मौत? किसकी हुई? दामिनी,यामिनी,अरुणा,........... सबकी रगों में दौड़ रही है .... मातम नहीं मनाओ, जो अभियान शुरू किया है-उसे बरकरार रखो .... तभी मुक्ति है तभी मुक्ति है
Amitabh Bachchan
समय चलते मोमबत्तियां, जल कर बुझ जाएंगी..
श्रद्धा में डाले पुष्प, जलहीन मुरझा जाएंगे..
स्वर विरोध के और शांति के अपनी प्रबलता खो देंगे..
किंतु निर्भयता की जलाई अग्नि हमारे हृदय को प्रज्जवलित करेगी..
जलहीन मुरझाए पुष्पों को हमारी अश्रु धाराएं जीवित रखेंगी...
दग्ध कंठ से 'दामिनी' की 'अमानत' आत्मा विश्व भर में गूंजेगी..
स्वर मेरे तुम, दल कुचल कर पीस न पाओगे..
मैं भारत की मां बहन या या बेटी हूं,
आदर और सत्कार की मैं हकदार हूं..
भारत देश हमारी माता है,
मेरी छोड़ो अपनी माता की तो पहचान बनो !!
वह चुटकियों में हल निकाल देता है
चालाक है, कीचड़ उछाल देता है ।
घुप्प अंधेरा हर तरफ कायम रहे -
आवरण सूरज पे डाल देता है ।
बात जो करता अमन की,चैन की-
उसको वह घर से निकाल देता है ।
अपना दोगलापन छुपाने के लिए-
मौन-ब्रत में खुद को ढाल देता है ।
आपसी रिश्ता निभाने को प्रभात -
न्याय को भी मुस्कुराके टाल देता है ।
- देश के ऐसे व्यवस्थापक को धिक्कार और देश की बहादुर बेटी दामिनी को भावभीनी श्रद्धांजलि ।
मत दिखाओ हमें उनके शोक - सन्देश कि उन्हें कितना दुःख हुआ , ये बताओ कि उन्होंने क्या किया , क्या करने वाले हैं !!
सोनियागाँधी आपके नया वर्ष मनाने न मनाने से देश को कोई फर्क नहीं पड़ता .. पूरा देश नहीं मनाएगा नया वर्ष .. वह हमारी बिटिया .. बहन थी .. आपका घर सुरक्षित है .. आप मनाईए .. ईश्वर आपके लिए नया वर्ष खुशियाँ लेकर आए .. हम ज़ालिमों को भी दुआएँ देते हैं .. यह हमारे देश का दस्तूर है .. तुम अपना दस्तूर निभाओ ...
चेहरा जो ढाँप लिया तुमने
तो क्या जुर्म छुप गया उसमें
क्या करेगा ओ नादान उस दिन
जब तेरा ज़मीर हिसाब करेगा तुझसे
मुझे श्रद्दांजली नहीं चाहिए
एक वादा चाहिए तुम सब से
दुनिया की हर बेटी में मुझे देखना
मेरी पीड़ा मत भूलना --याद रखना जिंदा हूँ मै
क्या मै विश्वास करूँ ?नहीं भूलोगे तुम सब
सिर्फ बातें और नारे बन कर न रह जाऊं मै
हर बेटी में मेरा ही अंश देखना ---देखोगे न
उन बारह दिनों का संघर्ष --सार्थक होगा
फिर किसी दामिनी को श्रधांजली न देनी पड़े
मै झकझोर के जगा रही हूँ तुम सब का ज़मीर -------दामिनी
गीत बज रहा है .... जो चला गया उसे भूल जा ....
हर बात को भूल जाना क्या इतना आसान है ??
Will not say R.I.P. for "the girl"
The girl has not died..
Instead she has moved to a better world where no rapes happen..
