गलत का निर्णय ?
कहना और करना - दो किनारे हैं ...



रश्मि प्रभा 
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संस्मरण 


सुरेखा मेरी बिटिया शोभना की सहेली थी!…दोनों ही हम-उम्र याने कि लगभग ग्यारह-बारह वर्ष की थी!…एक ही स्कूल में और एक ही कक्षामें पढ़ती थी!…सुरेखा पहले कही अन्यत्र रहती थी लेकिन छह महीने पहले अपने परिवार वालों के साथ हमारी सोसाइटी में रहने आई थी ; सो कभी कभी हमारे घर खेलने भी आ जाती थी!….बहुत ही शालीन और सलीकेदार लड़की थी!

एक बार उसे ढूंढती हुई उसकी मम्मी मेरे यहाँ आई!…

” नमस्ते!…मैं सुरेखा की मम्मी हूँ!…हम लोग यहाँ, इस सोसाइटी में छह महीने पहले ही आए है!”

” नमस्ते!..आइए, अंदर आइए!…बहुत अच्छा हुआ जो आप आई!..सुरेखा तो आती रहती है…मैंने उसे कहा भी था कि कभी अपनी मम्मी को भी साथ ले कर आना!”…मुझे सुरेखा की मम्मी से मिलकर खुशी हो रही थी!
” नहीं!..अभी बैठने का टाइम नहीं है मिसेस कपूर!…हम छत्तरपुर माता के मंदिर जा रहे है!…अपने तीन साल के छोटे बेटे तुषार को घर पर छोड़ कर जा रही हूँ!…घर पर मेरी सासुजी है, लेकिन सुरेखा अपने भाई का ज्यादा अच्छा ध्यान रखती है!….कहाँ है सुरेखा?…” सुरेखा की मम्मी को जाने की जल्दी थी और वह जल्दी जल्दी से बोले भी जा रही थी!

” आप दरवाजे में ही खड़ी है मिसेस चंद्रा!…अंदर तो आइए! सुरेखा अंदर है….मेरी बिटिया के साथ पोहे खा रही है….आज पोहे बनाएं थे ;सो शोभना और सुरेखा को प्लेट में डाल कर दे दिए….सुरेखा तो मना कर रही थी लेकिन मैंने कहा थोडेसे ले लों बिटिया…”
…सुरेखाने अपनी मम्मी की आवाज सुन ली और वह बाहर ड्रोइंग-रूम में आ गई!

” चलो रेखा!…जल्दी चलो!..आपकी दादी और तुषार घर में अकेले है!” सुरेखा की मम्मी ने कहा…

” मम्मी!…नीरज भैया और नकुल आप के साथ मंदिर जा रहे है?” सुरेखाने मम्मी से पूछा…

…सुरेखा और नीरज जुड़वा भाई बहन थे और नकुल और तुषार उसके छोटे भाई थे!…इस परिवार में तीन बेटे और एक बेटी थी!…मैं सुरेखा के परिवार के बारे में इतना ही जानती थी!

” मम्मी!…पापा भी जा रहे है क्या?…” सुरेखा ने मम्मी के साथ दरवाजे से बाहर निकलते हुए पूछा!

” हद हो गई तेरी तो !…पापा की तो ऐसी की तैसी!…वे नहीं जाएंगे तो कार कौन ड्राइव करेगा?” …सुरेखा की मम्मी ने कहा और मुझे हंसी आ गई!

…दोनों माँ-बेटी चली गई!…फिर भी मुझे लगा कि ‘पति के बारे में सुरेखा की मम्मी ने ऐसा क्यों कहा?’…हो सकता है कि पहले उन्होंने छत्तरपुर मंदिर जाने से मना कर दिया हो और बाद में तैयार हुए तो…पत्नी को गुस्सा आना स्वाभाविक है!

…इसके कुछ दिनों बाद जब सुरेखा मेरे यहाँ शोभना बिटिया के साथ खेलने आई तब पता चला कि सुरेखा और नीरज जुड़वा भाई बहन है…लेकिन उनकी अपनी मम्मी गुजर जाने के बाद, उनके पापा ने दूसरी शादी की, जो वर्त्तमान में उनकी मम्मी है!..लेकिन सौतेली मम्मी होने के बावजूद वह उनकी सगी मौसी है…मतलब कि उसकी अपनी मृत मम्मी की सगी बहन है!

