गर खुद को संवार लिया हमने
समझो ज़िन्दगी तराश लिया हमने
समझो ज़िन्दगी तराश लिया हमने
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न लोहा बन सके सोना
वो पारस क्या जिसे छूकर
न लोहा बन सके सोना
विकारों मैं है मन मैला
शरीरों को है क्या धोना?
यह रिश्तों की बची है राख
नए फिर बीज क्यों बोना?
सजा कर दिल में बर्बादी
किया आबाद हर कोना
न ऐसी चाह रख दिल में
जहाँ पा कर पड़े खोना
ख़ुशी मातम मनाती जब
ग़मों को आ गया रोना
मुझे दे पाक दिल मौला
न धन मांगूँ न मैं सोना
यह जीवन कैसा है देवी
सलीबों को जहाँ ढोना
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http://sahilreti.blogspot.com/
नामः देवी नागरानी
जन्मः ११ मई, १९४१ कराची
शिक्षाः बी.ए अर्ली चाइल्डहुड में, न्यू जर्सी, गणित का भारत व न्यू जर्सी से डिगरी हासिल
सम्प्रतिः शिक्षिका, न्यू जर्सी.यू.एस.ए
Published Books
प्रसारणः पत्र-पत्रिकाओं में गीत, गज़ल, कहानियों का प्रकाशन, कवि-सम्मेलन, मुशायरों में भाग लेने के सिवा नेट पर भी अभिरुचि.इसके अतिरिक्त कई कहानियाँ, गज़लें, गीत आदि राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं में छपती रहती है. इनकी रचनाएँ यू.एस.ए. से डा॰ अंजना सँधिर द्वारा सँपादित "प्रवासिनी के बोल" एवं केनेडा से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी चेतना" , विश्वा, ताथा यू.के की पुर्वाई में प्रकाशित हुईं. आकाशवाणी मुबई से उनकी हिंदी व सिंधी काव्य व ग़ज़ल का पाठ समय समय पार होता रहता है. यह भारत तथा यू.एस की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं । राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं निमंत्रित
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"ग़म में भींजीं ख़ुशी" सिंधी भाषा में पहला- गज़ल संग्रह २००४
"चरागे-दिल" हिंदी में पहला गज़ल-संग्रह, २००७
"उडुर-पखिअरा" सिंधी भजन- संग्रह, २००७
“ दिल से दिल तक" हिंदी ग़ज़ल- संग्रह २००८
" आस की शम्अ" सिंधी ग़ज़ल -सँग्रह २००८
" सिंध जी आँऊ जाई आह्याँ" सिंधी काव्य- संग्रह, २००९ -कराची में छपा
"द जर्नी " अंग्रेजी काव्य- संग्रह २००९
" लो दर्दे-दिल की " (हिंदी ग़ज़ल संग्रह-२०१०)
बेहतरीन
ReplyDeletebahut sundar rachnaa... sheyar karne ke liye aabhaar...
ReplyDeleteपहली बार आयी हूँ आपके ब्लॉग पर ......बहुत अच्छी रचना ........आजके शिक्षक पारस नहीं हैं ......इसीलिये छात्र भी सोना नहीं बन पा रहे हैं ...सोना बन गये होते तो बड़े अधिकारी इस तरह भ्रष्ट नहीं होते ......अच्छी रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteपहली बार आयी हूँ आपके ब्लॉग पर ......बहुत अच्छी रचना ........आजके शिक्षक पारस नहीं हैं ......इसीलिये छात्र भी सोना नहीं बन पा रहे हैं ...सोना बन गये होते तो बड़े अधिकारी इस तरह भ्रष्ट नहीं होते ......अच्छी रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteमुझे दे पाक दिल मौला
ReplyDeleteन धन मांगूँ न मैं सोना
मिले सुर मेरा तुम्हारा ...
जो पत्थर को सोना न बना दे , वो पारस ही क्या
सुन्दर !
हर पंक्ति लाजवाब ....इस बेहतरीन रचना प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteआद.रश्मि जी,
ReplyDelete"वो पारस क्या जिसे छूकर
न लोहा बन सके सोना" ...
देवी नागरानी जी की इतनी उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया !.
रश्मि जी ! कल चर्चा मंच पर आपकी यह पोस्ट देविनागरी जी की कविता होगी ... सादर शुक्रिया
ReplyDeleteमुझे दे पाक दिल मौला
ReplyDeleteन धन मांगूँ न मैं सोना
यह जीवन कैसा है देवी
सलीबों को जहाँ ढोना
...bahut sundar bhavpurn rachna....aabhar
बहुत अच्छा लगा पढ़कर...
ReplyDeleteधन्यवाद शेयर करने के लिए...
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteओह...आनंद आ गया पढ़कर...
ReplyDeleteअप्रतिम रचना...
पढवाने के लिए आभार आपका..
bade sahaj bhav se sach kah diya hai ...aanand aa gayaa ..
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