Still being in this world, really feeling sad for her.. :(
पहले भी यही लिखा था .... एक बार और सही ..... उन कमीनों को मौत से कम कुछ नहीं
"मेरा भी हिस्सा है उस में, सब कुसूर उन का नहीं है
मौत मुझ को दे, मगर उन को भी उन का भाग दे दे
देश मेरा मर गया है, कोई उस को आग दे दे
वो ही मुंसिफ़, वो ही क़ातिल, उन से क्या उम्मीद तुम को
खड्ग उठा, हुंकार कर, भारत को इक नव-राग दे दे
देश मेरा मर गया है, कोई उस को आग दे दे"
सडकें उनकी है
मेट्रो उनकी है
इंडिया गेट उनका
दिल्ली उनकी है
सारा देश उनका
फिर राष्ट्र को
क्या समर्पित ?
आप एक ही काम कर सकते हो हाथ मैं मोमबती लेकर मरने वाली बेटी बहु के लिए दुआ और अत्मा की के लिए प्राथना अब बस भी करो और घर से निकल के इस सरकार के कपडे खोल दो अपना दुर्गा रूप दिखा दो कहने को तुम दुर्गा नहीं हो हम देखना चाहते हैं इस दुर्गा रूप को इस इन्टरनेट की और फसबूकिया दुनिया से बहार निकल के कुछ बोलो
वैसे , मरा कौन है ?
वो बच्ची , दामिनी , निर्भया तो नहीं मरी . निश्चिंत ही . वो तो सदा ही जीवित रहेंगी हमारे बीच , हमेशा ही .
बल्कि
मरे तो हम सब है , ये समाज है , ये देश है , यहाँ का कानून है , यहाँ की सरकार है , यहाँ का total system है , यहाँ की सोच मर गयी है . और तो और , यहाँ का सच्चा पुरुष ही मर गया है .
मौत दामिनी की नहीं हुई है, मौत हुई है इंसानियत की। वह इंसानियत जो आज हर गली, हर चौराहे, हर नुक्कड़, हर घर और हर दिल में दम तोड़ती नज़र आ रही है।दामिनी के साथ जो हुआ वह सम्पूर्ण मानव जाति को शर्मसार करता है...... लेकिन मेरी सोच और समझ से बाहर है वे बलात्कार की घटनाये जो अभी भी बदस्तूर जारी है। पिता का बेटी के साथ दुष्कर्म, पड़ोसी का पड़ोसी के साथ दुष्कर्म, 6 महीने की बच्ची का बलात्कार .....क्या हो गया है लोगों को ?
आज के दिन को "राष्ट्रीय शर्म के शोक" का दिन घोषित करना चाहिए!
और हमें ये मनना चाहिए कि इस दिन के लिए ये सरकार /व्यवस्था और
समाज सभी लोग दोषी हैं!
मौत उसकी नहीं,सबक न लेने वाले समाज की हुई है !
गुनाहों का कारोबार बा - दस्तूर युही चलता रहेगा |
जब तक बेगुनाह रूह को न कोई इन्साफ मिलेगा |
If the Govt can send the victim Singapore for better treatment,
why not they send the accused to Saudi Arabia for better justice ?
दामिनी चली गयी, पर लगा गयी हमारे समाज पर एक प्रश्नचिन्ह
पुरुष का 'बल' और स्त्री का 'प्रारब्ध'........आखिर कब तक ...... ??
Your fight, your zeal and your spirit to fight for justice will not go waste. Our true tribute to brave heart will be to take further the fight of creating a safe and secure enviornment for women.
प्रधान मंत्री और राष्ट्र पति के घर के आस पास सुरक्षा व्यवस्था बढाई गयी ...........जो खुद इतने असुरक्षित हैं वो आम आदमी की सुरक्षा ????????????शर्मिंदा होइये .......अपने भारतीय प्रशासन पर ,कानून व्यवस्था पर ,और भारतीय होने पर भी .
लोग बहुत कुछ लिख रहे है... पर मेरे पास शब्द नहीं... मैं ये नहीं कहूँगा की मुझे उसके मौत का गम है, क्योंकि हाँ है... पर उसकी हालत के हिसाब से उसकी मौत की ख़ुशी ज्यादा है... पर न मैं खुश हो पा रहा हूँ और न मैं दुखी हो पा रहा हूँ... क्योंकि मैं सही मायनों में बहुत डरा हुआ हूँ...