…एक दिन फिर सुरेखा की मम्मी आई!..इस बार वह मुझसे मिलने ही आई थी!..इधर -उधर की बाते हुई..मेरे साथ उसकी मित्रता भी हो गई …और हमारा मिलना-जुलना और एक दूसरी के घर आना-जाना भी शुरू हुआ!..
..सुरेखा की मम्मी का नाम कौशल्या था…सो अब कौशल्या के नाम से ही हम उसे संबोधित करेंगे!…कौशल्या को घुमने का बड़ा शौक था!…घर में बैठे रहना उसे अच्छा नहीं लगता था!…घर का सारा काम उसकी बूढ़ी विधवा सास ही देखती थी!…कौशल्या को किट्टी-पार्टिओं का भी शौक था!…नए नए कपड़ों की भी खरीदारी वह करती रहती थी!…सुरेखा को वह अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करती थी…लेकिन पता नहीं क्यों…सुरेखा के ही जुड़वा भाई नीरज का वह तिरस्कार ही करती थी!…अपने सगे दो बेटे नकुल और तुषार को उसने महंगी फ़ीस वाले इंग्लिश मीडियम के स्कूल में दाखिला दिलवाया था…सुरेखा भी इंग्लिश मीडियम के अच्छे स्कूल में पढ़ रही थी..लेकिन नकुल के लिए सरकारी स्कूल में पढ़ना तय था!…और एक दिन नीरज को अपने मायके माता-पिता के पास पंजाब भिजवा दिया!…वे पंजाब के किसी गाँव में रहते थे..वही नीरज अब स्कूली शिक्षा ग्रहण करने लगा!

…समय गुजरता गया, कौशल्या अब मेरे सहेली थी..अपने घर की बातें बताया करती थी! ..मुझे भी मेरे नाम से ‘अरुणा” कहकर बुलाती थी! मैं जान चुकी थी कि कौशल्या अपने पति और सास की बिलकुल ही इज्जत करती नहीं थी!..पति का कारोबार अच्छा था सो उसके पास पैसो-गहनों की बहुतायत थी! एक दिन उसने एक और परदा-फाश कर दिया…

“अरुणा!..मेरी शादी मेरी मरजी के विरुद्ध हुई है! ”

“…लेकिन तुम्हारी शादी को अब बारह साल हो चले है…सुरेखा अब बारह साल की हो गई है!” मैंने कहा…
“..हाँ! समय गुजरते देर थोड़े ही लगती है?…मेरी बड़ी बहन ने सुरेखा और नीरज…दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया और वह डिलीवरी के दो दिन बाद ही गुजर गई!”…कौशल्या ने अपनी दास्ताँ बयाँ करनी शुरू की…
” बहुत अफ़सोस हो रहा है कौशल्या…कितनी दु:खद घटना है यह…”..जान कर मैंने दु:ख व्यक्त किया!

“…घर में सब परेशान थे और बच्चों की तरफ देखते हुए निर्णय लिया गया कि दीदी की जगह अब मुझे दी जाए…हमारे अन्य रिश्तेदार भी इस बात पर सहमत हो गए…दीदी की सास भी सहमत हो गई…दीदी के पति भी मुझसे शादी करने के लिए राजी हो गए!..लेकिन मुझसे किसीने नहीं पूछा कि मैं क्या चाहती हूँ!…अरुणा!…मैं इस शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी!…मेरे बड़े बड़े, सुन्दर से अलग ही सपने थे! मुझे किसी हैंडसम राज कुमार से दुल्हे का इंतज़ार था!..मै किसी डॉक्टर या इंजीनियर की पत्नी बनना चाहती थी!…दो बच्चों की सौतेली माँ बन कर जीना, मुझे कतई मंजूर नहीं था!”

“…लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है कौशल्या!’ मैं बीच में बोल उठी!

“…भाग्य?..कौनसा भाग्य?…यह सब मेरे साथ मेरे मेरे माँ-बाप ने अपने स्वार्थ के लिए किया…वे जमाई ढूंढने के कष्ट से बच गए…दीदी के बच्चों की चिंता से मुक्त हो गए…मेरे दिए दहेज खर्च करने से बच गए!…आप जानती है सुरेखा के पापा मुझ से दस साल बड़े है!…पैसे वाले है तो क्या हुआ?”…अब कौशल्या तैश में आ कर बोल रही थी!

“…तो तुमने उसी समय इस शादी के लिए विरोध क्यों नहीं जताया?”‘..मैंने पूछा!

