बहुत रही भुलावे में हरि
अब लक्ष्य साधो
क्षितिज के भ्रम से
अब मुझे उबारो
प्यास हुई ये वर्षों की
अब पार उतारो ....................
रश्मि प्रभा
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मृगमरीचिका नहीं --मुझे है जल तक जाना
दूर दीखता निर्मल पानी
चमक देख मन में हैरानी
चमकीला सा पानी
जाकर झट पी जाऊं
अटक -भटक थी मेरे मन में
प्यास बुझाऊँ --
पृथ्वी की गति -वेग न पाऊँ---
भाग भाग फिर मैं थक जाऊं-
मैं रुक जाऊं -
चंचल मन में मोह था मेरे -
फिर उठ जाऊं -
पृथ्वी की गति -वेग न पाऊँ -
भाग- भाग फिर मैं थक जाऊं-
मैं रुक जाऊं .....!!!!
जीवन का यह चक्र -
समझ में पल ना आता -
काम -क्रोध-मद -लोभ से --
मेरा मन भरमाता --
मिथ्या पीछे चलते- चलते -
जब मैं थक कर हार गयी -
तब समझी मैं--- मार्ग मेरा क्या ॥?
निश्चित अब पहचान गयी -
जाग गयी चेतना --
अब मैं देख रही प्रभु लीला --
प्रभु लीला क्या -जीवन लीला ....
जीवन है संघर्ष तभी तो --
जीवन का ये महाभारत --
युद्ध के रथ पर --
मैं अर्जुन ...तुम सारथी मेरे ..
मार्ग दिखाना -
मृगमरीचिका नहीं ---
मुझे है जल तक जाना ...!!!
वाह ...बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआत्मविश्वास की गूंज़ है यह रचना!!
ReplyDeleteआज शानदार प्रस्तुति है, रश्मी जी
अनुपमा सुकृती जी की अनुपम सुकृति है।
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ,
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
मृग मारीचिका का बहुत सुन्दर वर्णन किया है |
ReplyDeleteइस माध्यम से बहुत कुछ कह डाला |
बहुत बहुत बधाई आपको और रश्मि जी को जिन्होंने
इस रचना और आपसे से मिलवाया |
आशा
badiya laga...
ReplyDeletebahut sundar rachna....
ReplyDeleteजीवन का यह चक्र -
ReplyDeleteसमझ में पल ना आता -
काम -क्रोध-मद -लोभ से --
मेरा मन भरमाता --
किसने है समझा आजतक ये राज़ ...
बहुत सुन्दर रचना !
बहुत सुन्दर भावमयी रचना..
ReplyDeleteबहुत रही भुलावे में हरि
ReplyDeleteअब लक्ष्य साधो
क्षितिज के भ्रम से
अब मुझे उबारो
प्यास हुई ये वर्षों की
अब पार उतारो ....................
itni achchi pangtiyan padhkar man ko achcha laga.kavita alag se bhawpurn hai.
बहुत रही भुलावे में हरि
ReplyDeleteअब लक्ष्य साधो
क्षितिज के भ्रम से
अब मुझे उबारो
प्यास हुई ये वर्षों की
अब पार उतारो .................
सच में रश्मि जी -दिल में बहुत गहरी उतर गयीं ये पंक्तियाँ .बहुत ही खूबसूरत भाव हैं .
कविता के आरम्भ से भागते-भागते मैं भी थक चला था कि अचानक कविता के अंत मों अर्जुन, सारथी और युद्ध को पाकर सतर्क हो गया। मरीचिका को पाने के लिए एक समझ निर्मित हुई। कब,कहॉ ना जाने कौन सा मोती मिल जाए।
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ReplyDeleteजीवनोपयोगी , भावपूर्ण सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteजीवन है संघर्ष और इसे सार्थक भी बनाना है ! बहुत भावपूर्ण रचना !!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है |
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