दुनिया वाले मरते हुए को बचाने की बजाए उसे तमाशा बनाके देखते हैं फिर जब वो मर जाए तो वही लोग धरना प्रदर्शन करके तथाकथित इन्सानियत का ड्रामा करते हैं...परमात्मा एसे बुद्धीजीवियों को सद्बुद्धि दे!
मेरी पूरी वॉल शोक संदेशों से भरी पड़ी है... लोग अलग अलग तरह के शब्द इस्तमाल करके दुःख जता रहे हैं... तुम ये थी, तुम वो थी... तुम्हारी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जायेगी, फलाना-ढिकाना....
अरे सब बेकार की बातें हैं, तुम्हारी जान, तुम्हारी कुर्बानी सब ख़त्म...
सच्चाई ये है कि जब आधी दिल्ली तुम्हारे लिए बावरी हुयी जा रही थी, उस समय देश के कई कोनों में बीसियों बलात्कार ज़ारी थे, लोग बलात्कार केकारणों को लेकर ब्लू-प्रिंट तैयार कर रहे थे... देश के नेता अपनी अपनी बेटियाँ गिना रहे थे, और महामहिम का कहना था कि सरकार हर जगह चल के नहीं जा सकती, प्रधानमंत्री के अनुसार सब "ठीक था".... और एक महिला वैज्ञानिक तुमसे ही सवाल कर रही थी कि जब तुम ७ लोगों से घिर गयी थी तो तुमने समर्पण क्यूँ नहीं कर दिया...
मैं तुमसे किस मुंह से कहूं कि तुम्हारे जाने के बाद कोई क्रान्ति आने वाली है, जबकि जानता हूँ ऐसा कुछ नहीं होने वाला... आज और कल देश के लोग तुम्हें आखिरी बार याद करेंगे... एक तरफ तुम्राई अंतिम यात्रा में कुछ लोग आंसू बहा रहे होंगे और दूसरी तरफ इसी शहर के किसी दुसरे कोने में एक बलात्कार हो रहा होगा...
अलविदा, मैं खुश हूँ कि तुम अब ऐसी जगह जा रही हो जहाँ शायद कोई किसी का बलात्कार तो नहीं करता...
mujhe likhanaa nahi aataa ..... lekin jahaan mere jajbaat dikhate hain ......... unhe main apanaa hi samajhati hoon .............
विभा रानी श्रीवास्तव
आन्दोलन की चुक :-
आन्दोलन होना चाहिए था ,दामिनी या निर्भया जो हो उसका बेहतर इलाज़ हो बेहतर हॉस्पिटल में जहां इलाज़ हो रहा था वहाँ मौत तो निश्चित थी ......... और आन्दोलन ना भड़के इसलिए उन्हें देश से बाहर भेज दिया गया
Aksar sach ko dawaa diya jaata hai.... par sach befikar hokar ek din saamne aata hai...aur jeetta hai. intejaar hai ki ye muhim fb pe khatam na ho... antim saans bhi le to jeet kar k le... shubh kaamnayein naye aagaaj ke liye har desh wasi ko..!
Rastogi Mangla
Damini- Mai ja raheehun..
meree Aatma to milgaya parmatma.. Mile jakhmo ka hisaab abhee wakee hai ..hai yahee bas kahena ...mita hai shareer mera...sangharsh ye jaree rahe... Lakho ke dilo me gunje yahee awaaj...desh kee har Maa beti rahe surakshit.. gunahgaro hojao sabdhan... Vyarth na jaye sangharsh... Mera Insaaf abhi wakee hai .. Insaaf abhi wakee hai...!
हमारे प्रतिरोध का प्रतीक, हमारी बेटी नहीं रही ! पर प्रतिरोध रहेगा और जीवंत, ये दो दिन की बात नहीं है मैं इसे जीवंत रखूंगा आजीवन ये मेरा वचन है एक बेटी को !
