सपनोंवाली आँखों में कैक्टस चुभते हैं ,

मचलते पैर सच से लहुलुहान हो जाते हैं
भरी हथेलियाँ खाली हो जाती हैं ,

हँसते चेहरे पर आंसू ही आंसू होते हैं
क्या कहूँ , कैसे कहूँ
वहम था
कि सिरहाने रखा है एक ख्वाब !
रश्मि प्रभा










!! मेरा शून्य !!

नही मैं नही चाहता
सन्नाटों से बाहर आना
इक नयी शुरुआत करना


ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
लहुलुहान हो गया हूँ
गुज़रे लम्हों की सिसकियाँ
बहरा कर देतीं हैं
बीते वक़्त की खुश्बू
साँसें रोक रही है
रोशनी की चकाचौंध
अँधा कर रही है


तुम्हारी देह की मादक गंध
सह नही पाता
खनकती हँसी
सुन नही पाता
गहरी आँखों की कोई
थाह नही पाता
बाहों का हार
नागपाश लगता है
मुझे इस खामोशी में रहने दो
इन अंधेरों में बसने दो
ये मेरा ही शून्य है
इन न्नाटों में रहने दो ...

दिगंबर नासवा

http://swapnmere.blogspot.com/


18 comments:

  1. दिगंबर नासवा जी और आपकी रचना बढ़िया लगी...आभार

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  2. यही तो नासवा जी की लेखनी का कमाल है कि हर कविता बेजोड बन जाती है……………बेहद उम्दा लेखन्।

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  3. बहुत अच्छी लगी आप कि रचना ...बधाई !

    ----
    यहाँ पधारे - मजदूर

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  4. अपने शून्‍य में कब तक रहेंगे।

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  5. ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लहुलुहान हो गया हूँ......बेजोड !

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  6. उम्दा रचना ...बधाई !

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  7. sundar aur bhaavpoorn rachana, badhayi

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  8. हँसते चेहरे पर आंसू ही आंसू होते हैं
    क्या कहूँ , कैसे कहूँ
    वहम था
    कि सिरहाने रखा है एक ख्वाब !
    .......................
    ज़ख़्मी यादों का दंश सहते सहते
    लहुलुहान हो गया हूँ
    ....दोनों कविताओं में भावनाओं की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर....आभार
    http://sharmakailashc.blogspot.com/

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  9. बहुत सुन्दर, भावपूर्ण और शानदार रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  10. नासवा जी खुद शून्य हो कर ही इतनी भावमयी रचना लिखी जा सकती है
    बहुत अच्छी लगी रचना
    बधाई।

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  11. नासवा जी ,

    कभी कभी ऐसी परिस्थिति आ जाती है जब इंसान को कुछ अच्छा नहीं लगता ..और मन शून्य में चला जाता है ...पर यदि शून्य को पा लिया जाये तो समझिए ईश्वार को पा लिया ...

    बहुत सुन्दरता से मन के भावों को अभिव्यक्त किया है ..

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  12. शून्य से ही तो शुरू होती है अनंत की यात्रा ....
    अच्छी कविता !

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  13. दिगम्बर जी की तो अदा निराली!!!

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  14. आप सभी का बहुत बहुत आभार इस प्रोत्साहन के लिए .... और धन्यवाद रश्मि जी का मंच प्रदान करने की लिए ....

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  15. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के भाव, दोनो रचनायें अनुपम ।

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  16. sach hai ki ek nayi shuruat karna mushkil jarur hota hai
    bt namumkin ni

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