हवाओं की अलगनी 

झूलते सवाल 
भीगे भीगे से हैं .... जवाब हो तो सूखें न 




रश्मि प्रभा 

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देखो
चांद के माथे जा चि‍पका है
वो अनुत्‍तरित सवाल
जो मुझसे पूछने को तुमने

हवाओं की अलगनी में टांग रखा था....
क्‍या नहीं जानते तुम
कुछ सवालों के जवाब नहीं होते
और कई बार
लोग गलि‍यों के फेरे भी डालते हैं
बस...यूं ही..आदतन
अब चांद भी हैरान है
अपने माथे एक नया दाग देखकर
सुनो
कह दो उससे
मेरे सवाल को ले परेशान न हो
दागदार चांद भी सबको प्‍यारा है
और 
बि‍ना जवाब दि‍ए भी
कई बार
सवाल अलगनी में झूलते रहते हैं
क्‍योंकि मन ही मन
चुप्‍पी का राज जानते हैं.......

[Rashmi.jpg]

9 comments:

  1. बि‍ना जवाब दि‍ए भी
    कई बार
    सवाल अलगनी में झूलते रहते हैं
    क्‍योंकि मन ही मन
    चुप्‍पी का राज जानते हैं.......
    ..वाह!

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  2. बड़ा प्यारा चित्र है। कविता में चार चाँद लगाता।

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  3. कई बार
    सवाल अलगनी में झूलते रहते हैं
    क्‍योंकि मन ही मन
    चुप्‍पी का राज जानते हैं.....
    वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  4. गहन भाव अभिव्यक्ति ....

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  5. कई बार
    सवाल अलगनी में झूलते रहते हैं
    क्‍योंकि मन ही मन
    चुप्‍पी का राज जानते हैं.......

    सच कहा ………सुन्दर भाव

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  6. वटवृक्ष की छाया मि‍ली मेरी कवि‍ता को....हृदय से धन्‍यवाद आपको

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  7. चाँद और सवाल , सुन्दर भाव संयोजन |

    सादर

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  8. कई बार
    सवाल अलगनी में झूलते रहते हैं
    ???????????????????????????????
    sach hai

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