श्रद्धांजलि !!
यह तेरहवीं का शोक नहीं है
कि आप इसे एक पीढ़ी जानकर सहेजकर रख लें
कि गंगा में विसर्जन होना ही अंतिम कर्तव्य हो
कि एक तस्वीर बरसी और श्राद्ध पर चुप रह जाए
कि साल में एक बार ही आप कातर हो
लौटें अपनी स्मृतियों में
अबकी बार आप केवल माँ नहीं हैं
अब की बार आप केवल पिता नहीं हैं
अब की बार आप केवल एक भाई या बहन नहीं हैं
अब की बार चिता एक क्षण नहीं है
जो गया तो फिर नहीं आएगा
आप सबकी लाशों में पहली बार
कुछ हिला है
एक कन्धा कंधे की तरह दिखा है
इस बार आप जनता की तरह काबिल हुए हैं
इस बार आप भीड़ नहीं हैं
भेड़ नहीं हैं
इस बार 'मैं' स्त्री
आपको सम्मान और आशाओं से देख सकती हूँ
आपके चेहरे पहली बार शीशे की तरह हुए हैं
और इसमें मैं खड़ी हूँ
शरीर से छलनी
एक रूह
तुझको अग्नि के हवाले कर के ....
मैं जड़- सी हो गई हूँ .....
कभी अपनी छाती का लहू पिलाया था मैने ..
तेरी वो नटखट आँखें ..
वो चेहरे का भोलापन .
वो प्यारी -सी मुस्कान ?
वो तोतली जुबान ----
अब खामोश है ...
ठंडा- पन लिए ..सर्द ...
**************
मेरा सफ़ेद पडता मुंह
आँखों से बहती अश्रु धारा
बिदा की अंतिम घडी
तेरे नाम की अंतिम अरदास ...!
*************
मैं स्तब्ध ! आवाक ! तुझे जाते हुए देखती रही ....
होठ कांपकपाये ..शरीर थरथराया ..
दिमांग शून्य ...???
************
खप्पचियों से बंधा, सफ़ेद कफ़न ....
ये लिबास तो मैने कभी चाहा नहीं था ?
फिर क्यों आज तेरे लिए यही जोड़ा मुकरर हो गया ?
"राम नाम सत्य हैं "
अचानक ! इस कर्कश ध्वनी से मेरे कान बजने लगे ..
"अरे , कोई रोको उसे "रॊ- ऒ- ओ- को
"यह उम्र है जाने की ....?"
अभी उसने देखा ही किया है ..?
अभी तो उसके दूध के दांत भी नहीं टूटे ..?
और जालिमो ने उसके अंगो के टुकड़े -टुकड़े कर दिए ...?
अभी तो हाथो में मेंहदी भी नहीं लगी ...?
और राक्षसों ने उसे चिता पे लिटा दिया ...?
" कोई रोको उसे ..कोई रोको ..यह उम्र है जाने की ..."
सुनो द्रौपदी--- तुमने क्यों नहीं कहा " ऐसी की तैसी तुम पाँचों की " ?
क्यों नहीं थूक कर निकल गयीं उनके चेहरों पर ?
कौन जाने औरतें तुम्हे ही अपना आदर्श मान बैठतीं .......
तुम फिर भी खुशकिस्मत थीं तुम्हें उस दौर के मनमोहन ने बचा लिया
मिलेगी अपराधियों को
न जाने कब फांसी
दामिनी के जाने के बाद
फिर उस पर हुए जुल्म को
कही हम भूला न दे देशवासी
Damini loses her battle for life today :( Lets make assure to win her/our war against the shameless society.
बुरा लगता है कहना लेकिन "मौत" की राजनीति और "स्वस्थ" राजनीति की मौत - दोनों ने एक मासूम की जान ले ली। हम भले हीं उसे निर्भया या दामिनी कहें, लेकिन थी तो वह निरपराध हीं और उसके ऊपर क्या बीतती रही, यह हम कभी भी महसूस नहीं कर सकते। उसे इस तरह तो कतई नहीं मरना था। कतई नहीं.....
