वेदनाओं के अबोध शिशु को
तर्कशक्ति के नज़दीकी क्रेश में.
क्या करूँ ?
यथार्थ के ऑफ़िस में ले जाने पर
काम ही नही करने देता
यह नन्हा
यह नादान.
नि:शब्द करती यह पंक्तियां .भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर लगी आपकी समस्त क्षणिकाएं ! ... बधाई
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी समस्त क्षणिकाएं !
ReplyDeleteBahut dhanywad Rashmi ji.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... खासकर क्रेश मुझे बहुत अच्छी लगी !
ReplyDeletebehtreen
ReplyDeletebahut sunder
..
समय से कदम मिलाती माँ की बच्चे को क्रैश में छोड़ने की मजबूरी , रिश्तों के आगे स्व के खोने का दर्द और दोस्तों से बढ़िया वायरस ...
ReplyDeleteतीनों एक से बढ़कर एक !
Kaafi achchi lagi apki kshanikaen..aurat ke 'triy-charitra' ki vidambana bhi...sashakt!!
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