“…बहुत विरोध जताया था मैंने!…बहुत रोई…माँ-बाप के ना मानने पर आत्महत्या भी करने की कोशिश की!…एक बंजर कुँए में अपने आप को झौंकने चली गई…लेकिन किसीने पीछे से आकर पकड लिया और बचा लिया…”…अब कौशल्या रो रही थी मैंने उसे शांत किया और पानी का गिलास उसके मुंह से लगाया!

” …क्या शादी के बाद पति का व्यवहार तेरे साथ ठीक नहीं था?”

“…वह तो खुश थे!…मेरे साथ भी वर्ताव अच्छा ही था और आज भी अच्छा ही है!…जानती हो अरुणा!..मैंने उन्हें डराकर रखा हुआ है!”…कौशल्या कह रही थी!

” क्या…कैसे?”

” मै बात बात में आत्महत्या करने धमकी देती हूँ…एक पत्नी की मृत्यु से वह बेहद डरे और घबराए हुए है…अगर दूसरी भी चल बसी तो क्या होगा…यही सोच सोच कर घबरा जाते है उन्हें पसीने छूट जाते है!…मैं उनके अंदर के इसी डर का फायदा उठा कर अपनी मन-मानी करती हूँ!…मैं उनसे नफरत जो करती हूँ!”…अब कौशल्या के चेहरे पर मुस्कुराहट थी!

“…ये ठीक नहीं है कौशल्या!..अपनी सास को भी तुमने नौकरानी बना कर रखा हुआ है..और नीरज से इतनी नफरत क्यों करती हो?”

“…मेरी अपनी कोख से पैदा हुए ,नकुल और तुषार तो है ही!…नीरज की मुझे जरुरत नहीं है! वह दीदी का बेटा है ..उसकी चिंता मैंने अपने माँ-बापू पर छोड़ दी है और उसे पंजाब भिजवा दिया है!..मेरी अपनी बेटी कोई नहीं है सो मैं सुरेखा को प्यार से पाले हुए हूँ!…बड़ी होने पर धूमधाम से शादी भी कर दूंगी!…अगर अपनी बेटी होती तो सुरेखा को भी माँ-बापू के पास पंजाब भिजवा दिया होता…”…अब कौशल्या बिलकुल सामान्य हो गई थी!
“…तो तुम्हारे साथ जो हुआ…उसका तुम समाज से बदला ले रही हो…अपने माता-पिता और पति से बदला ले रही हो…और चाहती हो कि मैं तुम्हारा समर्थन करू?…तुम जो कर रही हो इसे सही बताऊँ?..बेचारी बूढ़ी सास को भी तुमने अपने बदले की आग में झौंक दिया..क्या ठीक कर रही हो तुम कौशल्या?”….मैं भी अब तैश में आ गई!

“….मै अपने इरादे की पक्की हूँ…मेरे साथ मेरे माँ-बाप, पति, सास और समाज ने जो अन्याय किया है उसका मुंह तोड़ जवाब यही है!…अरुणा!..मैं सही रास्ते पर चल रही हूँ!” ..कौशल्या अपने आप सही बता रही थी!
…इस मै कोई जवाब नहीं दे पाई!

….यह सच्ची कहानी है…पात्रों के नाम बदले हुए है!…क्या आप समझतें है कि कौशल्या अपनी जगह सही है और सही व्यवहार अपने पति. सास, बच्चें और समाज के साथ कर रही है?

अरुणा कपूर 

12 comments:

  1. खतरनाक परिस्थि्ति ……………जिस पर बीते वो ही जाने …………बेशक आज जो कर रही है वो गलत है और उसके साथ जो हुआ उसका उसी समय उचित विरोध करना ही सही था क्योंकि अब कुछ भी करने से कुछ नही बदलने वाला तो क्यों जीवन को दुखस्वरूप बनाया जाये बल्कि अब तो जैसा है खुश होकर जीना ही सही रास्ता होगा …………चाहे मन से चाहे बेमन से ………क्योंकि जो बदलाव हो सकता था वो शादी से पहले ही हो सकता था अब ये सब करने का कोई फ़ायदा नहीं …………