"सफदरजंग अस्पताल में बहुत काबिल डाक्टर हैं। पर देश का सबसे बड़ा, अपने विशेषज्ञों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर अस्पताल 'एम्स' है, सफदरजंग से हाथ भर की दूरी पर, सड़क के ठीक उस पार। हम तो पीड़िता (अब मृतका) को वहां तक नहीं पहुंचा सके। ऐसे में कोई क्यों न शुबहा करे कि सारे देश को हिला देने वाले इस दर्दनाक, शर्मनाक, नाजुक और भावुक मामले में भी नेता विदेश में इलाज के नाम पर राजनीति कर गए!"
उसने तिल-तिल तड़पते हुए भी हमें ताकत दी, लेकिन आज हम सब ने (कहीं न कहीं हम भी गुनहगार हैं) उसके परिवार वालीं से उनकी ताकत छीन ली। अब हमारी कोशिश और प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि उसके द्वारा दिखाए गए आईने में सरकार और समाज के जो घिनौने चेहरे सामने आए हैं, उन चेहरों का या तो हम इलाज शुरू करें या फिर सर-कलम कर दें। वे चेहरे अपने वर्तमान रूप में तो महामारी की तरह घातक हैं। वक़्त खत्म होने से पहले इस महामारी का कुछ तो करना होगा। नहीं तो हम आने वाले दिनों में इसी तरह शोक व्यक़्त करते हीं रह जाएँगे और फिर किसी निरपराध और मासूम की जीजिविषा और जीवट को देखकर सुखद हैरानी धारण करेंगे और "निर्भया" कहकर सुकून पाएँगे बस...
जाओ "अमानत"... तुम्हें हम सहेज न सके... जाओ... हमें मुआफ़ करना.... RIP
कहते हैं न की एक मछली पुरे तालाब को गन्दा कर देती है!
इस तरह इन 6 नामर्दों ने पूरी पुरुष जाती को अपराधी
बना दिया! हमें शर्म है धिक्कार है अपने पुरुष होने पर!
एक बार फिर हौसले ने जूझते हुए जान गंवा दी,एक बार फिर सच्चाई ज़िन्दगी की जंग हार गई ,एक बार फिर सलाखें परिन्द की उड़ान तमाम करने में क़ामयाब रहीं .औरत को दोयम दर्ज़े का इंसान मानने वाली परम्परागत सोच को यह बहाना मिल गया कि गलती उस लड़की की ही थी जिसने हालात से समझौता करने के बजाय व्यभिचारियों का सामना करने की ज़ुर्रत की ,समाज की सदियों पुरानी मानसिक जड़ता अपनी-अपनी बेटियों को नसीहते देगी,इस घटना को बदलाव का मौक़ा बनाने के बजाय आवाज़ को दबाने का हथियार बनाया जाएगा .हो सकता है अपराधियों को फांसी या कोई ऐसी सज़ा दे दी जाए क्योंकि अपराधी समाज के सबसे निचले तबके से है और इनको सख्त सज़ा देने में कोई रिस्क नहीं है .यथास्थितिवादी इस घटना को अपनी जड़ता पर एक और पत्थर रखकर सब कुछ ठीक है का राग गाते रह सकते है .जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये .खासकर मध्यवर्ग अपनी अपनी बेटियों पर इस बहाने थोड़ी और सख्ती कर सकते है .जो चिंगारी सदियों पुरानी सोच तो जला सकती है उस चिंगारी को ही बुझाना चाहेंगे .पर तमाम जड़ता, यथास्थितिवाद, और पाबंदियों को ध्वस्त करने का इस समय नौजवान...
मर तो कब से रही थी ,
मर तो कब की चुकी थी ,
मारा तो कई बार गया था ,
आज तो ज़िंदा हुई हूँ ,
अब न मरूँगी मै,
अब न मरूँगी मै ..........
बलात्कारियों से सामना करके आत्म-सम्मान के लिए संघर्ष करने वाली ,भारतीय समाज को झकझोर देने वाली, दिल्ली पुलिस की अकर्मण्यता को उजागर करने वाली युवती अब हमारे मध्य नहीं रही.आज प्रातः 2:15 बजे उसने अंतिम साँसें लीं. इसके साथ ही वह भारतीय समाज के समक्ष अनेक प्रश्न छोड़ गई है. देखना यह है कि क्या यह मार्मिक बलिदान समाज को कोई सार्थक दिशा देगा?
नम आँखों से विनम्र श्रद्धांजलि !
मैंने पहले दिन ही कहा था -- मैं जिंदा रहना चाहती हूँ !मैं मरी नहीं हूँ ! मुझे मरने देना भी मत ! देह छोड़ी है मैंने , रूह तुम सबके साथ है ! मुझसे पहले भी मुझ जैसी हजारों देहें ज़लील हुई , जलाई गयी , आत्महत्या करने पर मजबूर हुई ! उनकी रूहें भी सामने हैं !
इस लड़ाई को जीतकर , समाज को बेहतर बनाने की एक और शुरुआत हो ! समाज की स्वस्थ मानसिकता बने , उसकी नींव गढ़ने के लिए हम जैसी लाखों बहनों को चाहो तो शहीद कह देना !
-- कविता गुप्ता के साथ हम सब
आज कुछ लफ्ज़ दे दो मुझे
ना जाने मेरी कविता के
सब मायने
कहाँ खो गये हैं
What an Incredible INDIA where a daughter is not safe inside the WOMB or OUTSIDE.What a Shame to Indian Govt.They failed as a leader.
बेटी बचाओ........... किस लिये???????
Sanivaar kaale ka din hota hai jaanta tha...
lekin aaj to sach me kaala din hai.. paapiyon sharm karo doob maro..
Adarsh Gupta
unko itni asani se fnsi nai hona chaiye....unko aisa kare ki wo log khud maut mange
सरकारें ना सही , पर देश शर्मिंदा है ....
Sanjay Saxena
यूं तो संजोये ख्वाबों की ये मंजिल नहीं है
पर अब जाने का आगे ....... दिल नहीं है
कुछ तो जी भी भर गया .. हमारा जहां से
कुछ ये दुनिया भी रहने के काबिल नहीं है_______अमित हर्ष
. . . . दिवंगत दामिनी के दर्द को समर्पित ... अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि . . . .
Khalil Pathan
RIP Damini You are at a better place now...
आज हर तरफ इक दुःख व्याप्त है और हर आँख है नम ..........कहा जा रहा है की आज जिंदगी हार गई लेकिनं मैं कहूँगी की आज इक जिंदगी ने अपनी आहुति देकर सब को जगा दिया है इक नींद से .......उस बच्ची की शहादत तभी सार्थक होगी जब हम सभी केवल औपचारिक श्रद्धांजली ना देकर अपने अंतर्मन में झांके आत्मचिंतन करे और अपने से ही शुरुवात करे इक पहल की अपने घर से ही स्त्री को सम्मान देने की उसे सबल बनाने की और साथ ही हरेक स्त्री को खुद अपने लिए लड़ने की शक्ति पैदा करनी होगी स्वयं में इस सोच को निकल फेंकना होगा दिलो से की गर किसी स्त्री की अस्मत लुट जाती है तो वो कलंकित हो गई या उसके लिए कुछ शेष नहीं बचा है ........साथ ही पुरुषो को भी अपनी इस सोच को बदलना है जो इक स्त्री के कपड़ो पर जाके अटक जाती है .......क्या स्त्री के कम कपडे पहनने से उन्हें अपने आप पर नियंत्रण नहीं रह पाता अपने इक अंग अपनी इक वृति उनकी .......लड़की के कपड़ो के अधीन है??.........आज दामिनी ने जो जागृति जो आक्रोश हरेक मन में पैदा किया है उसे बुझने नहीं देना है वरन ताकत बनाना है अपनी और लड़ना है संगठित हो बिना इक दूजे पे दोषारोपण किये बगैर और अपने संस्कारों एवं संस्कृति को साथ लिए लड़ना है ऐसी विसंगतियों से उन्हें उखड फेंकना है जड़ से ! लड़कियों के चलन या शराब को दोष देकर हम पीछा नहीं छुड़ा सकते अपने कर्तव्य से .........इक शराबी नशे में होने पर भी अपनी माँ या बहन के साथ दुर्व्यहार नहीं करता तो फिर बाहर क्यों ??........आज नहीं सोचा हमने आज नहीं झाँका अपनी अंतरात्मा में तो फिर कभी नहीं कर पायेंगे पहल इन विकृतियों इन घिनोनी मानसिकता से लड़ने की ..........तो आये हम सभी मिलकर इक पहल करे अपने घरो से ही ............और दें अपनी उस बच्ची को सच्ची श्रद्धांजली सही मायनों में ..........शुभं
Varron Attrri
And i request to all girls, womens that if they find anybody who is doing wrong things , eve teasing , trying to create trouble to any women girl. Don't just oppose it but also kill that bastard on the spot, or beat him like hell. even he dare to dream about a girl.