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  2. कौशल्या जैसी न जाने कितनी औरतें हैं जो इस तरह के व्युह्चक्र में फँस जाती हैं और शोषित अवस्था में जीवन पर्यंत उसके साथ -साथ घूमती रहती हैं ।नारी एक देवी नहीं इंसान है अत्याचार के विरोध में आवाज उठाना ,बदले की भावना का जन्म होना स्वभाविक है ।ताली एक हाथ से नहीं पिटती ।शादी के समय ही लड़की के माँ बाप व् शादी करने वाले अनुभवी आदमी को सोच लेना चाहिए कि बेमेल शादी का क्या अंजाम होगा और उसके लिए तैयार होना चाहिए ।उपदेश देना सरल है पर उन पर अमल करना कठिन है ।

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  3. कौशल्या जैसी न जाने कितनी औरतें हैं जो इस तरह के व्युह्चक्र में फँस जाती हैं और शोषित अवस्था में जीवन पर्यंत उसके साथ -साथ घूमती रहती हैं ।नारी एक देवी नहीं इंसान है अत्याचार के विरोध में आवाज उठाना ,बदले की भावना का जन्म होना स्वभाविक है ।ताली एक हाथ से नहीं पिटती ।शादी के समय ही लड़की के माँ बाप व् शादी करने वाले अनुभवी आदमी को सोच लेना चाहिए कि बेमेल शादी का क्या अंजाम होगा और उसके लिए तैयार होना चाहिए ।उपदेश देना सरल है पर उन पर अमल करना कठिन है ।

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  4. ...धन्यवाद रश्मी प्रभा जी!...कहानी के साथ मैं भी वटवृक्ष के और आपके सानिध्य में हूँ!..कहानी आप को पसंद आई,ये मेरा सौभाग्य है!

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  5. धन्यवाद वन्दना जी, धन्यवाद सुधा जी!...कभी कभी लगता है कि कौशल्या को हालात से समझौता कर के अब तक बदले की भावना को तिलांजली दे देनी चाहिए थी ...लेकिन जैसे कि सुधा जी ने कहा..'उपदेश देना सरल है पर उन पर अमल करना कठिन है।'

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  6. एक कटु सत्य - कौशल्या जैसी मांएं बहुत सी हैं लेकिन ये इंसानियत का तकाजा नहीं है लेकिन हम किसी की मानसिकता को कैसे बदल सकते हैं? फिर भी एक सबक लेने वाली बात है कि माता पिता को अपनी इच्छा थोपने से बचना चाहिए क्योंकि बेटी उनकी इच्छा के विरुद्ध न भी गयी तो उसने तीन लोगों की जिन्दगी को नरक बना कर रख दिया अरुणा जी ने जिन्दगी के इस पहलू से मिलाया बहुत अच्छा लगा

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  7. उत्कृष्ट लेखन !!

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  8. विचारों को उद्वेलित करती बहुत सुन्दर कहानी...

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  9. बहुत नाजुक धागे से बंधे रिश्तों का संस्मरण |
    जो उसके साथ था वो बेशक गलत था लेकिन इस बात से उसके बदला लेने का तरीका जायज साबित नहीं होता है |

    सादर

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  10. बहुत ही बढ़िया कहानी मगर मेरी नज़र में सही या गलत कुछ नहीं होता बस हर किसी व्यक्ति का अपना-अपना नज़रिया होता है किसी एक के लिए जो बात सही है वह दूसरे की नज़र में गलत हो सकती है। और फिर जिस तन लगे वो मन जाने वाली बात भी है हमें कोई हक नहीं बनता किसी को सही या गलत ठहराने का असल जिम्मेदार यदि कोई होता है तो वह हैं हालात...उनके आगे किसी का वश नहीं चल पाता।

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  11. कौशल्या का यह व्यवहार सर्वथा अनुचित है ! थोड़ा और साहस जुटा कर शादी से पहले ही मना कर देती तो इतनी अप्रिय स्थितियों से बचा जा सकता था ! अब जो हालात पैदा हो गए हैं वे सबके लिए त्रासदायक तो हैं ही अपमानजनक भी हैं जो कि और भी कष्टप्रद होता है ! अब यह सब रिवाइंड कर सुधारा नहीं जा सकता तो ज़िंदगी को नरक बना कर जीने में कोई समझदारी नहीं है ! कौशल्या को भगवान् सद्बु्द्धि दें यही कामना कर सकते हैं !

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  12. धन्यवाद!..रेखा जी,कैलाश जी,आकाश जी,पल्लवी जी, साधना जी!...आप सभी की इस सत्य घटना के बारे में अलग अलग राय वाकई सोचनीय है!...'आर्यावर्त'की मैं बहुत आभारी हूँ कि इन्होने मेरे लेखन को 'उत्कृष्ट लेखन शैली' बताया!

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