,बहुत सही कहा लफ्ज़ ही जैसे चुप हो गये हैं सबके .... हम सब आशंकित थे कुछ भी हो सकता के लिए तैयार भी , फिर भी दिल में एक अपने के जाने सी हुक उठ गयी हैं एक आक्रोश जनम ले रहा हैं बहुत कुछ करने को उतावला हो रहा हैं मन परन्तु यह सिस्टम , यह समाज की रिवायते हमेशा स्त्री का रास्ता रोकती आई हैं .... ख़ामोशी भीतर पाँव पसार रही हैं
अगर अब न चेते तो यह समाज रसातल में चला जायेगा उसके जिम्मेदार हम -तुम होंगे .......दामिनी का बलात्कार नही हुआ सामाजिक मूल्यों का बलात्कार हुआ हैं ......... मन बहुत उद्ववेलित हैं ....
TV channels se meri request hai ki please use ya us jaisi kisi ladki ko sharminda n dikhaen matlab ki sar jhuka hua ya donon haathon se munh chhupae hue
kyonki gunah us ladki ne nahin kiya jo wo sharmindagi se munh chhupae us ne to tab tak jang ki jab tak us ki saans baqi thi ,,,please
It is very strange that we don't have a right to mourn the way we want. We are not allowed to come out and condole the death of a brave heart.
Democratic country INDIA............ BY THE PEOPLE, FOR THE PEOPLE, TO THE PEOPLE..........(PEOPLE refers here the REPIST ONLY........)
दामिनी...ज़िंदा है!
जीने की तमन्ना थी उसे ...
मृत्यु सिर पर मंडरा रही थी फिरभी!
खूंखार भेड़ियों का विनाश देखना चाहती थी...
आँखें बंद होने जा रही थी फिरभी!
उसे अपने नाम की परवाह नहीं थी...
चाहे 'दामिनी' कहलाई जा रही थी फिरभी!
जब अंत निकट, और निकट आया...
उसे बचाने के की लाख कोशिशें होती रही फिरभी!
विदेश स्थानांतरीत होना भी काम ना आया...
चली गई..हम करते रहे ईश्वर से प्रार्थनाएं फिरभी!
फिरभी..नहीं!...मरकर भी वह ज़िंदा है आज...
न्याय मांग रही है, खामोश हो गई है फिरभी!
चाहती है वह, फिर कोई न कहलाएं दामिनी...
दुष्टों का सर्वनाश हो..खुद चाहे बन गई दामिनी फिरभी!
शर्म हमको फिर भी नहीं आती :(
जिंदा रखना चाहते हो गर "दामिनी" को अपने अन्दर ... तो इस मौत को एक इंसान की मौत न मानना कभी भी ....
ये मानवता की मौत है,संवेदनाओं की मौत है,
संस्कारों की मौत है,और मौत है हम सबकी आत्मा की ...
श्रद्धांजलि